दिल्ली के निकट गुरुग्राम के एक 18 वर्षीय स्कूली छात्र ने ऐसा कारनामा कर दिखाया है, जिसकी बदौलत उसे यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोलुशंस नेटवर्क (एसडीएसएन) के यूथ सोलुशंस रिपोर्ट के पहले संस्करण में स्थान दिया गया है. अनुभव वाध्वा नामक इस स्कूली छात्र ने ‘टायरलेसली’ का गठन किया है, जो टायरों को जलाने से पैदा होने वाली पर्यावरण प्रदूषण संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए इनोवेटिव समाधान तलाशने में जुटा है.
संयुक्त राष्ट्र ने दुनियाभर से ऐसे 50 स्टार्टअप्स का चयन किया गया है, जो दुनिया में बड़ा बदलाव लाने में सक्षम हो सकते हैं, और इसी के तहत अनुभव के स्टार्टअप को चुना गया है. आज के स्टार्टअप आलेख में जानते हैं इस स्टार्टअप और यूनाइटेड नेशंस सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोलुशंस नेटवर्क समेत इससे संबंधित विविध पहलुओं के बारे में …
अनुभव वाध्वा ने स्कूल से घर जाते समय रास्ते में एक दिन लोगों को बड़ी संख्या में टायरों को जलते हुए देखा. पुराने और बेकार हो चुके टायरों में वहां लगायी गयी आग से अत्यधिक हीट निकल रही थी. अनुभव ने देखा कि टायरों के जलाने से व्यापक तादाद में धुआं निकल रहा है. बाद में उसने यह भी जाना कि इससे कितनी ज्यादा जहरीली गैस वायुमंडल में घुलती है और पर्यावरण का इससे कितना ज्यादा नुकसान होता है.
अनुभव कहते हैं, ‘किसी काे भी टायरे जलाते हुए देख मैं सोचने लगता हूं कि इससे पर्यावरण को कितना नुकसान हो रहा है. टायरलेसली की स्थापना का विचार यहीं से पैदा हुआ. पर्यावरण को होनेवाले नुकसान को बचाने के लिए ही इस स्टार्टअप का गठन किया गया, जो एक सक्षम प्लेटफॉर्म मुहैया कराते हुए टायरों के इस्तेमाल को पूरी तरह से बंद करने में कामयाब हो सकेगा.’
टायरों की रिसाइक्लिंग करता है टायरलेसली
टायरलेसली का मकसद भविष्य में ज्यादा-से-ज्यादा सस्टेनेबल तरीकों के जरिये लोगों को स्मार्ट चीजों की ओर प्रेरित करना है. टायरलेसली की आधिकारिक वेबसाइट पर बताया गया है कि भारत में प्रत्येक वर्ष करीब 10 करोड टायरों को रिसाइकिल करने की जरूरत पडती है. इसका मतलब हुआ रोजाना 2,75,000 टायर या 675 शिपिंग कंटेनर या 2,500 टन टायर.
इस स्टार्टअप का मानना है कि रिसाइक्लिंग यान किसी चीज को हरित तरीकों से निपटाने के बारे में सीखने जैसे कार्य लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर करना चाहिए. हमारे ऐसा करने से हमारी धरती सुरक्षित रहेगी और आनेवाले समय में इसका व्यापक असर हो सकता है. हम अकेले ऐसा नहीं कर सकते. स्थानीय निकायों, समुदायों, कूड़ा बटोरने वालों आदि के साथ मिल कर साझेदारी में इस कार्य को आगे बढ़ाया जायेगा, जिससे जीवन को ज्यादा-से-ज्यादा सस्टेनेबल बनाया जा सकेगा और लाखों लोगों को हमारे इस अभियान से जोडा जा सकेगा.
गुरुग्राम निवासी अनुभव द्वारा स्थापित इस स्टार्टअप को ऐसे डिजाइन किया गया है, ताकि लोग अपनी धरती को सुरक्षित रखने में योगदान दे सकें. इस अभियान की शुरुआत वर्ष 2015 में हुई थी, जिसने उसी वर्ष कारोबार का स्वरूप हासिल किया. हालांकि, इसका पहला प्रोजेक्ट जनवरी, 2016 में शुरू हुआ, लेकिन उसके बाद यह अनुभव के सपनों तक सीमित नहीं रहा और इसे आगे बढाने के लिए बहुत लोग सामने आये. टायरलेसली का मकसद टायरों की रिसाइकिलिंग की प्रक्रिया को देशभर में फैलाना है.
कोलंबिया के अर्थ इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर और अमेरिका के जाने माने अर्थशास्त्री जेफरी सैच के नेतृत्व में गठित विशेषज्ञों के पैनल ने इस स्टार्टअप का चयन किया है.
