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ट्रंप से उम्मीदें : राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों का भारत पर ऐसे होगा असर

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अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने और जन-जीवन की सुरक्षा मजबूत करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किये गये चुनावी वादे जल्दी ही नीतियों का रूप ले सकते हैं. आप्रवासन, उद्योग और आतंकवाद पर उनकी समझ का बड़ा असर न सिर्फ अमेरिका, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा. भारत-अमेरिका संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर इसके […]

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अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने और जन-जीवन की सुरक्षा मजबूत करने के लिए डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किये गये चुनावी वादे जल्दी ही नीतियों का रूप ले सकते हैं. आप्रवासन, उद्योग और आतंकवाद पर उनकी समझ का बड़ा असर न सिर्फ अमेरिका, बल्कि भारत समेत पूरी दुनिया पर पड़ेगा. भारत-अमेरिका संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर इसके संभावित असर का आकलन आज के विशेष पेज में…
ट्रंप की कर योजना
ट्रंप की कर सुधार योजना के अनुसार वे अमेरिका में कॉरपोरेट कर को वर्तमान 35 प्रतिशत से घटा कर 15 प्रतिशत पर लाने को वचनबद्ध हैं. इससे अमेरिका व्यवसाय के लिए विश्व के सर्वाधिक आकर्षक गंतव्यों में एक बन जायेगा. स्वाभाविक ही है कि खासकर जो अमेरिकी कारोबार सस्ते कर ढांचे के लिए अमेरिका से बाहर चले गये थे, इससे उनके अमेरिका लौटने का आकर्षक प्रबल बन जायेगा. उदाहरण के लिए फोर्ड मोटर्स को लिया जा सकता है.
फोर्ड ने चेन्नई में भी अपनी उत्पादन यूिनट बिठा कर भारत में अच्छा कारोबार स्थापित कर लिया है, जहां से प्राप्त आय पर वह भारत में अमेरिका की ही दर से कर चुकाता है. अब यदि अमेरिका में करों की यह दर नीचे आ जाती है, तो वह भारत में उपलब्ध सस्ती श्रमशक्ति के फायदे को संतुलित कर देगी और कंपनी अपनी कुछ इकाइयां वापस अमेरिका ले जाने को आकृष्ट हो उठेगा.
चीनी व्यापार में कटौती
ट्रंप ने अमेरिका के साथ चीन के व्यापार के साथ ही चीन के विरुद्ध कई कड़े कदम उठाने की घोषणा तो कर ही रखी है, उसके साथ अमेरिका के व्यापार घाटे को भी कम करने का वादा किया है.
यदि वे ये कदम उठा कर अमेरिका में चीनी आयात में कटौती करते हैं, तो यह स्थिति भारत के लिए कोई विशेष फायदेमंद नहीं होगी. क्योंकि चीन का विनिर्माण उद्योग तथा अमेरिका के साथ उसका वर्तमान व्यापार भारत से कोसों आगे है. अमेरिका को भारत का सबसे बड़ा निर्यात हीरों तथा रत्नों का है, जिसके बाद दवा उत्पादों का स्थान है. अलबत्ता, यदि ट्रंप की घोषणा का असर चीन से दवा उत्पादों के आयात पर पड़ा, तो भारत के लिए इस स्थिति से कुछ फायदा उठा लेने की गुंजाइश बनेगी.
आव्रजन में कटौती
ट्रंप ने अमेरिका में आव्रजन पर कड़ी चोट करने की घोषणा कर रखी है. इसी तरह उन्होंने अमेरिका में उपलब्ध रोजगार अवसरों के लिए अमेरिकियों को ही तरजीह देने तथा बाहरी लोगों के लिए कुशल श्रमिकों के वीजा की उपलब्धता प्रतिबंधित करने का वादा भी किया है.
सूचना तकनीक (आइटी) की टीसीएस, इन्फोसिस तथा विप्रो जैसी भारतीय कंपनियों के लिए यह एक बुरी खबर है, क्योंकि वे एच1बी वीजा का फायदा उठाते हुए अपने अमेरिकी कारोबार में सस्ते कुशल भारतीयों को नियुक्त कर अरबों डॉलर के लाभ अर्जित करती हैं. भारत में कारोबार करती कई अमेरिकी कंपनियां भी यहां से सस्ते कुशल लोगों को वहां भेज कर अच्छा मुनाफा कमाती हैं. ट्रंप ने पहले तो इस वीजा का भारी विरोध किया था, पर बाद में अमेरिकी-भारतीय समुदाय को संबोधित करने के बाद उन्होंने अपने रुख में नरमी लायी. तसल्ली सिर्फ इस पर की जा सकती है कि राष्ट्रपति चुनावों में हर उम्मीदवार आव्रजन में कमी लाने के वादे करता तथा चुने जाने के बाद उसे भूलता रहा है.
