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4.50 लाख घरों तक पहुंचायी बिजली

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जो सरकारें न कर पायीं, वह हांडे की सोच ने कर दिखाया ब्रजेश सिंह सामाजिक कार्यकर्ता हरीश हांडे के प्रयास से कर्नाटक के चार लाख 50 हजार ग्रामीण परिवार तक बिजली पहुंच रही है. आखिर यह सब कैसे हुआ संभव. एक्सएलआरआइ के कार्यक्रम में भाग लेने जमशेदपुर आये हांडे ने प्रभात खबर के साथ विस्तार […]

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जो सरकारें न कर पायीं, वह हांडे
की सोच ने कर दिखाया
ब्रजेश सिंह
सामाजिक कार्यकर्ता हरीश हांडे के प्रयास से कर्नाटक के चार लाख 50 हजार ग्रामीण परिवार तक बिजली पहुंच रही है. आखिर यह सब कैसे हुआ संभव. एक्सएलआरआइ के कार्यक्रम में भाग लेने जमशेदपुर आये हांडे ने प्रभात खबर के साथ विस्तार से बात की.
सरकारें दावा करती रहती हैं, इतने घरों तक बिजली पहुंचा देंगे और न जाने क्या-क्या, लेकिन वह शायद ही कभी पूरा होता है. लेकिन कर्नाटक के एक सामाजिक कार्यकर्ता, हरीश हांडे ने वह कर दिखाया है, जो शायद सरकारें भी नहीं कर पातीं. हरीश हांडे ने कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों में करीब 4 लाख 50 हजार परिवारों तक बिजली पहुंचा दी है. हांडे की कंपनी सेल्को का लक्ष्य होता है ऐसे परिवारों तक सोलर एनर्जी के जरिये बिजली पहुंचाने का, जो दो से तीन हजार रुपये प्रतिमाह कमाते हैं और उसमें से सौ से डेढ़ सौ रुपये किरोसिन या मोमबत्तियों पर ही खर्च कर देते हैं या लगभग 40 रुपये मोबाइल फोन की चार्जिंग में लगा देते हैं.
वे ऐसे परिवारों को सोलर लाइट के जरिये बिजली की सुविधा पहुंचाते हैं, जिसका शुल्क वे किस्तों में ग्रामीण बैंकों में जमा कर देते हैं. उन्हें रेमन मैग्सेसे अवार्ड भी मिल चुका है. यह पुरस्कार उन्हें गरीबों के घर तक सौर ऊर्जा पहुंचाने के लिए दिया गया है. इसके अलावा भी वे कई अवार्ड जीत चुके हैं.
हरीश हांडे कर्नाटक के बेंगलुरु में पैदा हुए और अपनी शिक्षा ओड़िशा से पूरी की. हरीश हांडे के एक अभियान के चलते कर्नाटक में 250 स्कूलों में सोलर सिस्टम व्हाइट बोर्ड से पढ़ाई हो रही है. हांडे ने कहा कि कर्नाटक के 250 ऐसे गांव, जहां बिजली नहीं है, सोलर सिस्टम युक्त प्रोजेक्टर से पढ़ाई हो रही है.
यह नया प्रयोग है जो काफी सफल हो रहा है. उन्हें लगता है कि उन्होंने पीएचडी करने में तीन साल बेकार किये, नहीं तो वे और बेहतर कर सकते थे. श्री हांडे ने बताया कि उन्होंने अमेरिका में तीन साल रहकर पीएचडी की, लेकिन अब लगता है कि वे तीन साल उन्होंने बरबाद कर दिये. इससे बेहतर तो यह होता कि वे भारत में रहकर यहीं काम करते. इसके लिए जरूरी है कि सरकारें इस ओर ध्यान दें कि इंजीनियरों को बेहतर प्लेफॉर्म मिल सके.
बूढ़ी महिला की अंतिम इच्छा ने इस रास्ते पर हांडे को लाया
