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दक्षिण की राजनीति में पर्सनैलिटी कल्ट

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!!ज्योति मल्होत्रा,वरिष्‍ट पत्रकार!! कहा जाता है कि जयललिता को एमजीआर काबू में रखना चाहते थे, लेकिन जया ने ऐसा होने नहीं दिया और न ही उन्होंने एमजीआर के स्टारडम को अपने ऊपर हावी होने दिया. यही वह खूबी है, जिसके चलते उनका पर्सनैलिटी कल्ट निखरता चला गया. जिस तरह से जयललिता के निधन के बाद […]

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!!ज्योति मल्होत्रा,वरिष्‍ट पत्रकार!!

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कहा जाता है कि जयललिता को एमजीआर काबू में रखना चाहते थे, लेकिन जया ने ऐसा होने नहीं दिया और न ही उन्होंने एमजीआर के स्टारडम को अपने ऊपर हावी होने दिया. यही वह खूबी है, जिसके चलते उनका पर्सनैलिटी कल्ट निखरता चला गया.

जिस तरह से जयललिता के निधन के बाद पूरे तमिलनाडु के लोग रो रहे थे और अपनी नेता को भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहे थे, वैसा उत्तर भारत या देश के किसी अन्य हिस्से में देखने को नहीं मिलता कि एक नेता के जाने पर उसके लिए जनता के दिल में इतना गहरा दुख हो. मुझे याद है, आखिरी बार शायद इंदिरा गांधी के निधन पर यह देखने को मिला था, जब लोग देश के कई हिस्सों से आकर उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए थे. इस एतबार से जयललिता का पर्सनैलिटी कल्ट (एक व्यक्ति के प्रति लोगों का देवतुल्य श्रद्धा रखना) बहुत मायने रखता है. दरअसल, एक जमाने में जयललिता बहुत ही महशूर फिल्म अदाकारा थीं. फिल्मों में उनका जुड़ाव एमजीआर के साथ था. एमजीआर अपने जमाने के एक बहुत बड़े फिल्म स्टार थे.

एमजीआर का स्टारडम जयललिता के साथ जुड़ गया था, जिसका सीधा फायद जयललिता को हुआ. कहा जाता है कि जयललिता को एमजीआर काबू में रखना चाहते थे, लेकिन जया ने ऐसा होने नहीं दिया और एमजीआर के इस दुनिया से जाने के बाद वे सिर्फ एक फिल्म स्टार नहीं रह गयीं और न ही उन्होंने एमजीआर के स्टारडम को अपने ऊपर हावी होने दिया. यही वह खूबी है, जिसके चलते उनका पर्सनैलिटी कल्ट निखरता चला गया और वे तमिलनाडु के लोगों के बीच एक जननेता के रूप में प्रतिष्ठित होती चली गयीं. तमिलनाडु में लोग फिल्मों के नायकों को बहुत मानते हैं. चूंकि एक नायक फिल्म तो बहुत अच्छा काम करता है, लेकिन वही नायक जब लोगों की जिंदगी में आकर उनके लिए अच्छा काम करने लगे, तो फिर वे लोग उस राजनीतिक नायक को देवतुल्य मानने लग जाते हैं.

तमिलनाडु में पेरियार के जमाने से ही, जब ब्राह्मण-विरोधी आंदोलन शुरू हुआ था, दलितों और पिछड़ी जातियों के लोगों को काफी ताकत मिली. पेरियार द्वारा बनायी सामाजिक न्याय की इस जमीन को एमजीआर आगे लेकर गये और फिर एमजीआर के बाद उसको जयललिता आगे बढ़ाती रहीं. यही वजह है कि वहां जयललिता को ‘अम्मा’ का लकब मिलता है और वे राज्य के लोगों के लिए एक से बढ़ कर एक जनकल्याणकारी योजनाएं लेकर आयीं. इस तरह से सामाजिक न्याय को जिस तरह जयललिता ने मजबूती दी, उससे उनका राजनीतिक स्टारडम पूरी तरह से हिमालयी हो गया. ऐसे में यह कह सकते हैं कि जयललिता के पर्सनैलिटी कल्ट में उनके फिल्मी स्टारडम के साथ ही जनकल्याणकारी राजनीतिक सोच का बहुत बड़ा योगदान है.

यही वजह है कि उत्तर भारत या देश के बाकी किसी हिस्से में नेताओं को लेकर लोगों में ऐसी सोच नहीं है कि वे नेताओं को श्रद्धा स्वरूप देखें. इस देश में जहां राजनीति को गंदा क्षेत्र और नेताओं को भ्रष्ट कहा जाता है, वहां किसी नेता का जयललिता जैसा मकाम हासिल करना नामुमकिन सा है. दक्षिण भारत में, खासतौर पर तमिलनाडु में, नेताओं के पर्सनैलिटी कल्ट की गहराई में जाएं, तो पायेंगे कि वहां तकरीबन सारे नेता फिल्मी दुनिया से आये हैं. एमजीआर, एनटीआर, जयललिता, करुणानिधि आदि इसके अच्छे उदाहरण हैं. इन सब ने अपनी सिनेमाई प्रसिद्धि को राजनीतिक प्रसिद्धि में बदल दिया था.

यानी उनका सिनेमाई स्टारडम राजनीति में बदल गया और राजनीतिक स्टारडम उनके पर्सनैलिटी कल्ट में बदल गया. दक्षिण भारत के लोगों के जैसा फिल्मी नायकों से जुड़ाव देश के बाकी हिस्सों में कम ही देखने को मिलता है, इसलिए अगर उन क्षेत्रों के नेता भी अगर सिनेमा की दुनिया से आयें, तो मुझे लगता है कि शायद वे वैसा पर्सनैलिटी कल्ट नहीं बना पायें, जैसा दक्षिण के नेता बना लेते हैं.

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