क्या है इसका मिशन
– टायर-वेस्ट यानी खराब हो चुके टायर फेंके जाने वाले जगहों की पहचान करना, जिसमें टायर फिटर्स, सर्विस स्टेशन, गैरेज और और सामान्य प्वॉइंट हो सकते हैं.
– सिस्टम के लॉजिस्टिकल हिस्से का चयन :
– एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना :
यह ऐसे एप्लीकेशंस और मार्केट्स के रिसर्च व डेवलपमेंट को प्रोत्साहित करता है, जिसका इस्तेमाल एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स के लिए मैटेरियल बनाने में किया जा सकता है.
– मॉनीटरिंग और रिपोर्टिंग :
अवैध तरीकों से एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है. इसके लिए समुचित मॉनीटिरंग और रिपोर्टिंग पर जोर दिया गया है.
भारत के लिए एक्शन प्लान
– सामुदायिक सहभागिता को मोबिलाइज करना.
– सभी को इसके लिए जिम्मेवार होने का एहसास कराते हुए संबंधित योजनाओं में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना.
– लैंडफिल्स साइटों यानी कचरा फेंके जानेवाले जगहों, अवैध निर्यात या अवैध डंपिंग जैसे कार्यकलापाें पर निगरानी.
– मौजूदा तरीकों से ज्यादा स्मार्ट और सुरक्षित तरीकों से इसे निपटाने पर जोर देना.
अनुभव वाध्वा
अनुभव वाध्वा की पहचान एक तकनीकी उद्यमी, डिजाइनर, बिग डाटा एनालिस्ट, कंप्यूटर प्रोग्रामर और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में कायम हो चुकी है. टेक एप्टो के वे फाउंडर और सीइओ हैं. सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के मकसद से उनका विजन काफी व्यापक है और इसके लिए अनुभव स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में सुधार के लिए कोलेबोरेटिव टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म तैयार करना चाहते हैं. इसके लिए वे सरकारों, विविध एजेंसियों समेत संबंधित प्रमुख संगठनों और फाउंडेशंस को आपस में संबद्ध करने में जुटे हैं.
अनुभव की तकनीकी और उद्यमिता कुशलता को देखते हुए अनेक कारोबारी वेंचर्स उन्हें मदद मुहैया करा रहे हैं. अपने इनोवेटिव नजरिये के कारण अनुभव को वर्ष 2013 में देश का सबसे युवा सीइओ होने का खिताब भी दिया जा चुका है. कई टीवी चैनलों ने उन पर
डाॅक्यूमेंट्री भी बनायी है.
सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोलुशंस नेटवर्क
की यूथ सोलुशंस रिपोर्ट
यूथ सोलुशंस रिपोर्ट का पहला संस्करण हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यू यॉर्क में जारी किया गया है, जिसमें दुनिया की कठिनतम समस्याओं को सुलझाने वाले और युवाओं द्वारा संचालित 50 प्रोजेक्ट को चुना गया है.
यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सोलुशंस नेटवर्क यानी एसडीएसएन यूथ द्वारा तैयार की गयी इस रिपोर्ट में ऐसे युवाओं के उद्यमों काे चुना गया है, जिन्होंने धरती की बड़ी समस्याओं को निपटाने के लिए एक अलग नजरिया पेश किया है. इसमें गरीबी, असमानता, स्वच्छ और कम लागत में हासिल होने वाली ऊर्जा, स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच जैसे मसलों को फोकस किया गया है. साथ ही इन समस्याओं से निपटने के लिए इनोवेटिव समाधान सुझाये गये हैं.
एसडीएसएन यूथ के ग्लोबल कॉर्डिनेटर सिआमक सैम लोनी का कहना है, ‘युवा सतत विकास में योगदान दे रहे हैं, लेकिन उन्हें यह महसूस होता है कि इससे पूरी दक्षता के साथ निपटने और इसके संरक्षण की दिशा में उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. इन चुनौतियों में दृष्टिकाेण का अभाव, वित्तीय कमी और प्रशिक्षण व तकनीकी सहायता की कमी जैसी चीजें शामिल हैं.’ सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के मकसद से और संबंधित समस्याओं को व्यावहारिक तरीके से निपटने के लिए वैश्विक साइंटिफिक और तकनीकी विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2012 में संयुक्त राष्ट्र के तत्कालीन महासचिव बान-की-मून ने एसडीएसएन का गठन किया था.
ऑफिस मीटिंग को कैसे बनाएं सार्थक
अक्सर देखा गया है कि लगातार आयोजित की जानेवाली मीटिंग से वक्त की बड़ी बर्बादी होती है. और जैसे-जैसे कर्मचारी संगठन में वरिष्ठ ओहदे की ओर अग्रसर होते हैं, वैसे-वैसे मीटिंग रूपी यह दैत्य समय को और ज्यादा बर्बाद करने लगता है. इससे दिनभर बहुत सी गतिविधियों को अंजाम देने के बावजूद नतीजे बेहद कम हासिल हो पाते हैं, जिससे उन्हें दिन के आखिर में आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती है. ऐसे में निम्न पहलुओं को ध्यान में जरूर रखा जाना चाहिए :
वक्त की बर्बादी : मीटिंग्स अब एक तरह से फैशन बन चुके हैं. किसी भी तरह का कोई छोटा मसला सामने आने पर बॉस अपने सेक्रेटरी को मीटिंग आयोजित करने का निर्देश दे देते हैं. यह उच्च रूप से उत्पादक कार्यों के घंटों को बर्बाद करती है. प्रबंधक स्तर के कर्मचारियों के लिए 40 से 50 फीसदी तक का समय इस कारण से बर्बाद चला जाता है.
स्टेटस अपडेट मीटिंग : नियमित रूप से होनेवाली ‘स्टेटस अपडेट मीटिंग्स’ या ‘ब्रीफिंग बाई द बॉस ऑर फॉर द बॉस’ से बहुमूल्य वक्त बर्बाद होता है और ज्यादातर लोग यह शिकायत करते हैं कि इन मीटिंग से उन्हें कोई बड़ा काम करने में किसी तरह की मदद नहीं मिलती है.
पदानुक्रम में आनेवाले कनिष्ठ कर्मचारी इन बैठकों में बिग बॉस के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए स्टेटस रिपोर्ट की तैयारी में जुटे रहते हैं, जिसमें बहुत ज्यादा समय खराब होता है. अगले स्टेटस अपडेट मीटिंग या ब्रीफिंग्स की तैयारी में भी बड़ी संख्या में लोग जुटे रहते हैं. कितनी वक्त की बर्बादी है यह सब?
प्रतिभागियों की ऊर्जा का क्षय : एक बार में तीन या चार घंटों तक या फिर पूरे दिन चलनेवाली लंबी बैठकें नीरस हो जाती हैं और कई बार उनसे कुछ हासिल नहीं हो पाता है. प्रतिभागियों की ऊर्जा का क्षय होता है और वे खराब फैसले ले सकते हैं या उनकी च्वॉइस बदल सकती है. सभी व्यापारिक बैठकों से प्राप्त होने वाले परिणामों के प्रति फोकस होना चाहिए और प्रतिभागियों द्वारा उसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता कायम रखनी चाहिए. आधिकारिक बैठकों का इस्तेमाल केवल पेशेवर मकसद के लिए बतौर प्लेटफॉर्म हो सकता है.
एक-एक करके सभी संबंधित लोगों से बात : बैठक केवल तब ही रखी जाये, जब वह बहुत जरूरी हो. कई बार आपको बहुत से विभागाध्यक्षों की एकसाथ जरूरत होती है, ताकि आपके द्वारा लिये जा चुके फैसले को समर्थन मिल सके. ऐसे फैसले लेने के लिए कभी भी बड़ी बैठकों का सहारा नहीं लेना चाहिए. समस्या के बारे में एक व्यक्ति को जानकारी देनी चाहिए और विस्तार से चर्चा हो चुके प्लान ऑफ एक्शन के बारे में निचले स्तर के कर्मचारी को बता कर एक-एक करके सभी संबंधित लोगों से बात करनी चाहिए. इस बैठक में सभी से एक अौपचारिक अनुमोदन मिलने के बाद उसे आगे बढ़ाएं.
अमेरिका में स्टार्टअप से जुड़े मुख्य आंकड़े
51 फीसदी छोटे व्यापारों के मालिक 50 से 88 वर्ष की उम्र के हैं, जबकि 33 फीसदी 35 से 49 वर्ष उम्र समूह के हैं. केवल 16 फीसदी ही 35 वर्ष से कम उम्र के हैं.
69 फीसदी अमेरिकी उद्यमी अपने घर से ही उद्यमिता की शुरुआत करते हैं.
50 फीसदी से ज्यादा छोटे व्यावार पहले चार वर्षों में असफल होते पाये गये हैं.
46 फीसदी तक योगदान है छोटे कारोबारों के असफल होने में दक्षता की कमी होना.
30 फीसदी कारण पाया गया है छोटे उद्यमों के नाकामयाब होने में प्रबंधकीय अनुभव का अभाव होना.
13 फीसदी कारण में शामिल है- कारोबार की अनदेखी, फर्जीवाड़ा और आपदा.
11 फीसदी कारण पाया गया है लघु उद्यम के असफल होने का वस्तुओं या सेवाओं के क्षेत्र में अनुभव की कमी होना.
(स्रोत : स्मॉल
बिजनेस ट्रेंड्स)