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार का वादा
ट्रंप की योजना अगले दशक के दौरान रोजगारों में भारी वृद्धि लाते हुए अमेरिकी जीडीपी वृद्धि दर को चार फीसदी तक पहुंचाने की है. इसके लिए कॉरपोरेट कर में कमी लाने के साथ ही वे सरकारी खर्चों में भी कमी लाना चाहते हैं.
उनकी योजना में निजी व्यवसायों द्वारा रोजगार सृजन की अच्छी गुंजाइश रहेगी, जिसका लाभ भारत के बड़े और छोटे दोनों तरह के कारोबार उठा सकेंगे, क्योंकि इसके अंतर्गत दस लाख डॉलर का निवेश कर न्यूनतम दस अमेरिकी कामगारों के लिए रोजगार सृजन की शर्त है. और यदि कोई भारतीय उद्यम ऐसा कर पाने में सक्षम हो, तो वह ग्रीन कार्ड हासिल करने की अर्हता हासिल कर लेगा, जो एक बड़ा आकर्षण होगा.
विदेश नीति व आतंकवाद
ट्रंप ने आइएसआइएस पर नकेल कसने तथा आतंक का निर्यात करनेवाले देशों से आव्रजन प्रतिबंधित करने के वादे भी किये हैं. इसके साथ ही उग्र इसलाम की विचारधारा पर वैचारिक आक्रमण करने की भी उनकी योजना है. इससे आतंकवाद के विरुद्ध भारतीय नीति समर्थन तथा सुदृढ़ता हासिल कर सकती है.
ऊर्जा योजना
ट्रंप की योजना है कि अमेरिका के तेल, प्राकृतिक गैस तथा कोयले जैसे ऊर्जा संसाधनों के उत्पादन में बढ़ोतरी कर उसे ऊर्जा पर्याप्तता की स्थिति पर पहुंचा दिया जाये. इसके लिए वह अमेरिका के तटीय तथा अपतटीय (ऑफ शोर) भूमि के साथ ही कोयला भंडारों के लीज पर लगे प्रतिबंध ढीले कर उन्हें दूसरे देशों की एजेंसियों के लिए भी खोल देना चाहते हैं.
इससे तेल के आयात के लिए निर्यातक देशों के संगठन ओपेक पर भारत की निर्भरता कम होगी, जो हमारी अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है. इससे तेल की वैश्विक कीमतों में स्थिरता का नया दौर आरंभ होगा और भारत के ओएनजीसी को अपना कारोबार अमेरिका तक फैलाने में मदद मिलेगी.
ओबामाकेयर के खात्मे की घोषणा
अमेरिकियों को सस्ती स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करने की ओबामा द्वारा आरंभ ‘ओबामा केयर’ नामक योजना की समाप्ति की घोषणा भारतीय दवा उत्पादन क्षेत्र के लिए चिंताजनक है, क्योंकि भारतीय कंपनियों ने जेनरिक दवाओं के निर्माण तथा उत्पादन में अपनी कुशलता तथा वरीयता का लाभ उठाते हुए उपर्युक्त योजना के लिए आपूर्तिकर्ता के रूप में काफी फायदा कमाया और पिछले दस वर्षों में अमेरिका को भारतीय दवा निर्यात दोगुने से भी ऊपर चला गया.
ट्रंप की योजना से इस भारतीय निर्यात का भविष्य तो संकटग्रस्त हो ही जायेगा, साथ ही इस काम में दवा क्षेत्र को बेइंतहा मदद पहुंचानेवाली भारतीय आइटी कंपनियों के फायदे भी खासे कम हो जायेंगे, जिससे उन्हें रोजगारों में कटौती करने पर मजबूर होना होगा.
(बिजनेस स्टैंडर्ड में प्रकाशित साई मनीष केविश्लेषण का संपादित अंश. साभार)
(अनुवाद : विजय नंदन)
मीडिया के विरोध, पूरे विश्व के यकीन तथा हिलेरी क्लिंटन के निर्मम चुनावी अभियान के बावजूद अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप की जीत अब एक वास्तविकता में तब्दील हो चुकी है. उन्होंने अपने चुनाव अभियान के दौरान अपने 15-सूत्री एजेंडे की घोषणा की थी. यदि उन्होंने उस पर अमल करने की ठानी, तो उनमें से कई का भारत सरकार, भारतीय जनता तथा समग्र भारत पर बहुआयामी असर पड़ सकता है, जिसकी पड़ताल प्रासंगिक होगी.
