25.7 C
Ranchi
Sunday, February 9, 2025 | 11:23 am
25.7 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है अतीत

Advertisement

नया साल नयी उमंगें लेकर आता है, जीवन में नयी उम्मीदें जगती हैं कि जो पहले नहीं पा सके अब प्राप्त करेंगे और जो पिछले वर्षों में नहीं कर सके, वह अब करेंगे. अतीत छूटता नहीं है, वह अपनी गौरव अनुभूतियां से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और सीख के सबक भी […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

नया साल नयी उमंगें लेकर आता है, जीवन में नयी उम्मीदें जगती हैं कि जो पहले नहीं पा सके अब प्राप्त करेंगे और जो पिछले वर्षों में नहीं कर सके, वह अब करेंगे. अतीत छूटता नहीं है, वह अपनी गौरव अनुभूतियां से जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है और सीख के सबक भी कि हमने जो गलतियां कीं उन्हें आगे न दुहरायें.
अतीत की स्मृतियां जिंदगी पर बोझ नहीं होतीं, बल्कि जीवन शक्ति होती है, जो हमारे आज को संवारती है और भविष्य के सपनों में रंग भरती है. इसलिए मानव जाति का इतिहास हर कोई संजोये रखने का प्रयास करता है. वह हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है. जड़ों से कट कर कोई वृक्ष कभी फलता-फूलता देखा है क्या? इसलिए अतीत से चिढ़ना एक प्रकार की बौद्धिक बीमारी है.
कुछ लोग कहते सुने जा सकते हैं कि भारत के अतीत में क्या रखा है, लेकिन महर्षि व्यास ने कहा है – ‘वृतं यत्नेन संरक्षेत वत्तिमायातियाति च/अंक्षीणों वत्तित: क्षीणो वृत्ततस्तु हतोहत:’ यानी इतिहास को प्रयत्नपूर्वक संरक्षित कर रखना चाहिए, क्योंकि धन वैभव तो आता है, चला जाता है, लेकिन इतिहास नष्ट हो गया, तो सब कुछ नष्ट हो जाता है. अतीत में न झांकें, तो विवेकानंद को कैसे जानेंगे? वह विवेकानंद जिन्होंने विश्व में भारतीय संस्कृति की दुंदुभी बजाकर दुनिया को बताया कि आदमी का व्यक्तित्व दर्जी के सिले आधुनिक शैली के कपड़ों से नहीं, चरित्र निर्माण से निखरता है. विवेकानंद ने हिंदू धर्म को मानव धर्म कहा.
अतीत को भुला दोगे तो राम को कहां से पाओगे जिनके आदर्शों पर चल कर महात्मा गांधी देश की स्वाधीनता के बाद रामराज्य जैसी शासन व्यवस्था चाहते थे. अतीत में ही तो उपनिषद की उस उद्घोषणा की अनुगूंज है जहां ऋषियों ने हमें बताया – अमृतस्य पुत्रा वयं. हम अमृत पुत्र हैं, ‘इट, ड्रिंक एंड बी मैरी’ यानी पाश्चात्य सोच ‘खाओ-पीयो मौज करो’ के लिए हमारा जन्म नहीं हुआ है. महाराज मनु ने इस भूमि व इसकी संतति के जन्म का उद्देश्य बताते हुए कहा, एतद्देश प्रसूतस्य सकाशादग्र जन्मना/स्वं स्वं चरितं शिक्षेरन पृथिव्या: सर्व मानवा:. इस देश का जन्म ही इसलिए हुआ है कि यहां की संतति अपने चरित्र के आदर्श से विश्व में मानवता की शिक्षा दे. भारत का निर्माण ‘लोग आते गये कारवां बनता गया’ के तर्ज पर नहीं हुआ. अपने अतीत को जानने से ही हम इस भ्रम से निकल पायेंगे.
अतीत को जाने बिना हम कैसे जान पायेंगे कि अथर्ववेद के पृथ्वीसूक्त में हमारा इस धरती के साथ माता और संतान का संबंध है- माताभूमि पुत्रोहं पृथिव्या:. इस संबंध को नहीं जानने पर ही आज हम पर्यावरण विनाश के गंभीर संकट से घिरे हैं क्योंकि हम अपने सुखोपयोग के लिए धरती और प्रकृति को बर्बरता और बेशर्मी से नोच रहे हैं. भला माता के साथ कोई ऐसा जघन्य अपराध करता है. इस मातृभूमि के सम्मान की रक्षा के लिए ही सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अपने पराक्रम से शकों व हूणों जैसे बर्बर आक्रांताओं को मार भगाया. उन्हें ‘शकारि’ की उपाधि मिली और उनके नाम से नवसंवत्सर (नव वर्ष) विक्रम संवत् शुरू हुआ जो होली के 16वें दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (इस बार 29 मार्च) से शुरू होता है.
