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खूंटों से बंधे लोग

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दिलबाग सिंह विर्क संपर्क : 095415-21947 घर में घुसते ही रमेश ने मोबाइल पर वाई-फाई ऑन किया. व्हाट्सएप के नोटिफिकेशन्स देखे. सबसे ज्यादा मधु के मैसेज थे. शुरुआत हेल्लो, हाय के साथ थी, फिर स्माइलीज थी, नीली, लाल फिर कानों में से धुआं निकालती गुस्से से भरे चेहरे वाली औरत की तस्वीर थी और आखिर […]

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दिलबाग सिंह विर्क
संपर्क :
095415-21947
घर में घुसते ही रमेश ने मोबाइल पर वाई-फाई ऑन किया. व्हाट्सएप के नोटिफिकेशन्स देखे. सबसे ज्यादा मधु के मैसेज थे. शुरुआत हेल्लो, हाय के साथ थी, फिर स्माइलीज थी, नीली, लाल फिर कानों में से धुआं निकालती गुस्से से भरे चेहरे वाली औरत की तस्वीर थी और आखिर वाला मैसेज था ‘किसके साथ आवारागर्दी कर रहे हो.’
रमेश पिछले चार दिनों से ऑफिशियल टूर पर था. कार्यक्रम अचानक बना था. रमेश के दफ्तर में इंटरनेट चलाने पर रोक थी. ऐसा नहीं कि सभी इस आदेश का अक्षरश: पालन करते थे लेकिन रमेश थोड़ा भावुक किस्म का इंसान था और वह नहीं चाहता था कि इस बात के लिए कोई उसे टोके, इसलिए उसने ऑफिस ऑवर में इंटरनेट न चलाने की आदत बना ली थी, इसीलिए वह नेट पैक भी नहीं डलवाता था. ऑफिस का टाईम 10 से 4 बजे तक था. सुबह वह घर से 9 बजे के बाद ही निकलता था और पांच बजे वापस आ जाता था. जाने से पहले और आने के बाद उसके पास फुर्सत ही फुर्सत थी. टूर पर जाने की सूचना उसे ऑफिस पहुंचने के बाद मिली. वह तुरंत घर लौटा और जरूरी सामान लेकर मुंबई चला गया. जाते समय मधु को मैसेज नहीं कर पाया. फोन करने की उसने सोची थी मगर वह झिझक गया. मधु उसकी व्हाट्सएप फ्रेंड थी.
‘सॉरी, ऑफिस के कार्य से मुंबई जाना पड़ा. जाते समय बता नहीं पाया. अभी वापस लौटा हूं. नहाया भी नहीं, सबसे पहले तुम्हें मैसेज किया है.’ रमेश ने मधु को मैसेज किया.
जब कुछ समय तक मैसेज सीन नहीं हुआ तो उसने दोबारा मैसेज किया ‘अच्छा डिनर करके बात करते हैं.’
रमेश उठकर नहाने चला गया. मधु से उसका परिचय फेसबुक पर हुआ था. फेसबुक पर वह कब से उसकी फ्रेंड लिस्ट में थी, फ्रेंड रिक्वेस्ट उसने भेजी थी या आई थी, उसे कुछ याद नहीं. मधु से उसकी सीधी बात अढाई-तीन साल पहले फेसबुक पर उसके व्हाट्सएप के बारे में डाले गए स्टेट्स से हुई थी. उसने उसी दिन व्हाट्सएप इंस्टाल किया था. उसके कुछ दोस्त इस स्टेटस पर कमेन्ट कर रहे थे.
मधु ने भी कमेन्ट किया था लेकिन वह उसे संबोधित न होकर उसके दोस्त अखिल को संबोधित था. इसी स्टेटस पर अखिल और मधु की कमेन्ट के माध्यम से बातचीत चल पड़ी तो रमेश भी बीच में कूद पड़ा. रमेश से मधु का एक कमेन्ट समझने में चूक हुई. उसे लगा कि मधु उसे व्हाट्सएप पर ऐड करने के लिए कह रही है तो उसने मधु का मोबाइल नम्बर पूछ लिया जिस पर मधु ने कहा कि वह अपना नम्बर किसी को नहीं देती. सॉरी कहकर रमेश ने बात समाप्त कर दी मगर उसे बड़ा गिल्ट फील हो रहा था. उसे लग रहा था कि एक शरीफ आदमी को एक शरीफ औरत से बिना जान पहचान के नम्बर नहीं मांगना चाहिए था. रमेश अब दिल्ली में रहता है मगर वह एक छोटे से कस्बे में पला बढ़ा था. नौकरी मिलने के बाद ही वह दिल्ली आया था और कस्बे के संस्कार उसे आगे से ऐसी भूल न करने के लिए सचेत कर रहे थे.