हरीश हांडे ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि वे दक्षिणी कर्नाटक के गांवों में भ्रमण कर रहे थे. उसी वक्त एक 70 वर्षीया बुजुर्ग महिला उनके पैर छूकर कहने लगी कि वह मरने से पहले अपने घर में बिजली देखना चाहती है. उक्त महिला ने जोर दिया कि वह इसके बदले शुल्क देने को तैयार है. उन्होंने बताया कि उस समय वे समझ ही नहीं पाये कि इसका जवाब कैसे दें. उक्त बुजुर्ग महिला की बात दिल को छू गयी. उन्होंने तभी प्रण लिया कि वे घरों तक खुद बिजली पहुंचायेंगे, जब जनता पैसे देने को तैयार है तो बिजली क्यों नहीं दी जा सकती है? उसके बाद उन्होंने अभियान चलाया और एक-एक कर उन्होंने कर्नाटक के ग्रामीण इलाकों के करीब 4.50 लाख परिवारों तक सौर ऊर्जा से बिजली पहुंचा दी.
देश-विदेश भ्रमण ने बदली सोच
हांडे आइआइटी, खड़गपुर से एनर्जी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर चुके हैं. कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद वे अमेरिका चले गये और वहां मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर्स की डिग्री लेकर आये.
श्री हांडे ने बताया कि एक स्टडी टूर के लिए वे कैरीबिया गये और वहां उन्होंने गरीबों के घर रौशन करने के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग होते देखा, तो उनकी सोच ही बदल गयी. पहले वे भी सौर ऊर्जा को लेकर बड़े-बड़े प्लान बनाते थे, लेकिन फिर वे उन योजनाओं पर ध्यान देने लगे, जिनसे समाज को सीधे फायदा मिले.
हजार रुपये से शुरू की कंपनी, 14.5 करोड़ पहुंचा टर्नओवर
हांडे ने कैरीबियाई देशों के बाद भारत और श्रीलंका का व्यापक दौरा किया और महसूस किया कि यहां मिलनेवाले अनुभव मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री से ज्यादा महत्त्वपूर्ण हैं. बस उन्होंने हजार रुपये की मामूली रकम से सेल्को इंडिया कंपनी की शुरुआत की. श्री हांडे ने स्पष्ट किया कि उनकी कंपनी कोई एनजीओ नहीं है. उनका बिजनेस आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण तीनों मामलों में जिम्मेदारी से चलता है. इसके लिए तीनों जरूरी हैं. मोटा मुनाफा कंपनी का लक्ष्य नहीं है, बावजूद इसके उनकी कंपनी का सालाना टर्न ओवर 14.5 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. अपनी कंपनी को वे पैशन (जुनून) मानते हैं. बेंगलुरु के जेपी नगर में उनकी कंपनी सेल्को इंडिया का मुख्यालय है. अक्सर यहीं से वे अपने जन कल्याण कार्यों और योजनाओं को पूरा करते हैं.
झारखंड, बिहार, ओड़िशा में सोलर एनर्जी की काफी संभावनाएं
हांडे ने बताया कि झारखंड, बिहार और ओड़िशा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में सोलर एनर्जी की काफी संभावनाएं हैं, जिसके इस्तेमाल और जेनरेशन के लिए सरकारें उतनी गंभीर नहीं दिखतीं, जितनी दिखनी चाहिएं.
उन्होंने कहा कि वे कालाहांडी जैसी जगह में सोलर इनर्जी पर काम कर चुके हैं. सबसे ज्यादा जरूरी है कि आइटीआइ से जो इंजीनियर निकलते हैं, उन्हें सही गाइडेंस व सरकार की ओर से बैंकों के माध्यम से लोन या सहायता दिलाने की व्यवस्था होनी चाहिए. सोलर इनर्जी के अलावा यहां बायो गैस और बायो मास पर काम करने की काफी संभावनाएं हैं.
सरकार को सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा आइटीआइ से निकलने वाले इंजीनियरों और बैंकों पर. ग्रामीण इलाकों में कई ऐसे दक्ष लोग हैं, जिनके पास डिग्री नहीं है, वे इंग्लिश नहीं जानते, जिसके कारण उनकी प्रतिभा का प्रयोग नहीं हो सका है. ऐसे लोगों की पहचान कर उन्हें छोटे-छोटे लोन दिलाने की जरूरत है.

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