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कमल संपर्क : 09431172954 दिल्ली वापसी के लिए शाम तीन पच्चीस की फ्लाइट थी. चाईबासा से जमशेदपुर हो कर रांची जाने के क्रम में टाटानगर स्टेशन के सामने लगे लंबे जाम ने अभिनव को चिंता में डाल दिया. ‘ये जाम कब तक हटेगा?’ ‘कुछ कह नहीं सकते सर, आगे ट्रेन अंडरब्रिज के नीचे ऑटो और […]

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कमल
संपर्क : 09431172954
दिल्ली वापसी के लिए शाम तीन पच्चीस की फ्लाइट थी. चाईबासा से जमशेदपुर हो कर रांची जाने के क्रम में टाटानगर स्टेशन के सामने लगे लंबे जाम ने अभिनव को चिंता में डाल दिया.
‘ये जाम कब तक हटेगा?’
‘कुछ कह नहीं सकते सर, आगे ट्रेन अंडरब्रिज के नीचे ऑटो और कार वाले के बीच कुछ लफड़ा हुआ है. सारे ऑटो वालों ने सड़क जाम कर रखी है.’ खलासी ने जवाब दिया.
‘मगर देर हुई तो फ्लाइट मिस हो जायेगी.’ वह घबराया.
‘तब तो एक ही रास्ता है, आप कैसे भी मानगो बस स्टैंड को निकल लो. इस जाम का कोई भरोसा नहीं. जाम टूट भी गया तो अब बस को स्टैंड पहुंचने में एक घंटे से कम नहीं लगेगा.’ खलासी ने निर्लिप्त स्वर से कहा.
पास बैठे यात्री ने बड़बड़ाते हुए अपना सामान समेटा, ‘यह अंडरब्रिज कभी नहीं सुधरेगा. आज तो लफड़ा हुआ है, लेकिन बरसात में जरा सी बारिश हो जाये तो यहां घंटों जाम लग जाता है.’
अभिनव ने खलासी को देखा, ‘अब मैं क्या करूं? प्लीज आप ही कुछ उपाय कर दो.’
‘अच्छा देखता हूं.’
थोड़ी देर बाद खलासी लौटा तो उसके साथ पांव में हवाई चप्पल, भूरी पतलून और मटमैले से रंग की कमीज पहने, सर पर गमछा लपेटे एक औसत कद–काठी और सांवले रंग का मजबूत शरीर वाला व्यक्ति था.
‘सर आप इसके रिक्शा से चले जायें.’
‘रिक्शा से वहां पहुंच तो जाऊंगा न!’
‘बाबू साहेब, मेरा रिक्शा एकदम चकाचक है. फिकर मत कीजिये, आपको तुरत पहुंचा दूंगा.’
‘दूसरा कोई उपाय भी नहीं है सर.’ खलासी बोला.
‘अच्छा चलो.’ कहकर उसने लैपटॉप वाला बैग कंधे पर टिकाया और स्काई बैग उठा कर बस से नीचे उतर गया, ‘तुम्हारा रिक्शा कहां है?’
रिक्शेवाला उसका स्काई–बैग उठा कर चल दिया, ‘इधर से तो जा नहीं सकते. बर्मामाइंस हो कर ही मानगो बस स्टैंड पहुंचा जा सकता है. बाबू साहेब मानगो बस स्टैंड के पचास रुपये होंगे.’
‘ठीक है भाई, पचास ही ले लेना, मगर मुझे जल्दी पहुंचाओ. अगर समय से बस ना मिली तो मैं रांची में ही अटक जाउंगा. हवाई टिकट का नुकसान होगा सो अलग.’ अभिनव हड़बड़ा रहा था.
‘आप मत घबराइए, हम बस पकड़वा देंगे.’ सर पर लपेटे गमछे से रिक्शा की सीट झाड़ कर साफ किया. अभिनव के बैठते ही उसने रिक्शे को धकेल कर गतिशील किया और एक ही झटके से हवा में लहराते हुए, अपनी सीट पर जा बैठा. रिक्शा के गति पकड़ते ही उसने बोलना शुरू कर दिया.
‘मेरा नाम मगन भगत है. लगता है आप इधर पहली बार आये हैं?’
