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रेडिएशन-फ्री संग अल्ट्रा पोर्टेबल भी है यह उपकरण

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उपलब्धि : स्तन कैंसर की जांच में एक नया कदम : ‘आइ ब्रेस्ट एग्जाम’ मिहिर शाह भारत में स्तन कैंसर की जांच के लिए पारंपरिक मैमोग्राफी न सिर्फ खर्चीला है, बल्कि दर्द से भरा है. अस्पताल भी बढ़िया मैमोग्राफी मशीन लगाने से बचते हैं, चूंकि ये मशीनें महंगी होती हैं. भारत में ऐसा कोई समाधान […]

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उपलब्धि : स्तन कैंसर की जांच में एक नया कदम : ‘आइ ब्रेस्ट एग्जाम’

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मिहिर शाह

भारत में स्तन कैंसर की जांच के लिए पारंपरिक मैमोग्राफी न सिर्फ खर्चीला है, बल्कि दर्द से भरा है. अस्पताल भी बढ़िया मैमोग्राफी मशीन लगाने से बचते हैं, चूंकि ये मशीनें महंगी होती हैं. भारत में ऐसा कोई समाधान काम नहीं करेगा, जो यहां की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का ध्यान न रखता हो. इस देश में वही युक्ति चलेगी, जो सस्ती हो और पहुंच के भीतर हो. पढ़िए एक रिपोर्ट.

एक आकलन के मुताबिक वर्ष, 2013 में लगभग 70,000 औरतों की मौत स्तन कैंसर से हो गयी. अकेली बीमारी, जिसने इतनी औरतों की जीवनलीला खत्म कर दी. वर्ष 2008 के मुकाबले यह संख्या 43 फीसदी ज्यादा थी. आज की हालत यह है कि स्तन कैंसर के हर दो मरीज में से एक की जान जा रही है. इस बढ़ती मृत्यु दर की दो वजहें बतायी जाती हैं, पहली, शुरुआती निदान में विलंब और, दूसरी, स्तन जांच की सुविधाओं की कमी. शोधार्थियों के एक अाकलन के मुताबिक वर्ष, 2020 तक स्तन कैंसर से पीड़ितों की तादाद 7,50,000 तक पहुंच जायेगी. हमलोग एक ऐसे देश में हैं, जहां इलाज महंगा है. एक बड़ी आबादी के पास बेहतर इलाज की सुविधा नहीं है. पॉकेट की पहुंच के भीतर संभव इलाज की तो बात ही छोड़िए.फिलाडेल्फिया-मुंबई स्थित एक कंपनी ‘यूइ लाइफसाइंसेज’ ने ‘आइ ब्रेस्ट एग्जाम’(iBreastExam) के नाम से एक उपकरण बनाया है, जो स्तन कैंसर की जांच शुुरुआती अवस्था में ही करने में सक्षम है. यह हथेली की साइज का है.

इसमें किसी किस्म के चीरफाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है. जानकारों का मानना है कि यह भारत जैसेे विकासशील देशों के मरीजों के लिए बेहतर मददगार है.

इस उपकरण को बनाने का श्रेय जाता है 38 वर्षीय मिहिर शाह को. वह पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर हैं, ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी से डिग्री ली है. अपने कैरियर की शुरुआत हेल्थकेयर फील्ड में की. यहीं उन्होंने जाना कि वैज्ञानिकों द्वारा पेटेंट कराये गये इन्वेंशन्स के लाइसेंस के जरिए इस इन्वेंशन्स को रीयल लाइफ प्रोडक्ट्स में बदला जासकता है.

वर्ष 2005 से अब तक मिहिर ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में कई इनोवेशन किये हैं. जैसे कि बिना चीरफाड़ के हर्ट के आउटपुट का पता करना, सिर में गंभीर चोट लगी हो तो ब्रेन इंजुरी की वास्तविक स्थिति का पता करना.

वर्ष, 2006 की बात है. मिहिर की सासू मां स्तन कैंसर की शिकार हो गयी. यही वो समय था, जब मिहिर की कैंसर में उत्सुकता जगी. जब उसने आप अपने परिवार में और दोस्तों से पूछताछ शुरू की तो पता चला कि उसके आसपास कम से कम 10 महिलाएं ऐसी थीं, जो स्तन कैंसर की शिकार थीं. मिहिर बताते हैं- “ जल्द ही मुझे पता चल गया कि स्तन कैंसर के इलाज के मामले में दो तरह की दुनिया है. एक है विकसित दुनिया, जहां शुरुआती जांच और इलाज तक सबकी पहुंच है. और दूसरी है विकासशील देशों की दुनिया, जहां स्तन कैंसर का पता लग पाना ही मुश्किल है. मरीजों की पहुंच डिटेक्शन सेंटर तक है ही नहीं. इसी का नतीजा है स्तन कैंसर के शिकार मरीजों की मौत में इजाफा. ”

भारत में रेडियोलॉजिस्ट भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं, जितने की जरूरत है. बड़ी तादाद में रेडियोलॉजिस्ट की जरूरत भारत को है. विकसित देशों की तुलना में हेल्थकेयर रिसोर्स गैप काफी बड़ा है. भारत में जो पारंपरिक मैमोग्राफी होती है, वह युवतियों के लिए काफी असुविधाजनक है. नतीजों की सटीकता भी 50-60 फीसदी होती है. भारत,चीन और मेक्सिको जैैसे देश, जहां युवा आबादी काफी तेजी से बढ़ रही है, में यह एक बड़ी क्लीनिकल बाधा है. हमारे यहां समाज का मिजाज भी इतना दकियानूसी है कि यह भी शुरुआती जांच कराने से रोकता है. पारंपरिक मैमोग्राफी न सिर्फ खर्चीला है बल्कि दर्द से भरा है. अस्पताल भी बढ़िया मैमोग्राफी मशीन लगाने से बचते हैं, चूंकि ये मशीनें महंगी होती हैं. भारत में ऐसा कोई समाधान काम नहीं करेगा, जो यहां की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों का ध्यान न रखता हो. इस देश में वही युक्ति चलेगी, जो सस्ती हो और पहुंच के भीतर हो.

इन सारी स्थितियों पर सोचने के बाद मिहिर को लगा कि जिस तरह से विकसित देशों में मैमोग्राफी उपलब्ध है वैसा भारत में क्यों नहीं है. सबसे ज्यादा अहम बात है कि अमेरिका की तरह भारत में भी महिलाएं मैमोग्राफी क्यों नहीं कराती हैं. यही वो चीजें हैं, जो ‘यूइ लाइफसाइंसेज’ के जन्म का कारण बनी.

प्रोफेसर मैथ्यू कैम्पिसी के साथ मिलकर मिहिर ने एक ‘नोटच ब्रेस्टस्कैन’ उपकरण बनाया. इस उपकरण में इन्फ्रारेड फोटोग्राफी का इस्तेमाल किया गया, जो स्तन कैंसर की पहचान करता है. दो वर्ष बाद इसे यूएस एफडीए से क्लीयरैंस मिला. अभी भी मिहिर को एक ऐसे उपकरण की तलाश थी, जो युवतियों के लिए ज्यादा सुविधाजनक हो. स्तन कैंसर की जांच के लिए उन्हें अस्पताल तक न आना पड़े. दो वर्ष की अनथक कोशिश के बाद वर्ष ‘आइ ब्रेस्ट एग्जाम’ उपकरण विकसित किया. जल्द ही इसे भी यूएस एफडीए से क्लीयरैंस मिल गया. यह उपकरण रेडिएशन-फ्री तो है ही, अल्ट्रा पोर्टेबल भी है. खतरनाक किरणों से मुक्ति तो मिली ही, जहां चाहें, वहां ले जा सकते हैं. पांच मिनट के भीतर इसका आसान इस्तेमाल आशा कार्यकर्ता और एएनएम कर सकती हैं. इसमें कोई दर्द नहीं होता है और न ही कोई असहजता महसूस होती है.

हाल ही में इंडियन जर्नल ऑफ गाइनोकॉलोजिकल ऑन्कोलॉजी में एक अध्ययन छपा है, जिसमें इस उपकरण को क्लीनिकल ब्रेस्ट एग्जाम में उपयुक्त पाया गया.

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