भारत और अमेरिका के द्विपक्षीय संबंधों में जुड़ेंगे नये आयाम
शशांक
पूर्व विदेश सचिव
ट्रंप की जीत अभूतपूर्व जीत रही है. ट्रंप की इस काबिलियत पर हमें विश्वास करना होगा कि वे अमेरिकी लोगों से अच्छी तरह से जुड़ पाये. ट्रंप ने अपने चुनावी अभियान में मुख्यधारा की मीडिया के बजाय नयी तकनीकों और सोशल मीडिया का सहारा लिया. चुनाव प्रचार में अधिकतर बातें तो ट्रंप ने अमेरिका के लिए ही कीं, लेकिन साथ ही उन्होंने भारत के बारे में भी बीच-बीच में बात करते रहे. ट्रंप के अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद भारत के नजरिये से दो चीज महत्वपूर्ण दिख रही हैं. एक तो यह कि आतंकवाद के मसले पर अमेरिका जब भी अभियान शुरू करेगा, उसमें भारत को ज्यादा सहयोग मिलेगा और भारत के विचारों को रखा जायेगा.
जिस तरह से ट्रंप ने ओबामा और डेमोक्रेट पार्टी की आलोचना की है कि इन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा दिया है, विश्वयुद्ध के हालात पैदा कर दिये हैं, उस हिसाब से लगता है कि आतंकवाद को लेकर ट्रंप की नीति ओबामा से बिल्कुल अलग होगी. अब वह नीति क्या होगी, यह तो समय की बात है, लेकिन इतना जरूर है कि आतंकवाद से निपटने के लिए ट्रंप भारत को सहयोगी मानते हैं. इसलिए भारत को भी अपनी तरफ से पहल करके अमेरिका से रिश्तों को एक नया आयाम देने की कोशिश करनी चाहिए. अमेरिका की रिपब्लिकन सरकारों ने चीन को एक बाधा के रूप में और भारत को इंडो-पैसेफिक सहयोगी मानती रही हैं. इसलिए अब ट्रंप के आने से अब इस रिश्ते में कुछ और बढ़त मिल सकती है. भारत के साथ अमेरिकी रिश्तों को लेकर ओबामा का अपना अंदाज था, उसी तरह ट्रंप का भी अपना अंदाज होगा और वे भारत का कई मामलों में सहयोग चाहेंगे.
चुनाव प्रचार के दौरान ट्रंप ने जिस तरह से भारतीयों के साथ अलग मीटिंग रखी थी, वह बहुत महत्वपूर्ण बात है. मैं समझता हूं कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी जी की चुनाव स्ट्रेटजी को समझा है और उसका इस्तेमाल भी किया है. इसलिए हमें उम्मीद रखनी चाहिए कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक नया आयाम जरूर आयेगा. हर जगह नयी सरकार के आने से कुछ चुनौतियां होती ही हैं, लेकिन उन चुनौतियों के साथ ही नये रास्ते खुलते हैं. हो सकता है कि अमेरिकी लोगों को जॉब देने की कोशिश में कुछ बाहरी कंपनियों को वहां से वापस आना पड़े, जिसमें भारतीय भी हो सकती हैं. ऐसे में यह रास्ता भी खुलता है कि भारतीय कंपनियां भारत में आकर भी अमेरिका से कोलाबोरेशन करें और अपने सामानों को अमेरिकी बाजार तक पहुंचायें.
ट्रंप की पहली प्राथमिकता यह होगी कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करें. इंफ्रास्ट्रक्चर और व्यापार के क्षेत्र में भी सुधार की कोशिशें रहेंगी. इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर ट्रंप कई बार कह भी चुके हैं और जिस तरह से भारत में स्मार्ट सिटी और स्किल इंडिया के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है, इस मामले में दोनों देशों के बीच सहयोग की संभावना बन सकती है.
एक बात बहुत समय से चल रही है. अमेरिका में जो भी भारतीय काम करते हैं, कंपनियां चलाते हैं, उनसे सोशल सिक्योरिटी के नाम पर सहयोग राशि ली जाती है. लेकिन, अगर भारतीय वापस आ जाते हैं, तो सोशल सिक्योरिटी का फायदा नहीं मिल पायेगा.
ऐसे में भारत को यह पहल करनी होगी कि जब भारतीय वहां से लौट कर आयें, तो उन्हें वह सहयोग राशि वापस मिल जाये, नहीं तो उनके ऊपर यह एक प्रकार से अतिरिक्त कर हो जायेगा. बहरहाल, उम्मीद है कि भारत और अमेरिका के रिश्ते और भी मजबूत होंगे.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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