‘‘हां, पहली बार आया हूं और आते ही इस शहर के जाम ने मुसीबत खड़ी कर दी.’’ अभिनव का ध्यान कहीं और अटका हुआ था. इस बात का अंदाजा शायद मगन रिक्शेवाले को भी हुआ.
उसने एक बार पीछे मुड़ कर देखा और बोला, ‘फिकर नई बाबू! हम आपको रांची वाली बस भी पकड़वा देंगे.’
‘अगर पहुंचने में देर हो गई तो सब गड़बड़ हो जाएगा.’ अभिनव अभी भी चिंतित था.
लेकिन उसकी चिंता से बेखबर मगन भगत ने बोलना जारी रखा, ‘बाबू, मेरा बूढ़ा जो था न वो बड़ा अच्छा था. बहोत समझदार था. न-न, पढ़ा-लिखा वाला समझदार नहीं! वो तो निरा अनपढ़ था. जो उसे थोड़ा–बहुत लिखना पढ़ना आता था, वह उसने खुद सीखा था.’
अभिनव ने अनमने से ही हुंकारा भरा, ‘‘हूं !’’ तभी उसका मोबाइल बज उठा, ‘हलो!’
‘….’ उधर की आवाज मदन को सुनाई नहीं देनी थी.
‘हां-हां मीता मैं चाईबासा से निकल चुका हूं. इन फैक्ट अभी जमशेदपुर में हूं.’
‘…….’
‘हां, यहां से रांची पहुंचने में यही कोई तीन–साढ़े तीन घंटे लगेंगे.’
‘नहीं यार डिस्टेंस तो सौ–सवा सौ किलोमीटर होगा, लेकिन इधर की सड़कें ठीक नहीं हैं.’ उसकी आवाज में विवशता झलकी.
‘……’
‘‘डोन्ट वरी, साढ़े पांच बजे मैं दिल्ली में रहूंगा. ओके. बाई!’
अभिनव के फोन रखने तक वे बर्मामाइन्स बाजार पहुंच चुके थे.
मगन फिर चालू हो गया, ‘सर, आप सितंबर में आये हैं, अगर दुर्गा पूजा के समय आते तो इस मैदान की रौनक देखते.’ फिर कुछ रुक कर उसने पूछा, आपके उधर तो और बड़ी होती होगी न! उहां तो बहोत बड़ा रामलीला मैदान है.’
‘हां, है. लेकिन उधर दशहरा मनाते हैं, दुर्गा पूजा नहीं.’’
बर्मामाइन्स चौराहे से उन्हें बांये साकची की ओर मुड़ना था. वहां पर भीड़ के कारण वह रिक्शे से उतर कर अपना रिक्शा पोंछने लगा.
‘यार तुम रिक्शे की बहुत ज्यादा सफाई करते हो.’ अभिनव ने अधीरता से कहा.
‘अब का बताउं बाबू साहेब, मेरा बूढ़ा बहोत बोला कि मैं पढ़ लिख कर कुछ बन जाऊं. मगर हमरा मन तो लगता ही नहीं था. ई बात मेरा ऊ भी जान लिया था, तभी तो मरने से पहले वो हमको ई रिक्शा खरीद दिया. उसने कहा था रिक्शे से रोजी है, इसलिए इसको अपने से भी ज्यादा पियार करना, उसकी वही बात माना करता हूं. बस दिल कहता है कि ये सदा ही चमचम करता रहे.’ मगन रिक्शावाला लगातार बोले जा रहा था, ‘आप कहां के रहने वाले हो, दिल्ली के?’
‘हां, दिल्ली से सटा ही फरीदाबाद है, वहीं रहता हूं. लेकिन हमारा ऑफिस दिल्ली में है.’
‘दिल्ली तो बहोत बड़ा शहर होगा!’ मगन ने जिज्ञासा प्रकट की.
‘हां, हमारे देश की राजधानी है.’ अभिनव को भी उसकी बातों में रस आने लगा था.
‘जइसे हमरी राजधानी रांची है.’ मगन ने समझने के अंदाज में कहा.
‘हां-हां वैसे ही.’ फिर अभिनव ने पूछा, ‘बस स्टैंड पहुंचने में अभी और कितनी देर लगेगी?’
