13.6 C
Ranchi
Sunday, February 9, 2025 | 02:17 am
13.6 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

भविष्यवाणी, जो सुनी नहीं गयी

Advertisement

चेतावनी के बावजूद सरकार ने दामोदर घाटी परियोजना को लागू किया कपिल भट्टाचार्य कपिल भट्टाचार्य एक विलक्षण इंजीनियर थे. उन्होंने फरक्का बैराज के निर्माण पूरा होने और दामोदर परियोजना के पूर्ण क्रियान्वयन के पहले ही इनका विरोध किया था. इस विरोध के कारण उनकी नौकरी छूट गयी. करीब 50 वर्ष पहले लिखे उनके लेख को […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

चेतावनी के बावजूद सरकार ने दामोदर घाटी परियोजना को लागू किया
कपिल भट्टाचार्य
कपिल भट्टाचार्य एक विलक्षण इंजीनियर थे. उन्होंने फरक्का बैराज के निर्माण पूरा होने और दामोदर परियोजना के पूर्ण क्रियान्वयन के पहले ही इनका विरोध किया था. इस विरोध के कारण उनकी नौकरी छूट गयी. करीब 50 वर्ष पहले लिखे उनके लेख को इस वर्ष उत्तर प्रदेश और बिहार में आयी बाढ़ से मिला कर देखें, तो उनकी सीख का न मानना अंदर तक सिहरन पैदा कर देता है. पढ़िए पहली कड़ी.
दामोदर घाटी परियोजना को बने हुए अनेक वर्ष बीत चुके हैं. जिस समय यह परियोजना बन रही थी, उसी समय मैंने इसके दोषों और इससे होनेवाले भयंकर परिणाम की जानकारी सबके सामने रखी थी. इसके कारण पश्चिम बंगाल के पानी को निकालने वाली मुख्य नदी हुगली भी जायेगी और फिर देश में भयानक बाढ़ आयेगी. हुगली नदी भरने से कलकत्ता बंदरगाह में आनेवाले बड़े समुद्री जहाजों का आना भी संभव नहीं हो सकेगा. मेरे दृढ़ प्रतिवाद और चेतावनी के बावजूद केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार और राज्य सरकार ने मिलजुल कर दामोदर घाटी परियोजना को लागू किया.
दामोदर नदी में साल भर छोटी-छोटी बाढ़ों के कारण जो उपजाऊ मिट्टी जमा होती है, उसे आषाढ़ में आनेवाली बाढ़ बहा कर समुद्र में पहुंचा देती है. सावन, भादो और आश्विन महीने में हुगली के निचले हिस्से में भाटा की गति जितनी तेज होती है, उतनी तेज ज्वार की गति नहीं होती.
इस कारण समुद्र से आनेवाली रेत नदी के मुहाने पर जमा होती है और इस रेत को भी दामोदर और रूपनारायण नदी में आनेवाली बाढ़ बहा देती है. मैंने उस समय चेतावनी दी थी कि अगर इस स्वाभाविक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने की कोशिश की गयी तो दामोदर और रूपनारायण नदी की बाढ़ की गति धीमी पड़ जायेगी, जिससे नदी के मुहाने पर जमनेवाली मिट्टी साफ नहीं हो पायेगी और जगह-जगह नदी में टापू निकल आयेंगे. वर्ष 1948 से 1952 तक लगातार मैं इस सच्चाई से सरकार और देशवासियों को अवगत कराता रहा, लेकिन सरकार और परियोजना के प्रबंधकों ने मेरे तर्कों को न काटा और न इनका कोई संतोषप्रद उत्तर ही दिया. अपनी झूठी प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए उन लोगों ने इस परियोजना को लागू किया.
पंचैत और मैथन के बांध बनने के तुरंत बाद ही मेरी बात सच निकली और वर्ष 1956 में ही कलकत्ता बंदरगाह की गहराई भयंकर रूप से घट गयी. पश्चिम बंगाल के भागीरथी और हुगली के मैदान और दामोदर नदी के निचले हिस्सों में भयानक बाढ़ आयी. दामोदर घाटी परियोजना बने से पहले द्वितीय महायुद्ध के समय दामोदर की बाढ़ से मात्र 50 वर्ग मील जलप्लावित होता था. वर्ष 1956 के इस जलप्रलय में पश्चिम बंगाल का एक तिहाई हिस्सा यानी 10930 वर्ग मील क्षेत्र बाढ़ के विनश से प्रभावित हुआ. वर्ष 1956 की बाढ़ के समय यह देखा गया था कि भागीरथी और हुगली नदी की सर्वोच्च जल-निकासी क्षमता काफी घट चुकी थी.