जिसे हम भुला देने को आतुर दिखते हैं उस अतीत में ही हमारे उन असंख्य देशभक्त बलिदानी हुतात्माओं की गाथाएं हैं जिनके त्याग और बलिदान के कारण आज भारत जिंदा है और एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में सीना तानकर खड़ा है. अतीत को ठीक तरह से न जानने-समझने के कारण ही हमारे कुछ विद्वान ऐसे देशभक्तों को ‘रिवॉल्यूशनरी टेररिस्ट’ तक कहने के बुद्धि विलास में उलझे रहते हैं. कुछ तो कहते हैं कि भारत में गर्व करने लायक क्या है? ऐसे ही कुछ लोग हमें अंगरेजों का शुक्रगुजार होने की सीख भी देते है कि अंगरेजों ने हमें एक राष्ट्र की तरह रहना सिखाया. उन्हें भारत के अतीत का भान ही नहीं है जहां हजारों साल पहले ऋग्वेद जिसे यूनेस्को ने भी मानव जाति की प्रथम पुस्तकों में से एक माना है, जैसे ग्रंथ में हमारे ऋषियों ने आह्वान किया.
उलटे अंगरेजों ने तो हमारी राष्ट्रीय व सांस्कृतिक चेतना को समूल नष्ट करने का लगातार प्रयास किया. फिर भी अंगरेजों का गुणगान करने वाले लोग औपनिवेशिक गुलाम मानसिकता से ग्रस्त ही कहे जा सकते हैं. अतीत की अपनी आकांक्षाओं या कमजोरियों व भूलों को ध्यान में रखकर ही युवा पीढ़ी ईस्वी सन् के इस नये साल के मौके पर कुछ रिजाल्यूशन (संकल्प) तय करती है, ताकि उनकी जिंदगी कुछ और बेहतर व सार्थक हो सके. लेकिन संकल्प सिर्फ लेने भर से पूरे नहीं हो जाते, उन्हें लगातार याद रखकर पूरा करने का प्रयत्न जी जान से किये जाने पर ही उनके पूरे होने की उम्मीद की जा सकती है. नया साल कुछ नयी प्रेरणा, जीवन का उल्लास, आनंद और प्रकृति का निखरा हुआ रूप लेकर आता है, तो ही जिंदगी खुशहाल बनेगी और हम जीवन के संकल्प पूरा करने की राह पर आगे बढ़ेंगे.
आधुनिकता का अर्थ मौज-मजे के नये-नये तरीके ढूंढ़ना नहीं है, बल्कि अच्छी सोच ही हमें आधुनिक बनाती है. ताकि हम नये दौर के जीवनोपयोगी बदलावों को अपने परिवेश के अनुकूल ढाल कर अपने मनुष्य होने की पहचान को और निखार सकें. इसीलिए भारत की संस्कृति को ‘नित नूतन-चिर पुरातन’ कहा गया है. संस्कृति जड़ नहीं होती, वह जीवन में नित्य चैतन्य जगाती है, ताकि हम अपना जीवन उच्चतर मानवीय मूल्यों से युक्त बनाकर अपने जन्म को सार्थक कर सकें. भारत की अाध्यत्मिक चेतना इसी संस्कृति की संवाहक है जो हमें प्रेम बंधुत्व, सेवा, त्याग, भक्ति व सामंजस्य जैसे जीवन मूल्यों से अलंकृत करती है.
महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी वीणा वादिनी वंदना में शायद इसी सांस्कृतिक चेतना को ‘अमृत मंत्र नव भारत में भर दे’ लिखकर व्यक्त किया है. यह सांस्कृतिक चेतना ही भारत की नाभि का अमृत कुंभ है जो उसे मरने या मिटने नहीं देता. जिसके लिए कहा गया कि ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी’. नया साल हमारे जीवन में इन मूल्यों को इस चेतना को और प्रखर बनाये ताकि हम खुद के जीवन को तो संवार सके ही, दूसरों की जिंदगी में भी खुशियों के रंग भर सके. सुखमय जीवन का यही सार है कि नवीनता में हम अपने अतीत की उन प्रेरणाओं को न भूल जाएं जो हमें मनुष्य बनाये रखने में सहायक है.
निराला की ये पंक्तियां सदा हमें नयी राह दिखाती रहेगी – ‘नव गति, नव लय, ताल छंद नव, नवल कंठ, नव जलद, जंद्रख, नव नभ के नभ विहम वृंद को नव पर नव स्वर दे’ नया साल जिंदगी में नया उजाला लेकर आये जैसा कि हमारे ऋषियों ने आह्वान किया है. ‘असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय मृत्योर्मा अमृतं गमय.’ बुराई से अच्छाई की ओर चले, अंधकार से प्रकाश की ओर चले, मृत्यु से अमरता की ओर चले. नये साल पर इससे बड़ा रिजॉल्यूशन शायद ही कुछ और हो.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें