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क्या सीमा पर हवा का रुख पलट पायेंगे बाजवा?

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पहली बार पाक में थल सेना प्रमुख नियत तारीख पर रिटायर हुए ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (सेवािनवृत्त) पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) मामलों के विशेषज्ञ जनरल कमर जावेद बाजवा ने मंगलवार को पाकिस्तान के नये सैन्य प्रमुख का पदभार संभाला और उसी दिन जम्मू में पाक समर्थित आतंकियों ने आर्मी कैंप पर हमला किया. बाजवा […]

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पहली बार पाक में थल सेना प्रमुख नियत तारीख पर रिटायर हुए
ब्रिगेडियर
अनिल गुप्ता
(सेवािनवृत्त)
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) मामलों के विशेषज्ञ जनरल कमर जावेद बाजवा ने मंगलवार को पाकिस्तान के नये सैन्य प्रमुख का पदभार संभाला और उसी दिन जम्मू में पाक समर्थित आतंकियों ने आर्मी कैंप पर हमला किया. बाजवा ने जनरल राहील शरीफ की जगह ली है. एलओसी पर तनावपूर्ण हालात को जल्द ही सुधारने का वादा तो किया है, मगर क्या ऐसा हो पायेगा? पढ़िए एक विश्लेषण.
29 नवंबर को पाक इतिहास के पिछले दो दशकों में यह ऐसा पहला मौका था, जब पाकिस्तानी थल सेना के किसी प्रमुख ने तयशुदा तारीख को अपना पद छोड़ दिया. पूर्व में गद्दी छोड़ने को मजबूर किये गये पाक तानाशाह परवेज मुशर्रफ की पूरी कोशिशों, पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय की अपील और तमाम अन्य दबावों को दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नया सेना प्रमुख नियुक्त करने के अपने संवैधानिक अधिकार का प्रयोग कर ही दिया.
राहील का तनावपूर्ण कार्यकाल :
नवाज शरीफ के लिए यह यकीनन एक मुश्किल फैसला रहा होगा, क्योंकि इस पद के लिए उनके द्वारा की गयीं पूर्व नियुक्तियां उनके लिए दुर्भाग्यपूर्ण ही रहीं. मुशर्रफ ने उन्हें गद्दी से बेदखल कर देशनिकाला दे दिया, जबकि निवर्तमान सेनाध्यक्ष राहील शरीफ के कार्यकाल में नागरिक-सैन्य संतुलन का पलड़ा सेना के पक्ष में झुका रहा.
जहां तक विदेश नीति तथा सैन्य मामलों का सवाल था, राहील ने नवाज शरीफ को लगभग एक पंगु प्रधानमंत्री बना डाला और प्रधानमंत्री के अधिकार घरेलू मामलों तथा सामाजिक विकास के कार्यक्रमों तक सिमट कर रह गये. नवाज शरीफ तत्काल तो सुकून की सांसें ले रहे होंगे, पर एक ऐसे वक्त में जब भारत-पाक संबंध अपने बदतरीन दौर से गुजर रहे हैं, राहील के हटने तथा जनरल कमर जावेद बाजवा की नियुक्ति ने भारत में खासी दिलचस्पी जगा दी है.
हालांकि, पाकिस्तान में संवैधानिक प्रमुख प्रधानमंत्री ही हैं, पर देश की रक्षा तथा सुरक्षा नीतियों, घरेलू सुरक्षा, रणनीतिक परिसंपत्तियों तथा सर्वशक्तिशाली आइएसआइ पर वास्तविक नियंत्रण सेना प्रमुख का ही होता है. राहील शरीफ ने न केवल इन सारी शक्तियों का इस्तेमाल किया, बल्कि नवाज सरकार के साथ कुछ इस तरह सतत संघर्ष की स्थिति बनाये रखी कि सेवानिवृत्ति के बाद उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के कयास भी लगाये जा रहे थे. मगर वास्तविकता सिर्फ वक्त ही बता पायेगा.
भारत के साथ संबंध सुधार के लिए नवाज शरीफ की कोशिशों के बावजूद राहील ने न सिर्फ लगातार भारत विरोधी रुख बनाये रखा, बल्कि वे नवाज की सारी कोशिशों पर भी पानी फेरते रहे.
पनामा गेट खुलासों के बाद नवाज सेना द्वारा निर्धारित नीति पर चलने को मजबूर होकर इस उपमहाद्वीप में संबंध सुधार की तमाम उम्मीदें गंवा बैठे. राहील ने जहां पाकिस्तान के अंदर आतंकवाद के खात्मे के लिए ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब को अंजाम दिया, वहीं वे भारत के लिए एक कम लागत की युद्धनीति के रूप में आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे. उनके कार्यकाल में हुए अधिकतर आतंकी हमलों ने भारतीय सैन्य बल तथा पुलिस को ही निशाने पर रखा, जिससे पाक सेना के इस इरादे का संकेत मिला कि वह 1971 के दौरान अपने अपमानजनक पराजय का प्रतिशोध लेना चाहती है. क्या बाजवा इन सबसे पीछे हट पाने में सफल होंगे?