इस घटना के बाद मधु और रमेश अक्सर फेसबुक पर टकराने लगे थे. एक-दूसरे की फोटो और स्टेटस को लाइक करते, कमेन्ट करते. धीरे-धीरे चैट-बॉक्स में भी हाय-हेल्लो होने लगी लेकिन रमेश अब पुरानी गलती दोहराना नहीं चाहता था. एक दिन बातचीत के दौरान ही मधु ने उससे पूछा था कि कहीं तुम्हें यह तो नहीं लगता कि मेरी आईडी फर्जी है.
नहीं, नहीं, मैं ऐसा नहीं सोचता.
ओके, वैसे फर्जी आईडी बहुत हैं.
‘हां, मगर क्या फर्क पड़ता है.’ रमेश ने बात से किनारा करते हुए कहा.
‘हां, ये तो है, फिर भी अगर तुम्हें लगे तो मेरे साथ फोन पर बात कर सकते हो. मैं आपको नम्बर बता दूंगी लेकिन इसे मैं रूटीन में यूज नहीं करती’
‘नहीं, मुझे कोई शक नहीं और न ही मुझे कोई परीक्षा लेनी है.’ रमेश ने शराफत दिखाते हुए कहा.
इसके बाद समय फिर आहिस्ता-आहिस्ता बीतता रहा. दोनों उसी तरह से चैटिंग करते थे कि एक दिन मधु ने ख़ुद उसका व्हाट्सएप नम्बर पूछा और फिर दोनों फेसबुक फ्रेंड से व्हाट्सएप फ्रेंड हो गए.
नहाकर आने के बाद वह सीधा डाइनिंग टेबल पर पहुंचा. यहां उसकी पत्नी सुनीता और बेटा रिशु उसका इंतजार कर रहे थे. सुनीता और रिशु ही उसे एयरपोर्ट से लेकर आये थे. आते ही सुनीता किचन में चली गयी थी और रिशु टीवी देखने लगा था. अब तीनों फिर इकट्ठे थे.
खाने के साथ-साथ सामान्य बातचीत हो रही थी लेकिन रमेश का ध्यान मधु पर अटका हुआ था. साल भर से वे व्हाट्सएप पर चैट करते आ रहे थे. चैट में जोक्स, वीडियो, चुटीली बातें सब कुछ चलता था. मधु जानती थी कि रमेश शादी-शुदा है और उसे एक बेटा भी है. मधु ख़ुद भी तो शादी-शुदा थी. उसकी बेटी 8 साल की और बेटा 6 साल का था. दोनों का शादी-शुदा होना कोई समस्या नहीं था, आखिर वे दोस्त ही तो थे.
‘दोस्त !’ रमेश कभी-कभी परेशान हो जाता था. उसका छोटे कस्बे में पैदा होना शायद इसका एक कारण था, तभी तो गुलाब के फूल, आंख मारते स्टिकर, गर्मागर्म जोक्स उसे हैरान करते थे. फेसबुक पर जब वह किसी महिला की फोटो लाइक करता या उस पर कमेन्ट करता तो मधु तुरंत उसे मैसेज करते थी कि किधर हाथ मार रहे हो. वह अक्सर यह जताती थी कि उसे रमेश का किसी और औरत से बात करना अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए वह कभी-कभी पूछती भी थी कि तुम्हारी और कितनी महिला दोस्त हैं. रमेश समझ नहीं पाता था कि मधु एक प्रेमिका-सी ईष्या क्यों दिखाती है.
खाना खाकर रमेश वापस अपने बेडरूम में आ गया. मधु को हेल्लो का मैसेज भेजा. न जाने क्यों उसका दिल धड़क रहा था. रमेश को दो महीने पहले घटी घटना याद आ गयी. दूसरी गलती की थी. मधु उस दिन भी वैसी ही बातें कर रही थी जिससे यह झलकता था कि वह सिर्फ उसी से बात करे. रमेश ने उत्साहित होकर ‘किस’ का स्टिकर भेज दिया.
मधु ने पूछा ‘ये क्या है ?’
‘बस मन में जज्बात आये तो भेज दिया. क्या इसका अर्थ तुम नहीं समझती.’ रमेश पर उसके कस्बाई संस्कार फिर हावी हो गए थे और उसने बड़े गोल-मोल ढंग से प्रेम निवेदन किया था.
मधु ने सिर्फ इतना कहा कि हम अच्छे दोस्त हैं. फिर वह बताने लगी कि वह अपने पति को कितना प्यार करती है. वैसे पति की बातें वह पहले भी करती थी और कभी भी उसने ऐसा जाहिर नहीं किया था कि वह पति से नाराज हो या उससे उकता गई हो. रमेश ने तब अपनी स्थिति भी देखी. वह भी सुनीता से प्रेम करता है और सुनीता को छोड़कर किसी दूसरी औरत से जुड़ने के ख्याल उसके मन में कैसे आए इससे वह अचंभित था. रमेश सुस्त पड़ गया था लेकिन मधु उसे बार-बार जता रही थी कि उसने बुरा नहीं माना और हम अच्छे दोस्त बने रहेंगे.
कुछ भी हो, रमेश को झटका-सा लग चुका था. इसके बाद भी उनकी चैट नियमित रूप से चल रही थी. रमेश के मन के किसी कोने में कोई डर बैठा था तभी उसने इस घटना के बाद कभी मधु को कॉल नहीं किया था हालांकि इस घटना से पूर्व वे आपस में कॉल कर लेते थे. इसी कारण उसने मुंबई जाने की सूचना उसने कॉल करके नहीं दी थी.
मधु अब ऑनलाइन थी. मैसेज सीन हो चुके थे मगर न रिप्लाई आया था और न ही टाइपिंग का ऑप्शन आ रहा था. रमेश अधीर हो उठा. आखिर में उसने फिर एक गलती करने का फैसला लिया, हालांकि दिल की धड़कनें तेज हो गई थी. उसने कान पकड़े हुए एक सेल्फी ली और मधु को सेंड कर दी.
फोटो सीन हुई
रिप्लाई में स्टीकर था – आंसू बहाता हुआ
‘नाराज हो.’
‘हम्म्म्म….’
‘अचानक जाना पड़ गया. तुम जानती तो हो कि मैं नैट पैक नहीं डलवाता.’
‘कॉल तो कर सकते थे.’
‘सॉरी, काम में इतना बिज़ी था कि ध्यान ही नहीं रहा.’
‘ध्यान नहीं रहा या…’
‘सच कहता हूं ध्यान नहीं रहा.’
‘तुम्हें बहुत मिस किया. कुछ करने को दिल ही नहीं कर रहा था. पहले सोचा कि मैं कॉल कर लूं फिर मुझे गुस्सा आ गया.’
‘घर में तो सब ठीक हैं.’
‘हां, मगर….’
‘मगर क्या ?’
‘तुमसे बात किए बिना चैन नहीं मिलता. आगे से ऐसा किया तो….’
‘तो….’ धड़कते दिल के साथ रमेश ने पूछा.
‘तभी बताउंगी’ साथ ही उसने एंगर दर्शाता स्टीकर भेज दिया.
‘ओके बाबा, आगे से कोई गलती नहीं होगी.’ रमेश ने खुद को नियंत्रित किया और बात का रुख बदलते हुए पूछा ‘पतिदेव’
‘लैपटॉप पर काम कर रहे हैं’.
‘डिनर हो गया.’
‘हां, अब मैं फ्री हूं तुमसे बात करने के लिए.’ उसने ‘हा हा हा’ के साथ मैसेज का अंत किया.
रमेश का ध्यान पत्नी पर गया, जो अब टीवी देख रही थी. उसका फोन रमेश के सामने ही था. कस्बाई संस्कार सोच रहे थे कि दिन भर उसकी पत्नी भी फ्री होती है. वह दिल्ली की ही है और शुरू से इस माहौल में पली है. व्हाट्सएप और फेसबुक का प्रयोग करती है. एक बार उसने पत्नी के फोन को चैक करने की सोची मगर अब वह बड़े शहर में बड़े पद पर काम करता है. ये दकियानूसी ख्याल अब अच्छे नहीं लगते. जब तक वह इस सोच के चक्कर से बाहर निकला तब तक मधु के तीन मैसेज आ चुके थे. वह पूछ रही थी कि कहां खो गये.
‘कहीं नहीं.’
‘फिर रिप्लाई नहीं किया.’
‘बस यूं ही…’
‘मुंबई में कोई नई सहेली तो नहीं बना ली.’
‘नहीं, नहीं, हम खूंटों से बंधे लोग क्या सहेली बनाएंगे.’
‘खूंटे…..?’
‘घर-गृहस्थी खूंटे ही तो हैं.’ हा हा हा कहकर रमेश ने अपनी इस गंभीर बात को मजाक का रंग देने की कोशिश की.
‘ह्म्म्मम्म, कभी-कभी छूट तो मिल ही जाती होगी’ – उसने आंख मारती स्माइली के साथ मैसेज भेजा.
‘छूट तो कहां मिलती है, बस खूंटे पर बंधे उछल-कूद कर लेते हैं.’ रमेश ने भी उसी स्माइली के साथ रिप्लाई किया.
‘थोड़ा-बहुत उछलते रहा करो, ठीक रहता है.’ जीभ निकालती स्माइली के साथ मधु का रिप्लाई आया.
तभी सुनीता ने टीवी बंद कर दिया. रमेश ने इसकी सूचना मधु को दी और शुभ रात्रि के संदेश के साथ दोनों अपने-अपने खूंटों पर वापस लौट आए.
(दिलबाग सिंह विर्क पेशे से अध्यापक हैं. कई साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त कर चुके दिलबाग की अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं)

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