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चीन की सत्ता पर काबिज रहेंगे शी जिनपिंग या होगा बदलाव? 16 अक्टूबर को सीसीपी के महाधिवेशन में चलेगा पता

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तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद 16 अक्टूबर को होने वाले सीपीसी के महाधिवेशन में अधिनायकवाद के कट्टर समर्थक और सरकार के शीर्ष पद पर काबिज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि उनकी सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक और शांति का माहौल है.

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हांगकांग/नई दिल्ली : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अगले पांच के लिए वहां की सत्ता पर काबिज रहेंगे या फिर इसमें कोई बदलाव होगा? अगर सत्ता के शीर्ष पद के राजनेता का बदलाव हो भी जाएगा, तो क्या वे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के महासचिव दोबारा चुने जाएंगे या फिर उसके अध्यक्ष के तौर पर निर्वाचित किए जाएंगे? पार्टी में अध्यक्ष का शीर्ष पद करीब 1982 से रिक्त या निष्क्रिय पड़ा हुआ है, जो कभी माओत्से तुंग द्वारा गठित किया गया था. यह सब आगामी 16 अक्टूबर को होने वाली सीसीपी की राष्ट्रीय कांग्रेस में तय होगा. चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के नौ करोड़ से अधिक सदस्य हैं.

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वैश्विक स्तर पर विषम परिस्थिति में होगा सीपीसी का महाधिवेशन

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, हाल के वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे खतरनाक दौर के बीच चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का महाधिवेशन होने जा रहा है. यूक्रेन में रूस द्वारा युद्ध छिड़ा हुआ है. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक महान रूसी नेता के तौर पर यूक्रेन को नेस्तनाबूद करने पर आमादा हैं और चीन लोकतांत्रिक रूस के तथाकथित जार का कट्टर समर्थक बना हुआ है. यह वही समय है कि एक ओर रूस यूक्रेन पर पिछले सात-आठ महीनों से ताबड़तोड़ हमला कर रहा है और ताइवान जलडमरूमध्य में तनाव कई दशकों के अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा हुआ है. इसका कारण यह है कि चीन ताइपे पर अपना आधिपत्य स्थापित करके उसे शांत करने के प्रयास में जुटा हुआ है. इतना ही नहीं, अमेरिका के साथ चीन का राजनीतिक तनाव जगजाहिर है. इस राजनीतिक तनाव के बीच अमेरिका वैश्विक महामारी के बाद उपजी आर्थिक महामंदी और पूरी दुनिया में कोरोना महामारी के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेवार ठहराने पर आमादा है. ऐसे विकट समय में सीपीसी के महाधिवेश में शी जिनपिंग को लेकर हंगामा मचना तय माना जा रहा है.

सत्ता में बने रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं शी जिनपिंग

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, तमाम विषम परिस्थितियों के बावजूद 16 अक्टूबर को होने वाले सीपीसी के महाधिवेशन में अधिनायकवाद के कट्टर समर्थक और सरकार के शीर्ष पद पर काबिज चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग यह साबित करने की कोशिश करेंगे कि उनकी सरकार में सब कुछ ठीक-ठाक और शांति का माहौल है. रिपोर्ट में यह भी कहा जा रहा है कि इस महाधिवेशन में शी जिनपिंग सीपीसी के शीर्ष पद के लिए निर्वाचित होंगे, तो वह अगले पांच साल और उसके बाद के वर्षों के लिए इस पद पर आसीन रहने के लिए अपने चाटुकारों को अपने कार्यालय में स्थापित करने की कोशिश करेंगे. अगर यह कहा जाए कि सत्ता में बने रहने के लिए शी जिनपिंग कुछ भी कर सकते हैं, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी.

कौन होगा पोलित ब्यूरो स्थायी समिति का अगला प्रमुख

इसमें कोई दो राय नहीं है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का 20वां राष्ट्रीय महाधिवेशन न सिर्फ चीन के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है. इस महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना पर अभी हाल ही में 4 अक्टूबर को अमेरिका के ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट में चाइना सेंटर के जॉन एल थॉर्नटन ‘क्या चीन का ताकतवर और भी मजबूत हो जाएगा’ नामक शीर्षक पर आयोजित एक कार्यक्रम में चर्चा भी की थी. चाइना सेंटर के निदेशक जॉन एल थॉर्नटन और एक वरिष्ठ फेलो चेंग ली ने कहा कि सीपीसी के 20वें राष्ट्रीय महाधिवेश को लेकर कोई सूचना अभी तक सार्वजनिक नहीं हुई है, लेकिन यह दुनिया के लिए बेहद महत्वपूर्ण है कि अगली पोलित ब्यूरो स्थायी समिति का अगला प्रमुख कौन होगा?

चीन में छिड़ी है सत्ता की जंग

चीन की घटनाओं पर नजर रखने वाले जापानी एक्सपर्ट्स ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि इस समय सत्ता को लेकर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में जंग छिड़ी हुई है. उन्होंने कहा कि सत्ता को लेकर करीब चार दशक पहले भी वहां इसी प्रकार की जंग देखने को मिली थी. इन जपानी विशेषज्ञों की मानें, तो चीन का इतिहास ऐसा है कि सत्ता के लिए होने वाले जंग के परिणाम के बारे में बाकी दुनिया को अंदाज लगा पाना टेढ़ी खीर के समान होती है.

सत्ता संघर्ष से प्रभावित होती है चीन की विदेश नीति

मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, करीब चार दशक पहले जापान-चीन के पहले कूटनीतिक संबंध पर नजर रखने वाले अधिकारियों ने कहा कि अतीत में भी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में सत्ता की जंग से जुड़ी तीन पहलुओं में कोई बदलाव नहीं हुआ. इन अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 1970 के दशक में जापान और चीन के संबंधों को सुधारने की प्रक्रिया ऐसे सत्ता संघर्ष से काफी प्रभावित हुई थी. उस दौर के अधिकारियों से बातचीत के आधार पर मीडिया की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर के सत्ता संघर्ष का एक पहलू यह है कि उससे विदेश नीति संबंधी निर्णय काफी हद तक प्रभावित होते हैं. दूसरा, सत्ता संघर्ष में पराजित होने वाले नेताओं और गुटों को पार्टी से बाहर कर दिया जाता है. तीसरा यह कि जिन नेताओं के हाथ में असीमित सत्ता रहती है, वे भी अपने सहकर्मियों और सहयोगियों को लेकर हमेशा शक पाले रहते हैं.

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सत्ता संघर्ष में हमेशा आगे रहा है शंघाई

चीन की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का शंघाई गुट हमेशा सत्ता संघर्ष में अग्रणी रहा है. इसीलिए इस बार 16 अक्टूबर से सीपीसी की होने जा रही 20वें महाधिवेशन के दौरान लोगों की नजर यह देखने पर लगी रहेगी कि क्या राष्ट्रपति शी जिनपिंग ली चियांग को पार्टी पोलित ब्यूरो में शामिल करेंगे. ली चियांग शंघाई के सर्वोच्च अधिकारी हैं और अभी उन्हें शी जिनपिंग का सहयोगी माना जाता है.

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