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World Heritage Day : साझी सांस्कृतिक व प्राकृतिक विरासत के महत्व को जानने का दिन

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18 अप्रैल : विश्व विरासत दिवस विशेष आलेख आरती श्रीवास्तव विश्व धरोहर स्थल हमारी साझा सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का एक मूल्यवान हिस्सा हैं. इनकी सुरक्षा और संरक्षण करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. इस भावना को मजबूती देने और विश्व धरोहर स्थलों के महत्व तथा भावी पीढ़ियों के लिए उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे […]

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18 अप्रैल : विश्व विरासत दिवस विशेष आलेख

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आरती श्रीवास्तव

विश्व धरोहर स्थल हमारी साझा सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत का एक मूल्यवान हिस्सा हैं. इनकी सुरक्षा और संरक्षण करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. इस भावना को मजबूती देने और विश्व धरोहर स्थलों के महत्व तथा भावी पीढ़ियों के लिए उनकी सुरक्षा के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है. वर्ष 1982 में, International Council on Monuments and Sites (ICOMOS) ने विश्व विरासत दिवस मनाने की अवधारणा का प्रस्ताव रखा, जिसे 1983 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अनुमोदित किया गया. पहला ‘विश्व विरासत दिवस’ 18 अप्रैल, 1982 को ट्यूनीशिया में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोनुमेंट्स एंड साइट्स’ द्वारा मनाया गया था. तब से हर वर्ष इसी तारीख को इस दिवस को मनाया जाता है.

ऐसे शुरू हुआ सिलसिला

यूं तो विश्व विरासत को संरक्षित करने का विचार फर्स्ट वर्ल्ड वार के बाद से ही उभरने लगा था. पर जिस घटना ने विरासतों को संरक्षित करने के लिए विशेष अंतरराष्ट्रीय चिंता पैदा की, वह मिस्र में ‘असवान हाई डैम’ बनाने का निर्णय था, जिससे प्राचीन मिस्र की सभ्यता की निशानी अबू सिंबल मंदिरों वाली घाटी में बाढ़ आ जाती. वर्ष 1959 में, मिस्र और सूडान की सरकारों की अपील के बाद, यूनेस्को ने एक अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा अभियान शुरू किया. इसके तहत बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में पुरातत्व अनुसंधान में तेजी लायी गयी और अबू सिंबल तथा फिलाई मंदिरों को तोड़कर दूसरी जगह ले जाया गया और फिर उसे जोड़ दिया गया. यह अभियान सफल रहा. इसकी सफलता ने अन्य सुरक्षा अभियानों को जन्म दिया, जैसे वेनिस और उसके लैगून (इटली) एवं मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान) में पुरातात्विक खंडहरों को बचाना, और बोरोबोदुर मंदिर परिसर (इंडोनेशिया) को पुनर्स्थापित करना.

1983 में मिली मान्यता

वर्ष 1965 में वाशिंगटन, डीसी में हुए व्हाइट हाउस सम्मेलन में एक ऐसी ‘विश्व विरासत ट्रस्ट’ बनाने की मांग हुई’ जो वर्तमान और भविष्य के लिए दुनिया के शानदार प्राकृतिक और दर्शनीय क्षेत्रों तथा ऐतिहासिक स्थलों’ की सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करे. वर्ष 1968 में, एक अंतरराष्ट्रीय संगठन, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने विश्व प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव को 1972 में संयुक्त राष्ट्र के सामने स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान रखा गया, जहां यह प्रस्ताव पारित हुआ. इस तरह विश्व के लगभग सभी देशों ने मिलकर ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को बचाने की शपथ ली. इस तरह ‘यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर’ अस्तित्व में आया. वर्ष 1978 के 18 अप्रैल को पहली बार विश्व के कुल 12 स्थलों को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया. तब से इस दिवस को ‘विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस’ के रूप में मनाया जाता था. वर्ष 1983 में यूनेस्को (UNESCO) ने इस दिवस को मान्यता प्रदान की और इसका नाम बदलकर ‘विश्व विरासत दिवस’ कर दिया.

अब तक भारत के 42 विरासत हो चुके हैं वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल

भारत एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की धरती है और अब तक हमारे यहां के 42 धरोहरों को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में जगह मिल चुकी है, जिनमें सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्थल शामिल हैं. ये स्थल देश के उत्कृष्ट स्थापत्य , जैव विविधता और सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं. इस प्रकार हमारा देश 42 धरोहरों के साथ विश्व विरासत की सूची में छठे स्थान पर है.

विश्व धरोहर सूची में शामिल शीर्ष पांच देश

  1. इटली (59)
  2. चीन (57)
  3. फ्रांस (52)
  4. जर्मनी (52)
  5. स्पेन (50)

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