भारतीय सेना के द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहील शरीफ की पेशेवर ख्याति को बड़ा नुकसान पहुंचा और अपने आत्मगौरव को पुनर्प्रतिष्ठित करने हेतु उन्होंने युद्ध विराम के लगभग 200 उल्लंघन कराने के अलावा अपनी बॉर्डर एक्शन टीमों द्वारा कई बर्बर कृत्यों को अंजाम दिलाया. इन सबसे उन्होंने भारत-पाक संबंधों को अत्यंत तनावपूर्ण बनाते हुए स्वयं को भारत के लिए बहुत नापसंदीदा भी बना लिया. जब बाजवा को पूर्ववर्ती सेना प्रमुख से यही उत्तराधिकार मिला है, तो क्या वे इसमें बदलाव लायेंगे?
बाजवा से लगीं उम्मीदें : ऐसा यकीन किया जाता है कि जनरल बाजवा पूरी तरह से पेशेवर तथा अराजनीतिक हैं और वे नागरिक सरकार के विषयों में ज्यादा हस्तक्षेप करने की मंशा नहीं रखते. संभवतः यही वजह है कि नवाज शरीफ ने इस पद के लिए अन्य तीन वरीय उम्मीदवारों के ऊपर उन्हें विनम्र तथा यथार्थवादी होने की वजह से पसंद किया. ऐसा कर उन्होंने पाकिस्तान के नाजुक सैन्य-नागरिक संतुलन को फिर से बहाल करने की चेष्टा की है. भारत में यही उम्मीद की जा सकती है कि इस बार नवाज के चयन का उद्देश्य सफल होगा, क्योंकि इस उपमहाद्वीप में अमन तथा सामान्य परिस्थितियां एक बार फिर वापस लाने हेतु उपर्युक्त शक्ति-संतुलन एक आवश्यक शर्त है. पाकिस्तान में एक नये सेनाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर भारत में जगी दिलचस्पी की यही वजह है.
ऐसा समझा जाता है कि जनरल बाजवा आंतरिक आतंकवाद को भारत की अपेक्षा पाकिस्तान के लिए अधिक खतरनाक मानते हैं, इसलिए वे वहां आतंकी तत्वों से सख्ती से निबटेंगे. दूसरी ओर उन्हें सेना के अंदर बढ़ती कट्टरता से भी दो–चार होना होगा, जो उसकी पेशेवर कुशलता पर असर डाल रही है. यह आशा की जाती है कि वे भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंकी गुटों को पाकिस्तान के लिए ‘रणनीतिक संपदा’ तथा ‘शक्तिवर्द्धक’ न मानते हुए उन्हें एक ऐसा ‘बोझ’ मानेंगे, जिनका समर्थन करना पाकिस्तान के लिए महंगा पड़ेगा. भारत के रुख को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अपनी पहले जैसी दुस्साहसिक कार्रवाइयां दोहराने के नतीजे नहीं झेल सकेगा. इसलिए जनरल बाजवा को न सिर्फ हाफिज सईद या अजहर मसूद और उनके आतंकी गुटों के पर कतरने होंगे, बल्कि आइएसआइ को भी लगाम देनी होगी. भारतीय नीति-निर्माता इस अहम मुद्दे पर दिलचस्पी से नजर रखेंगे.
बाजवा को जम्मू तथा कश्मीर से लगी नियंत्रण रेखा पर कार्रवाइयों के लिए जिम्मेवार सैन्य कमांड के व्यापक अनुभव हासिल होने की वजह से ऐसा समझा जाता है कि वे कश्मीर के मामलों तथा नियंत्रण रेखा के प्रबंधन की बारीकियों से सुपरिचित हैं. यह आशा की जाती है कि इस साल सितंबर से सीमाओं पर जारी गोलीबारी रोकने के लिए वे दोनों पड़ोसियों के बीच एक नये युद्धविराम समझौते की पैरोकारी करेंगे.
पर, यदि उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि भारत पाकिस्तान के विखंडन पर आमादा है, तो अपनी पेशेवर प्रसिद्धि के अनुरूप बाजवा अपनी पूरी ताकत से लड़ेंगे. जहां तक कश्मीर का संबंध है, ऐसा लगता है कि उनके अधीन पाकिस्तानी सेना की नीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा, पर ऐसी उम्मीद की जाती है कि वे नागरिक सरकार को यह मुद्दा पृष्ठभूमि में ले जाने देंगे, ताकि भारत के साथ बातचीत बहाल की जा सके.
पाक के पाले है अमन बहाली : सर्जिकल स्ट्राइक के द्वारा भारत ने पाकिस्तान से पहल छीन उसे रक्षात्मक स्थिति में ला दिया है. भारत उचित ही महसूस करता है कि अब यह जिम्मेवारी पाकिस्तान की है कि वह राज्य की एक नीति के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल बंद करे.
सैन्य संचालन के महानिदेशक स्तर की बातचीत की पाक पेशकश का स्वागत कर उसका इस्तेमाल तनावों की तीव्रता कम करने के लिए किया जाना चाहिए. यदि पाकिस्तान कुछ आश्वासन देने को तैयार हो, तो 3-4 दिसंबर को अमृतसर में आयोजित हार्ट ऑफ एशिया कॉन्फ्रेंस में भागीदारी हेतु विदेश मामलों के पाक सलाहकार सरताज अजीज की प्रस्तावित यात्रा का उपयोग भी इसी उद्देश्य से किया जा सकता है.
पाकिस्तान के इरादे हमेशा से संदिग्ध रहे हैं और यदि नवाज शरीफ अपने देश के विकास तथा समृद्धि में सचमुच रुचि रखते हैं- जो इस क्षेत्र में अमन और स्थिरता के बगैर असंभव है- तो अभी उनके सामने एक मौका है. वे चाहें तो घटनाक्रम का रुख पलट सकते हैं.
(लेखक जम्मू स्थित राजनीतिक टिप्पणीकार, स्तंभकार तथा सुरक्षा और रणनीतिक विश्लेषक हैं.)
(अनुवाद : विजय नंदन)(द न्यूजमिनट डॉट कॉम से साभार)

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