‘बस बाबू जी, वो सामने मोड़ के बाद ईस्ट–प्लांट बस्ती है. उसके बाद साकची और वहां से दस मिनट में मानगो बस स्टैंड…’
‘अच्छा बाबू, आप तो दिल्ली के हो, बताओ तो अन्ना का कुछ बनेगा कि नहीं?’
अभिनव अचकचाया, ‘अन्ना? कुछ बनेगा मतलब?’
‘अरे वो ही, अपने अन्ना, जो दिल्ली में काली कमाई का बात बोले थे.’
‘…ओ, अन्ना वाला अनशन!’
मगन भगत फिर बोला, ‘मेरा मतलब है कि उसकी बात चलेगी कि नहीं!’
‘हां, मैं वहीं था और मैं अपने मित्रों के साथ उनकी सभा में भी गया था.’
‘अच्छा बाबू, आपको का लगता है, अपने अन्ना का बात आज वाले नेता मानेंगे?’ मगन के स्वर में उत्सुकता थी.
‘मानेंगे क्यों नहीं? जरूर मानेंगे! उन्हें मानना ही पड़ेगा!’ अभिनव दृढ़ता से बोला.
‘आप हुआं जा के का किये थे?’
‘हम लोगों ने वहां जा अन्ना की प्रार्थना सभा में भाग लिया था और आंदोलन के लिए सभी मित्रों ने अपना एक दिन का वेतन चंदे में दिया था.
‘‘आप लोगन बड़ा अच्छा किये. लेकिन का करें, ई जो आज वाला नेता सब हैं न, ई पहले जैसा नहीं है. ई सब साहूकार को भी मात देता है.’
‘साहूकार को मात मतलब?’
‘साहूकार माने, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए, वैसे ही आजकल के नेता का सारा राजनीति बस पैसा कमाने को होता है.’
‘तुम्हारी बात सही है, लेकिन आज भी सारे के सारे नेता वैसे नहीं होते.’
‘बाकी दो–चार ठीक नेता भला बाकी साहूकार नेता का का कर लेगा? अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता साहेब.’
‘लेकिन चने और आदमी में यही फर्क है! अकेला आदमी भी ठान ले तो बहुत कुछ कर सकता है.’ अभिनव ने उसकी बात काटते हुए कहा.
उसकी वह बात सुन कर अब तक लगातार बोलता रहने वाला मगन भगत अचानक चुप हो गया था.
इस बार अभिनव ने उसे टोका, ‘क्या हुआ, कहां खो गये?’
‘कुछ नहीं बाबू जी, आपकी बात से मुझे अपना बूढ़ा याद आ गया. वह कहता था, आदमी में और बाकी जीवों में सबसे बड़ा फर्क होता है कि कितनी भी कठिनाई आ जाये, आदमी निराश नहीं होता. अगर निराश हो जाये तो फिर वो आदमी कैसा! आदमी को कभी निराश नहीं होना चाहिए.’ कहते–कहते वह पूरे उत्साह से रिक्शा चलाने लगा.
वहां सड़क काफी चौड़ी थी और ट्रैफिक भी कम. देखते ही देखते उसकी रिक्शा हवा से बातें करने लगी, मानो कोई मोटर लग गयी हो.
एक बस स्टैंड से निकल रही थी. मगन ने जा कर रिक्शा उसके ठीक बगल में लगा दिया और जोर से बोला,‘एक सीट रांची!’
उसकी आवाज पर चलती बस रुक गयी.
अभिनव ने भाड़ा देने के लिए अपना पर्स निकाला तो मगन भगत ने टोका, ‘बाबू आप दिल्ली में मेरा एक काम कर दोगे?’
अभिनव ने कुछ उलझन से पूछा, ‘तुम्हारा काम ? तुम्हारा दिल्ली में क्या काम है?’
मगन भगत ने अपने पूरे विश्वास से कहा, ‘वो ऐसा है कि मैं तो कभी दिल्ली जा नहीं सकूंगा, आप मेरे इस भाड़े की कमाई के पैसे अन्ना को दे देना? हमारे अन्ना को जीतना ही होगा.’

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