ऐसा दामोदर घाटी परियोजना की वजह से हुआ था. इसके अलावा जलोशी, चुरणो, मयूराक्षी, अजय, दामोदर नदी की जल निकासी क्षमता 50 हजार क्यूसेक थी. सन 1959 में देखा गया कि यह क्षमता घट कर 20 हजार क्यूसेक रह गयी है. इस तरह पहले जो बाढ़ दो-तीन दिन या सप्ताह तक चलती थी वह अब महीने से भी अधिक समय तक रहने लगी थी. फिर वर्ष 1970-71 में देखा गया कि बाढ़ और अधिक दिनों तक रुकी रही, इस कारण बहुत बड़ा क्षेत्र जल भराव का शिकार बना रहा.
दामोदर घाटी परियोजना के खिलाफ जो बातें सामने रखी गयी थीं, बाढ़ के दिनों में इसे नकारा नहीं जा सका. वर्ष 1960 में बड़े-बड़े समुद्री जहाजों के यातायात के लिए कलकत्ता से 60 मील दक्षिण हल्दिया में एक नये बंदरगाह की नींव रखी गयी और यह तय किया गया कि फरक्का के निकट गंगा में एक बैराज बांध बना कर एक नहर की सहायता से भागीरथी में कुछ जल प्रवेश कराया जायेगा. तब मैंने सुझाया था कि दामोदर घाटी परियोजना में ही कुछ सुधार कर उसकी सिंचाई परियोजना को छोड़ कर उसी पानी को नियमित रूप से रूपांतरण नदी के माध्यम से निम्न हुगली में प्रवेश कराया जाये. मगर झूठी मर्यादा की रक्षा के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया गया. परिणामस्वरूप दामोदर घाटी परियोजना एक धोखा साबित हुई. बाद में मेरे द्वारा सुझाई गयी वैकल्पिक सिंचाई पद्धति लिफ्ट इरिगेशन को ही अपनाना पड़ा.
हम लोगों ने तब यह भी कहा था कि फरक्का बांध बनने के बाद परिस्थिति और भी जटिल होगी. पहली बात तो यह है कि सूखे महीनों में फरक्का से भागीरथी को 40 हजार क्यूसेक पानी की जो आवश्यकता है, वह कभी पूरी नहीं हो पायेगी. 50 के दशक में मैं हावड़ा में पीपुल्स इंजीनियरिंग नामक एक कारखाने में इंजीनियर था. उसमें जहाज का निर्माण और मरम्मत का काम होता था. रेलवे के फेरी जहाजों के मरम्मत का काम मेरे जिम्मे था. इन जहाजों के नाविकों की सहायता से ही गंगा के जल प्रवाह को गरमी के दिन में साहेबगंज और मनिहारी के पास नापा गया था. यहां गंगा में जल प्रवाह की जानकारी अधिकारियों को थी. बावजूद इसके वे लोग फरक्का बैराज परियोजना के माध्यम से भागीरथी में 60 हजार क्यूसेक जल प्रवेश कराने की बात प्रचारित करने लगे. ये अधिकारीगण बड़ी चतुराई से बाद में यह कहने लगे कि चूंकि गंगा की सहायक नदियों का पानी उत्तर प्रदेश और बिहार की सिंचाई में खर्च किया जा रहा है, इस कारण भागीरथी को 40 क्यूसेक का जल प्रवाह मिलना संभव नहीं होगा. फरक्का बैराज परियोजना में सौ करोड़ से अधिक रुपये खर्च करने के बाद इसके अवकाश प्राप्त अभियंता कहने लगे हैं कि फरक्का परियोजना असफल होगी. मैंने तो फरक्का परियोजना के प्रस्ताव के समय ही इसकी असफलता की घोषणा की थी. उस समय पश्चिमी बंगाल के कांग्रेसी नेताअों ने जनमत को भ्रमित कर फरक्का परियोजना के लिए केंद्र सरकार पर दबाव डाला था. विरोधी दलों के कुछ लोगों ने मेरी बातों का सम्मान जरूर किया था, लेकिन परियोजना के समर्थन में वे सरकार के ही साथ रहे. उस समय के समाचार पत्र के संपादकीय में मुझे पाकिस्तानी गुप्तचर घोषित किया गया था.
फील्ड मार्शल अयूब खां ने मेरी किताब (जिसमें फरक्का बांध के प्रस्ताव का विरोध बिल्कुल वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर किया गया था) खरीद कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास भेजी थी. (नोट : तब बांग्लादेश पाकिस्तान का हिस्सा था और पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था ) पश्चिम बंगाल सरकार ने मेरे पीछे भी सीआइडी लगा दी थी अौर अंतत: 1962 में मुझे पीपुल्स इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ देनी पड़ी थी.(जारी)
(सप्रेस)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें