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चंपारण सत्याग्रह के अनाम : अफ्रीका से चंपारण तक बापू संग रहे बदरी अहीर

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चंपारण सत्याग्रह के अनाम : जिसे गांधी नहीं भूले, उसे हमने भुला दिया अजय कुमार दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान एक बिहारी ने महात्मा गांधी को एक हजार पौंड का कर्ज दिया था. महात्मा गांधी को कर्ज देने वाले शख्स का नाम था बदरी अहीर. वे दक्षिण अफ्रीका में गांधी के सत्याग्रह में जेल […]

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चंपारण सत्याग्रह के अनाम : जिसे गांधी नहीं भूले, उसे हमने भुला दिया
अजय कुमार
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान एक बिहारी ने महात्मा गांधी को एक हजार पौंड का कर्ज दिया था. महात्मा गांधी को कर्ज देने वाले शख्स का नाम था बदरी अहीर. वे दक्षिण अफ्रीका में गांधी के सत्याग्रह में जेल की सजा भुगत चुके थे. महात्मा गांधी जब 1917 में चंपारण पहुंचे तो बदरी दक्षिण अफ्रीका से गांधी का साथ देने यहां भी पहुंच गये थे.
बदरी मिस्टर पोलक नहीं थे और न चंपारण के शुक्ल जी. वह दक्षिण अफ्रीका के अब्दुल्ला की तरह कारोबारी भी नहीं थे. वह तो बिहार के अनाम सत्याग्रही थे. गांधी जब 1917 में चंपारण पहुंचे, तो बदरी अहीर भी दक्षिण अफ्रीका से बेतिया-मोतिहारी पहुंच गये. 26 जुलाई, 1917 को महात्मा गांधी और उनके साथी बेतिया गये थे. उस दिन निलहे और मोतिहारी कोठी के मालिक इरविन की गवाही हुई थी. गवाही दोपहर एक बजे तक चली. उसी दिन चार बजे की ट्रेन से महात्मा गांधी और उनके साथी बेतिया रवाना हुए.
तब के कानपुर से छपने वाले अखबार ‘प्रताप’ ने 20 अगस्त, 1917 के अपने अंक में लिखा – महात्मा गांधी के साथ श्रीयुत् बदरी अहीर भी थे, जो दक्षिण अफ्रीका की लड़ाई में उनके साथ शामिल थे.
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में जिन महत्वपूर्ण लोगों को याद किया है, उनमें बदरी अहीर भी शामिल हैं.गांधी जी को जब अफ्रीका में निरामिषहारी गृह के लिए पैसों की जरूरत पड़ी, तो पैसों के साथ बदरी खड़े थे. उन्होंने कहा – ‘भाई, इन पैसों का क्या? मैं कुछ ना जानूं. मैं तो आपको ही जानता हूं.’ बदरी के पैसे में से गांधी ने हजार पौंड निरामिषहारी गृह के लिए ले लिये थे.
महात्मा गांधी ने बदरी को इस तरह याद किया है – यह मुवक्किल विशाल हृदय का विश्वासी था. वह पहले गिरमिट में आया था. उसका नाम बदरी था. उसने सत्याग्रह में बड़ा हिस्सा लिया था.
वह जेल भी भुगत आया था.महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में बदरी की चर्चा चरित्रवान हिंदुस्तानी के रूप में की है. इन लोगों ने अपने दुखों को मिटाने के लिए स्वतंत्र व्यापारी वर्ग के मंडल से भिन्न एक मंडल की स्थापना की थी. उनमें कुछ बहुत शुद्ध हृदय के उदार भावना वाले हिंदुस्तानी थे. उनमें से प्रायः बिहार-यूपी जैसे प्रदेशों से और दक्षिण के तमिल, तेलगु प्रदेश से इकरारनामों के अनुसार आये थे.
महात्मा गांधी ने लिखा है – बदरी से मेरा बहुत परिचय हो गया था. उन्होंने सत्याग्रह में सबसे आगे रह कर हिस्सा लिया. उन्होंने एक अतिशय प्रिय नाम खोज लिया था. वे मुझे ‘भाई’ कह कर पुकारने लगे. दक्षिण अफ्रीका में अंत तक मेरा यही नाम रहा. जब ये गिरमिट मुक्त हिंदुस्तानी मुझे भाई कहकर पुकारते थे, तब मुझे उसमें खास मिठास की अनुभूति होती थी.
चंपारण के एसपी ने बदरी अहीर के बारे में शाहाबाद के एसपी को लिखा – हेतमपुर का बदरी अहीर, थाना जगदीशपुर, जिला शाहाबाद (अब भोजपुर) वह दक्षिण अफ्रीका में गांधी के साथ था. अभी (चंपारण) आया है. सरकार यह जानना चाहती थी कि बदरी की पारिवारिक पृष्ठभूमि कैसी थी.

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