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भारत ने संयुक्त राष्ट्र में नहीं दिया इजरायल का साथ, फिलिस्तीन से भी बनाई दूरी, जानें क्यों ?

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Israel Palestine conflict: UNGA का यह प्रस्ताव न केवल फिलिस्तीनी मुद्दे को फिर से वैश्विक चर्चा में लाया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इजरायल के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आग्रह भी करता है.

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Israel Palestine Conflict: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बुधवार को फिलिस्तीन द्वारा प्रस्तुत एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव को मंजूरी दी, जिसमें इजरायल से उसकी “अवैध उपस्थिति” को समाप्त करने और कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्रों से हटने की मांग की गई है. इस प्रस्ताव के पक्ष में 124 वोट पड़े, जबकि भारत सहित 43 देशों ने मतदान से दूर रहते हुए तटस्थता दिखाई. इजरायल, अमेरिका और 12 अन्य देशों ने प्रस्ताव का विरोध किया. इस प्रस्ताव के पारित होने के बाद इजरायल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया जा रहा है. प्रस्ताव उस समय पारित हुआ जब वैश्विक नेता संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए न्यूयॉर्क पहुंच रहे हैं. 26 सितंबर को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास दोनों महासभा में भाषण देंगे.

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प्रस्ताव में इजरायल को कब्जा खाली करने के लिए 12 महीने का समय दिया गया है, जो इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) की जुलाई में दी गई सलाह के अनुरूप है. कोर्ट ने कहा था कि इजरायल का फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर कब्जा अवैध है और इसे जल्द से जल्द समाप्त किया जाना चाहिए. महासभा के प्रस्ताव में यह भी अपील की गई है कि सदस्य देश इजरायली बस्तियों से बने उत्पादों का आयात बंद करें और इजरायल द्वारा कब्जे वाले क्षेत्रों में इस्तेमाल किए जा सकने वाले हथियारों और गोला-बारूद की आपूर्ति पर रोक लगाएं.

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यह प्रस्ताव न केवल फिलिस्तीनी मुद्दे को फिर से वैश्विक चर्चा में लाया है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से इजरायल के खिलाफ कड़े कदम उठाने का आग्रह भी करता है. इसे फिलिस्तीन के लिए एक राजनीतिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है, जबकि इजरायल और उसके समर्थक देशों के लिए यह नई चुनौतियाँ खड़ी कर सकता है.

इजरायल फिलिस्तीन विवाद पर भारत की नीति क्या है? (What is India policy on Israel Palestine conflict)

भारत का इजरायल-फिलिस्तीन विवाद (Israel-Palestine dispute) में किसी भी पक्ष का समर्थन न करने का दृष्टिकोण उसकी संतुलित विदेश नीति का हिस्सा है, जो ऐतिहासिक, कूटनीतिक और राष्ट्रीय हितों पर आधारित है. भारत लंबे समय से फिलिस्तीन के अधिकारों और स्वायत्तता का समर्थक रहा है. 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन के विभाजन का प्रस्ताव पारित किया, तब भारत ने इसका विरोध किया और फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया. 1974 में भारत ने फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) को मान्यता दी और 1988 में फिलिस्तीन को स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दी. फिलिस्तीन के साथ ऐतिहासिक संबंध होने के बावजूद, 1992 में भारत ने इजरायल के साथ औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए. इसके बाद, दोनों देशों के बीच रक्षा, कृषि, साइबर सुरक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में मजबूत साझेदारी विकसित हुई. इजरायल भारत का प्रमुख रक्षा उपकरण आपूर्तिकर्ता है, और दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंध लगातार मजबूत हुए हैं.

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भारत ने हमेशा गुटनिरपेक्षता का पालन किया है, जिससे वह वैश्विक संघर्षों में तटस्थ रहने और अपने हितों के अनुसार सभी पक्षों के साथ संबंध बनाए रखने में सक्षम है. भारत के अरब देशों के साथ भी गहरे आर्थिक और व्यापारिक संबंध हैं, जहां लाखों भारतीय काम करते हैं, और भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए इन देशों पर निर्भर है. इजरायल के साथ संबंधों के बावजूद भारत यह सुनिश्चित करता है कि उसके अरब देशों के साथ संबंध प्रभावित न हों. भारत हमेशा इजरायल-फिलिस्तीन विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत करता है, और दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन करता है, जहां इजरायल और फिलिस्तीन दोनों को शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का अधिकार मिले. भारत की यह संतुलित नीति उसे दोनों पक्षों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने और वैश्विक मंच पर एक विश्वसनीय मध्यस्थ के रूप में प्रस्तुत करती है.

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