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नीतीश पीएम पद के संभावित उम्मीदवार

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महागठबंधन सरकार का एक साल नीरजा चौधरी राजनीतिक विश्लेषक बिहार के सीएम नीतीश कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के मुकाबले संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं. ऐसे में जब उन्होंने नोटबंदी पर प्रधानमंत्री के फैसले का मजबूती से समर्थन किया, तो बहुत लोगों को बहुत […]

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महागठबंधन सरकार का एक साल

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नीरजा चौधरी

राजनीतिक विश्लेषक

बिहार के सीएम नीतीश कुमार 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के मुकाबले संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं. ऐसे में जब उन्होंने नोटबंदी पर प्रधानमंत्री के फैसले का मजबूती से समर्थन किया, तो बहुत लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ. हालांकि, उन्होंने नोटबंदी के पहले पर्याप्त तैयारी नहीं किये जाने को लेकर केंद्र सरकार की लगातार आलोचना भी की है, जिसके परिणामस्वरूप बैंकों के आगे लंबी कतारें लग रही हैं और लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

नीतीश कुमार ने एक साल पहले बिहार विधानसभा के चुनाव में शानदार जीत दर्ज नरेंद्र मोदी की लहर को रोका था. वह एक व्यावहारिक (Pragmatic) राजनेता हैं. वह चुनातियों से भरे रास्ते (Tight rope) पर चलनेवाले के रूप में जाने जाते हैं, न केवल अभी, जब उन्होंने अपने पूर्व प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद से गंठबंधन किया है, बल्कि उस समय भी, जब वह भाजपा से साथ 17 वर्षों तक सत्ता में थे. नीतीश कुमार अपनी छवि को लेकर हमेशा सजग रहे. वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई के लिए जाने जाते हैं.

उन्होंने पहली बार भ्रष्टाचार निरोधक संपत्ति जब्ती कानून बिहार में बनाया. इसके तहत अवैध तरीके से धन अर्जित करनेवालों की संपत्ति जब्त की गयी. इनमें से कुछ भवनों में स्कूल खोले गये. शुरू में नोटबंदी के निर्णय की तारीफ काले धन के खिलाफ एक मजबूत कदम के रूप की गयी. लेेकिन, इसकी पर्याप्त पूर्व तैयारी नहीं हाेने से कारण यह लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है.

नीतीश कुमार को गंठबंधन की मजबूरियाें का भी सामना करना पड़ा. नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, जयललिता, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल जैसे क्षत्रपों के सामने ऐसी मजबूरियां नहीं हैं, क्योंकि वे अपने दम पर बहुमत में हैं. नीतीश कुमार गवर्नेस और विधि-व्यवस्था के अपने बेहतर ट्रैक रेकॉर्ड के कारण पीएम पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे हैं. फिर भी गंठबंधन के चलते अच्छे काम के बावजूद जातीय राजनीति को लेकर उन पर सवाल भी उठते रहे हैं.

पिछले साल लालू प्रसाद के साथ विधानसभा चुनाव में भारी जीत के बाद जब वे सत्ता में आये, तब से वह गंठबंधन और सरकार का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं. साथ ही राजद को भी एक हद तक नियंत्रण में रखने की कोशिश की है. पूर्व राजद सांसद शहाबुद्दीन की जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के समय उन्हें राजनीतिक तौर पर परेशानी हुई. यही स्थिति नाबालिग से दुष्कर्म मामले में विधायक राजवल्लभ यादव के खिलाफ कार्रवाई के समय हुई.

लालू प्रसाद के 15 साल के शासनकाल के बाद उन्होंने राज्य में जो विधि-व्यवस्था स्थापित की, उसे वह अागे भी कितनी मजबूती से कायम रख पाते हैं, इससे उनका राजनीतिक भविष्य तय होगा. राजद विधायकों पर कार्रवाई कर नीतीश कुमार ने अपने गंठबंधन के साथियों को यह साफ संदेश दिया है कि वह इस मोरचे पर कोई समझौता को तैयार नहीं हैं.

जिस एजेंडे पर नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव जीता, उन सात निश्चयों के सभी बिंदुओं को जमीन पर उतारने की योजना पर अमल शुरू कर दिया. महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण, पक्की गली, नाली, हर घर में नल से पानी, हर घर बिजली और हर घर शौचालय की योजना लागू हो गयी है. सात निश्चयों की जमीनी हकीकत जानने के लिए उन्होंने पश्चिम चंपारण से निश्चय यात्रा आरंभ की. सबसे बड़ा कदम शराबबंदी को लागू करना है, जिससे महिलाओं को बड़ी राहत मिली, जो आबादी की आधी हैं. बड़ी संख्या में महिलाओं ने चुनाव में नीतीश कुमार को वोट भी दिया. नीतीश कुमार को बिहार से बाहर अपने आधार को बढ़ाना चाहते हैं.

यूपी में वह सक्रिय हैं, खासकर बिहार के सीमावर्ती इलाकों में, जहां उनके स्वजातीय लोगों की संख्या अधिक है. नीतीश कुमार भाजपा को रोकने के लिए महागंठबंधन का प्रयास कर रहे हैं, न केवल उत्तर प्रदेश में, बल्कि अन्य जगहों पर भी. ऐसे महत्वपूर्ण है कि नीतीश कुमार न केवल व्यावहारिक राजनेता हैं, बल्कि ‘मैराथन धावक’ के रूप में भी जाने जाते हैं.

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