18.8 C
Ranchi
Sunday, February 9, 2025 | 08:40 am
18.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जननायक अटल जी का जन्मदिन: ‘तुम मुझे यूं भुला न पाओगे’

Advertisement

स्वर तो यह सुर-सम्राट रफी साहब का है, लेकिन इसका दृष्टांत अगर हम अटल जी के लिए दें तो अनुचित नहीं होगा. उनका अद्भुत व्यक्तित्व, नीति-कुशलता, अतुलनीय वाग्मिता और बेजोड़ संसदीय दक्षता को कौन भुला सकता है? राजनीति के अखाड़े में ढेर सारे नेता-अभिनेता, सांसद-मंत्री या प्रधानमंत्री देखे गये, लेकिन अटल जी जैसा सोलहों कलाओं […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

स्वर तो यह सुर-सम्राट रफी साहब का है, लेकिन इसका दृष्टांत अगर हम अटल जी के लिए दें तो अनुचित नहीं होगा. उनका अद्भुत व्यक्तित्व, नीति-कुशलता, अतुलनीय वाग्मिता और बेजोड़ संसदीय दक्षता को कौन भुला सकता है? राजनीति के अखाड़े में ढेर सारे नेता-अभिनेता, सांसद-मंत्री या प्रधानमंत्री देखे गये, लेकिन अटल जी जैसा सोलहों कलाओं से परिपूर्ण और कौन? सागर की तुलना सागर से, हिमालय की हिमालय से, आकाश की आकाश से और सूर्य की केवल सूर्य से ही. उसी प्रकार अटल जी की उपमा केवल अटल जी से ही दी जा सकती है.

- Advertisement -

साहित्य की भाषा में कहें तो उपमा-उपमेय-उपमान तीनों हैं. जी हां, आज के राजनीतिक बौनों के सामने विराट! इन दिनों हमारे लोकतंत्र के मंदिर, संसद का माहौल गलीज बना हुआ है. तथ्यों और तर्कों को लेकर वाद-विवाद-संवाद की जगह घोर अराजक! हमने देखा कि पिछला सत्र भी इसी हुल्लड़बाजी की भेंट चढ़ गया. ऐसे में अकारण नहीं कि आडवाणी जैसे सौम्य नेता को संसद के अंदर सांसदों के असंसदीय आचरण पर काफी व्यथा हुई और उन्होंने अटल जी का स्मरण किया. क्यों? क्योंकि अटल जी संसदीय गरिमा के कीर्ति स्तंभ रहे. अहा! कैसा खुशनुमा होता था उनको संसद के अंदर बोलते देखना. शब्दों के अद्भुत चयन और अनोखा वाक्य-विन्यास! हाथों एवं आंखों के अनूठे हाव-भाव के बीच में उनकी जिह्वा से मानो वाग्देवी की वीणा के स्वर झड़ रहे हों! असहमति के स्वर को शालीनता से सजा कर सामनेवाले की अोर फेंकना. कभी-कभार कटुता के अंगारे को भी व्यंग्य का फूल बना कर प्रतिपक्षी पर ऐसा प्रहार करना कि वह नि:शब्द-निरुपाय होकर रह जाये. राष्ट्रकवि दिनकर ने लिखा है – ‘‘इंद्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है/सिंह से बाहें मिला कर खेल सकता है/ फूल के आगे वही निरुपाय हो जाता!’’ ऐसा ही होता था अटल जी का संसदीय घात-प्रतिघात. तभी तो एक जमाने में लोकसभा अध्यक्ष रहे अनंत शयनम आयंगार ने कहा था कि अटल जी हिंदी के सर्वश्रेष्ठ वक्ता हैं. यूं ही नहीं चंद्रशेखर और नरसिंह राव जैसे धाकड़ नेता उनको ‘गुरु’ मानते रहे.

वे जनसभाअों के बेताज बादशाह रहे. लाखों की जन-मेदिनी उनके नाम पर ही टिड्डी-दल की तरह उनको सुनने दौड़ पड़ती. मैंने सर्दी की रात और गरमी की दुपहरी में भी लोगों को अटल जी की सभाअों में उमड़ते देखा है. उनको सुनते हुए कब घंटे-दो घंटे पार कर गये, पता नहीं चलता था. अकाट्य तर्कों को लेकर अत्यंत शालीन तरीके से विरोधियों पर प्रहार करते थे. बीच-बीच में हास-परिहास के फुहारे भी! बहुधा तो यह समझना मुश्किल होता कि वे राजनीति में कविता कह रहे या फिर कविता में राजनीति? भारत माता के इतने सुंदर शब्द-चित्र लालित्यपूर्ण ढंग से रखते कि भारत के विराट स्वरूप के दर्शन हो जाते – ‘‘यह कंकड़-पत्थर-मिट्टी का टुकड़ा नहीं/यह तो जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है/ हिमालय मस्तक है… पूर्वी-पश्चिमी घाट इसकी विशाल जंघाएं हैं… कश्मीर किरीट है/ सागर इसके चरणों को पखारता है…/ यह वंदन की भूमि है, अभिनंदन की भूमि है…/’’ वास्तव में सभाओं में उनका कवि-रूप सबको सम्मोहित कर लेता! राष्ट्रभाषा हिंदी की गरिमा को अटल जी ने सड़क से लेकर संसद और संयुक्त राष्ट्रसंघ तक बढ़ाया.

समन्वय के सुमेरू अटल जी राजनीतिक मेढ़कों को तौलने की कला में माहिर रहे, जिसका परिचय उन्होंने दो दर्जन दलों को साथ लेकर पांच साल तक मजबूत सरकार चला कर दिया. स्वभाव से वह कोमल थे, लेकिन उनकी कठोरता को देश और दुनिया ने परमाणु-परीक्षण, कारगिल युद्ध और भारत-पाक आगरा शिखर वार्ता के मौके पर देखा. उनके प्रधानमंत्रित्व काल में देश के विकास के कीर्तिमान बने, साथ ही साथ भारत की प्रतिष्ठा विश्व में काफी बढ़ी. आज वे स्वास्थ्य-कारणों से मौन हैं. यह मौन देश को अखरता है. राजनीतिक गिरावट के इस दौर में उनकी याद बरबस आती है. तुलसीदास जी ने ‘दोहावली’ में जो लिखा, वह आज चरितार्थ है – ‘तुलसी पावस के दिनन भई कोकिलन मौन/ अब तो दादुर बोलिहैं हमें पूछिहैं कौन?’ जन्मदिन पर भारतीय राजनीति के विराट पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी का हार्दिक अभिनंदन!

विनय कुमार सिंह, लेखक भाजपा प्रदेश कार्य समिति के सदस्य हैं

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें