16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मुलायम कुनबा: ‘नेताजी’ का सियासी परिवार

Advertisement

!!कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार!!उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में 22 नवंबर, 1939 को श्रीमती मूर्ति देवी व श्री सुघर सिंह के तीसरे बेटे के रूप में पैदा हुए मुलायम सिंह यादव अभी पंद्रह साल के भी नहीं हुए थे, जब डॉ राममनोहर लोहिया ने फर्रुखाबाद में अपना ऐतिहासिक ‘नहर रेट’ आंदोलन शुरू […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

!!कृष्ण प्रताप सिंह वरिष्ठ पत्रकार!!

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के सैफई में 22 नवंबर, 1939 को श्रीमती मूर्ति देवी व श्री सुघर सिंह के तीसरे बेटे के रूप में पैदा हुए मुलायम सिंह यादव अभी पंद्रह साल के भी नहीं हुए थे, जब डॉ राममनोहर लोहिया ने फर्रुखाबाद में अपना ऐतिहासिक ‘नहर रेट’ आंदोलन शुरू किया.

- Advertisement -

मुलायम ने उसमें भागीदारी की और जेल जा कर उसका खामियाजा भी चुकाया. किस्मतवाले थे कि इस तरह उनकी राजनीतिक यात्रा आरंभ हुई, जिसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखना पड़ा. अपने सुदीर्घ राजनीतिक जीवन में मुलायम सिंह ने अपने परिवार और करीबी सगे-संबंधियों को समाजवादी पार्टी और सत्ता में हिस्सेदार बनाया. उनका परिवार भारतीय राजनीति का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार है. इसके प्रमुख सदस्यों के बारे में परिचयात्मक प्रस्तुति आज के इन-डेप्थ में…

सन् 1967 में वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जसवंत नगर से पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गये. बाद में किसान नेता चौधरी चरण सिंह के संपर्क में आये, तो चौधरी के व्यक्तित्व की उन पर ऐसी छाप पड़ी कि वे अपना राजनीतिक आराध्य भले ही उन डॉ लोहिया को बताते हैं, जिनसे कभी उनकी ठीक से भेंट भी नहीं हुई, उपलब्ध अवसरों के इस्तेमाल व खुन्नसों व जिदों के मामले में वे चौधरी के ही वारिस सिद्ध हुए.

उनके वक्त में मानसपुत्र तो खैर वे थे ही. यह और बात है कि अब शिवपाल उन्हें ‘लोहिया का लेनिन’ बताते नहीं थकते. लोगों को अभी भी याद है कि कैसे चौधरी के ही नक्श-ए-कदम पर चलते हुए मुलायम उनकी विरासत उनकी पत्नी गायत्री देवी और बेटे अजित से छीन लाये थे.

कॉरपाेरेट समाजवाद में बदला समाजवाद

आगे चल कर कैसे तीन-तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और दो बार केंद्र में रक्षामंत्री बनने तक के सफर में उन्होंने पहले धरतीपुत्र, फिर सामाजिक न्याय आंदोलन व धर्मनिरपेक्षता के सिपहसालार और मुल्ला तक की छवियां अर्जित कीं, फिर कैसे उनका समाजवाद काॅरपोरेट समाजवाद में बदला और धर्मपिरपेक्षता संदिग्ध हुई, यह सब अभी लोगों के जेहनों में ताजा है. सन् 1988 में अपने सगे व चचेरे भाइयों अभयराम, रतन, राजपाल, शिवपाल और राम गोपाल में से आखिरी दो को राजनीति के मैदान में उतार कर उन्होंने जिस राजनीतिक यादव परिवार की आधारशिला रखी थी, सारे झंझावातों के बावजूद अब वह न सिर्फ इस प्रदेश बल्कि देश का ‘सबसे ताकतवर’ राजनीतिक परिवार बन गया है. इस हद तक कि उनके विरोधी कहते हैं कि आज डॉ लोहिया होते, तो परिवारवाद की बुराइयों को लेकर उनका सबसे पहला और बड़ा संघर्ष मुलायम से ही होता.

सिमटते चले गये नेता जी

कहते हैं कि अपने परिवार की बेल को बढ़ा कर अमरबेल बनाने के ही चक्कर में जो मुलायम कभी सामाजिक न्याय आंदोलन के सिपहसालार थे, बसपा से गंठबंधन टूटने के बाद दलितों को छोड़ केवल पिछड़ों के नेता रह गये. फिर एमवाइ समीकरण के चक्कर में मुसलमानों व यादवों के नेता बने, तो भी सिमटते-सिमटते महज दबंग यादवों के, फिर महज अपने यादव परिवार के नेता रह गये. 2014 के लोकसभा चुनाव में उनकी अपील इतनी सीमित हो गयी कि पार्टी के नाम पर महज वे और उनके परिजन ही जीत पाये. कुल पांच सीटों में से दो पर मुलायम खुद और बाकी तीन पर उनकी बहू डिम्पल, भतीजे धर्मेंद्र और अक्षय यादव. बाद में उपचुनाव में तेजप्रताप उर्फ तेजू के रूप में मैनपुरी से उनकी एक और पीढ़ी लोकसभा पहुंच गयी.

‘संघर्ष का परिवारवाद’

इस बंटाधार के बावजूद अभी भी उत्तर प्रदेश के सत्ता संघर्ष में बेटे अखिलेश व भाई शिवपाल के बीच सत्ता की प्रतिद्वंद्विता के विवाद सुलझाते हुए मुलायम बिना किसी अपराधबोध के इस परिवारवाद का जैसा औचित्य प्रतिपादित करते हैं, वैसा शायद ही किसी और नेता या पार्टी ने कभी किया हो. इस सिलसिले में वे सत्ता की होड़ में प्रतिद्वंद्वी पार्टियों के खिलाफ सपा के अभियानों को स्वतंत्रता संघर्ष जैसा दरजा देकर कहते हैं कि उनका परिवारवाद ‘संघर्ष का परिवारवाद’ है.

सपा के सत्ता-संघर्ष

हां, बेटे अखिलेश को राजनीति में लाने का ठीकरा वे छोटे लोहिया के नाम से जाने जानेवाले अपनी पार्टी के नेता स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र पर फोड़ते और कहते हैं कि वही मेरी इच्छा के बावजूद उसे इस ‘संघर्ष’ में खींच लाये. अलबत्ता, अब उनकी दूसरी पत्नी साधना और उनसे जन्मे दूसरे बेटे प्रतीक की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं भी उफान पर हैं और सपा के सत्ता-संघर्षों को कभी प्रत्यक्ष तो कभी परोक्ष रूप से प्रभावित कर रही हैं.

धर्मेंद्र यादव
2004 में मुलायम सिंह यादव के मुख्यमंत्रीकाल में उनके सबसे बड़े भाई अभयराम के बेटे धर्मेंद्र यादव ने मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया था. इन दिनों वे बदायूं से पार्टी के लोकसभा सदस्य है.

अक्षय यादव
अक्षय यादव फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में वे पहली बार चुनावी राजनीति में उतरे और यादव परिवार की इस पारंपरिक संसदीय सीट से जीते.

तेज प्रताप यादव
तेज प्रताप यादव मुलायम के पोते तेज प्रताप मैनपुरी से सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था और दोनों जगहों से जीते थे. इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी और उस पर किसी पार्टीजन के बजाय पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया. मुलायम के बड़े भाई रतन सिंह के बेटे रणवीर सिंह के बेटे तेज प्रताप सिंह यादव उर्फ तेजू सैफई के ब्लॉक प्रमुख भी रह चुके हैं. परिवार के सदस्य उन्हें तेजू के नाम से भी पुकारते हैं.

प्रेमलता यादव

मुलायम सिंह के छोटे भाई राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता यादव ने गृहिणी के तौर पर जीवन के अधिकतर वर्ष गुजारने के बाद 2005 में इटावा की जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ा और जीत गयीं. वे राजनीति में आनेवाली मुलायम परिवार की पहली महिला है. उनके बाद शिवपाल यादव की पत्नी और मुलायम की बहू डिम्पल यादव भी राजनीति में आयीं.

उनके पति राजपाल यादव इटावा वेयर हाउस में नौकरी करते थे और रिटायर होने के बाद से समाजवादी पार्टी की राजनीति कर रहे हैं. 2005 में चुनाव जीतने के बाद प्रेमलता ने अपना कार्यकाल बखूबी पूरा किया और 2010 में दोबारा इसी पद पर निर्विरोध चुनी गयी, तो इसके पीछे राजपाल की महत्वपूर्ण भूमिका बतायी जाती है.

सरला यादव

शिवपाल यादव की पत्नी सरला यादव को 2007 में जिला सहकारी बैंक इटावा की राज्य प्रतिनिधि बनाया गया था. 2007 के बाद वे लगातार दो बार इस पद पर चुनी गई थी और अब कमान उनके बेटे के हाथ में है.

आदित्य यादव
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य जसवंत नगर लोकसभा सीट से अपने पिता के अभियान के एरिया इंचार्ज थे. मौजूदा समय में वह यूपीपीसीएफ के चेयरमैन हैं.

अंशुल यादव
राजपाल और प्रेमलता यादव के बेटे हैं अंशुल यादव. वे इसी साल इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गये हैं.

अरविंद यादव
मुलायम की चचेरी और रामगोपाल यादव की सगी बहन 72 वर्षीया गीता देवी के बेटे अरविंद यादव ने 2006 में सक्रिय राजनीति में कदम रखा और मैनपुरी के करहल ब्लॉक में ब्लॉक प्रमुख के पद पर निर्वाचित हुए. फिलहाल समाजवादी से विधान पार्षद हैं.

संध्या यादव
सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष के जरिए राजनीतिक एंट्री की. उन्हें मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए निर्विरोध चुना गया.

शीला यादव

शीला यादव मुलायम के कुनबे की पहली बेटी हैं, जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. शीला यादव जिला विकास परिषद की सदस्य निर्वाचित हुई हैं, साथ ही बहनोई अजंत सिंह यादव बीडीसी सदस्य चुन गये हैं. मुलायम की एक और संबंधी वंदना भी पंचायत पदाधिकारी चुनी गयी हैं.

शिवपाल यादव
जहां तक सबसे छोटे भाई शिवपाल सिंह की बात है, मुलायम ने अपनी कोशिशों से उन्हें और रामगोपाल को 1988 में एक साथ नेता बना दिया था. शिवपाल को इटावा के जिला सहकारी बैंक का अध्यक्ष और राम गोपाल को बसरेहर का ब्लाॅक प्रमुख चुनवा कर. आगे चल कर 1996 में मुलायम ने शिवपाल के लिए अपनी जसवंतनगर विधानसभा सीट खाली कर दी थी, जिस पर अभी तक शिवपाल का कब्जा बरकरार है.

2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा की हार के बाद शिवपाल विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे और अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को लेकर अपने भतीजे अखिलेश के प्रतिद्वंद्वी हैं. हां, बाद में जसवंतनगर से शुरू हुआ मुलायम का यह फाॅर्मूला बेहद हिट हो गया कि वे प्रदेश में कहीं किसी सीट से चुनाव लड़ें और वहां आधार विकसित करने के बाद अपने किसी परिजन के लिए खाली कर दें, जो कुनबे को आगे बढ़ाने में लग जाये.

रामगोपाल यादव
शिवपाल के लिए जसवंतनगर की ही तरह मुलायम ने 2004 में अपनी सम्भल सीट अपने ममेरे भाई रामगोपाल के लिए छोड़ दी और खुद मैनपुरी से सांसद का चुनाव लड़ा. तब रामगोपाल सम्भल से जीत हासिल करके संसद पहुंचे. इससे पहले 1989 में राम गोपाल इटावा के जिला परिषद अध्यक्ष का चुनाव भी जीत चुके थे. लेकिन बाद में मुलायम ने उनकी कथित विद्वता का सम्मान करते हुए उन्हें उच्च सदन में भेज दिया और अभी भी वे राज्यसभा सांसद और सपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं. पार्टी के भीतर के सत्ता संघर्ष में वे मुलायम से असहमत, शिवपाल व अमर सिंह के खिलाफ और अखिलेश के समर्थन में बताये जाते हैं.

अखिलेश यादव
‘परंपरा’ के अनुसार मुलायम ने 1999 का लोकसभा चुनाव संभल व कन्नौज दोनों सीटों से लड़ा और दोनों ही सीटों पर जीते. इसके बाद कन्नौज की सीट उन्होंने बेटे अखिलेश के लिए खाली कर दी. अखिलेश 27 साल की उम्र में इसी सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे. तब से वे तीन बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सपा की ऐतिहासिक जीत के बाद 15 मार्च, 2012 को वे प्रदेश के सबसे कम उम्र के यानी सबसे युवा मुख्यमंत्री बने तो सपा के प्रदेश अध्यक्ष भी थे.

डिंपल यादव
24 नवंबर, 1999 को अखिलेश यादव से विवाह के बाद डिंपल मुलायम के परिवार की बहू बनीं. पिता की राह पर चल कर अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल करने के बाद वह सीट डिंपल यादव के लिए छोड़ दी. लेकिन उनकी यह जुगत कुछ काम नहीं आयी और डिंपल यादव को वहां कांग्रेस के स्टार प्रत्याशी राज बब्बर के हाथों करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. यों, खेल में मात खाने के बावजूद अखिलेश का भरोसा इस फाॅर्मूले से नहीं टूटा. 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी कन्नौज लोकसभा सीट एक बार फिर डिंपल के लिए खाली की. इस बार सूबे में सपा की लहर का आलम ये था कि किसी भी पार्टी की डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं हुई और वे निर्विरोध जीतीं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें