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बीजिंग : चीन ने पहली बार दक्षिण चीन सागर (south china sea) में अपनी ‘विमानवाहक पोत रोधी’ मिसाइल दागी है. अमेरिकी टोही विमानों की निगरानी के बीच विवादित क्षेत्र में नौसैनिक अभ्यास के तहत ये मिसाइल दागी गयी है. चीन दक्षिण और पूर्वी चीन सागरों में क्षेत्रीय विवादों में लिप्त हैं. उसने पिछले कुछ सालों में अपने मानव निर्मित द्वीपों पर सैन्य शक्ति बढ़ाने में भी प्रगति की है और इसे वह अपनी रक्षा का अधिकार कहता है.
बीजिंग पूरे दक्षिण चीन सागर पर संप्रभुता का दावा करता है. लेकिन वियतनाम, मलेशिया और फिलीपीन, ब्रूनेई और ताईवान इसके विपरीत दावे करते हैं. पूर्वी चीन सागर में चीन का क्षेत्रीय विवाद जापान के साथ है. दक्षिण चीन सागर और पूर्वी चीन सागर खनिज, तेल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न कहे जाते हैं. चीन ने बुधवार सुबह दक्षिण चीन सागर में ‘एयरक्राफ्ट-कैरियर किलर’ मिसाइल समेत दो मिसाइलें दागीं.
एक दिन पहले ही अमेरिका का यू-2 जासूसी विमान चीन के उत्तरी तटीय क्षेत्र में बोहाई सागर में उसके नौसैनिक अभ्यास के दौरान उड़ान-निषिद्ध क्षेत्र में घुसा था. हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट समाचार-पत्र ने बृहस्पतिवार को चीनी सेना के अज्ञात करीबी सूत्रों के हवाले से खबर दी कि डीएफ-26बी और डीएफ-21 डी (विमानवाहक पोत रोधी मिसाइल) मिसाइलों को बुधवार को दक्षिणी द्वीप प्रांत हैनान और पार्सल द्वीपसमूहों के बीच वाले इलाके में दागा गया.
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विश्व के सबसे व्यस्ततम व्यापार मार्गों में से एक, दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण को लेकर बढ़ते विवाद बीजिंग के वाशिंगटन और उसके दक्षिणी पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते में लगातार कड़वाहट पैदा कर रहे हैं. ट्रंप प्रशासन ने विवादित क्षेत्र के ज्यादातर हिस्से पर संप्रभुता के बीजिंग के दावों को इस साल खारिज कर दिया था. डीएफ-26 दोहरी क्षमता वाली मिसाइल है जो ‘इंटरमीडियेटरी-रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस संधि’ के तहत प्रतिबंधित है. इस संधि पर अमेरिका और पूर्ववर्ती सोवियत संघ ने शीत युद्ध के समापन के बाद हस्ताक्षर किये थे.
खबर के अनुसार पिछले साल अमेरिका संधि से हट गया था और उसने चीन द्वारा ऐसे हथियारों की तैनाती का हवाला दिया. डीएफ-21 की क्षमता करीब 1,800 किलोमीटर तक प्रहार करने की है. सरकारी मीडिया इसे इस श्रृंखला की सबसे आधुनिक मिसाइल बताता है. इसका निशाना असामान्य रूप से सटीक होता है और इसे सैन्य विशेषज्ञ “कैरियर किलर” कहते हैं जिनका मानना है कि इसे उन अमेरिकी विमानवाहकों को निशाना बनाने के लिए विकसित किया गया है जो चीन के साथ संभावित संघर्ष में शामिल हो सकते हैं. बीजिंग ने पिछले दो दशक में मिसाइलों, लड़ाकू विमानों, परमाणु पनडुब्बियों और अन्य हथियारों को विकसित करने की दिशा में काफी निवेश किया है ताकि वह अपनी सीमाओं से परे भी अपनी सेना को विस्तार दे सके.
Posted by: Amlesh Nandan Sinha.