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धूप-मिट्टी के बिना भी खेती मुमकिन!

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भविष्य की खेती: ‘एयरोपॉनिक्स’ की आरंभिक सफलता से जगी उम्मीद संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक दुनिया की आबादी साढ़े आठ अरब से ज्यादा हो जायेगी, जिसमें आधी से अधिक शहरों में रह रही होगी. दुनियाभर में शहरों के बढ़ते दायरे और विकास की अन्य गतिविधियों के चलते खेती योग्य भूमि का […]

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भविष्य की खेती: ‘एयरोपॉनिक्स’ की आरंभिक सफलता से जगी उम्मीद
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक दुनिया की आबादी साढ़े आठ अरब से ज्यादा हो जायेगी, जिसमें आधी से अधिक शहरों में रह रही होगी. दुनियाभर में शहरों के बढ़ते दायरे और विकास की अन्य गतिविधियों के चलते खेती योग्य भूमि का रकबा कम हो रहा है. साथ में कम हो रहा है भू-जल का स्तर भी. इसके मद्देनजर कुछ वैज्ञानिक ऐसी अभिनव तकनीक विकसित करने में जुटे हैं, जिससे धूप और मिट्टी के बिना ही तथा कम-से-कम पानी में खेती संभव हो सके. ‘एयरोपॉनिक्स’ के रूप में इस दिशा में कुछ आरंभिक कामयाबी मिली भी है. खेती की नयी तकनीक से जुड़े महत्वपूर्ण पहलुओं के बारे में बता रहा है यह आलेख …

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दुनियाभर में बढ़ती आबादी, सिकुड़ती खेती योग्य भूमि और गिरते भू-जल स्तर से उत्पन्न चिंताओं के बीच एक अमेरिकी कंपनी ने धूप-मिट्टी के बिना और अत्यंत कम पानी में ही इनडोर खेती शुरू की है. पौधों के उगाने की ‘एयरोपॉनिक्स’ नामक इस नयी तकनीक का परीक्षण अब तक बेहद सीमित दायरे में हुआ है, लेकिन अब ‘एयरो फार्म्स’ नामक कंपनी अमेरिका के न्यू जर्सी इलाके के नेवार्क में करीब 69,000 वर्ग फुट खेत को एक ऐसी फैक्टरी में तब्दील कर रही है, जिसमें इस तकनीक का व्यापक परीक्षण किया जायेगा.

इसमें ‘हाइड्रोपॉनिक्स’ (मिट्टी के बिना और अत्यंत कम पानी के आधार पर खेती की प्रक्रिया) तकनीक को भी मिश्रित किया गया है, जिससे हासिल विविध जटिल आंकड़ों को एकत्रित करते हुए पौधों की बढ़वार के लिए उपयुक्त हालात का आकलन किया जा सकता है. इस नयी तकनीक के जरिये स्वादिष्ट व लंबे साग और गोभी जैसी सब्जियों के अलावा खाने योग्य जलकुंभी और तुलसी जैसे औषधीय पौधों को भी उगाया जायेगा. ‘सीएनएन’ की एक रिपोर्ट में आगामी दशकों में सभी को भोजन मुहैया कराने की दिशा में इसे एक अभिनव (इनोवेटिव) जरिया बताया गया है, जिसमें पूरी तरह से नियंत्रित इनडोर पर्यावरण में धूप और मिट्टी के बिना ही पौधों को उगाया जा सकता है. इस रिपोर्ट में इनडोर फार्मिंग के मामले में ‘एयरो फार्म्स’ को अग्रणी बताया गया है.

क्या है एयरोपॉनिक्स
पौधों को उगाने की यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें खेती के प्रमुख माध्यम यानी धूप-मिट्टी और पानी के बिना इन्हें स्वच्छ व सक्षम तरीके से तेजी से उगाया जाता है. साथ ही, बिना किसी बाधा के सालभर इन पौधों से पर्याप्त फसल हासिल किया जा सकता है. अब तक के परीक्षणों में यह पाया गया है कि इस विधि के तहत उगाये गये पौधे अपेक्षाकृत ज्यादा खनिज पदार्थ और विटामिन्स का अवशोषण करते हैं, लिहाजा पौधे ज्यादा सेहतमंद भी होते हैं और इनमें पोषण की क्षमता ज्यादा होती है.

एयरोपॉनिक्स के विविध चरण
इसमें विविध तकनीकों का नियंत्रित इस्तेमाल किया जाता है, जो इस प्रकार हैं :

स्मार्ट एयरोपॉनिक्स : इसे उगाने के लिए जड़ों में केवल न्यूट्रिएंट्स, पानी (महज दो से पांच फीसदी तक) और ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है.

एलइडी लाइट्स : प्रत्येक पौधों तक रोशनी पहुंचाने के लिए एलइडी लाइट्स का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि सर्वाधिक संभावित ऊर्जा-सक्षम तरीके से पौधों की फोटोसिंथेसिस संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके. लाइटिंग के लिए फार्म के आंशिक हिस्से में सोलर एनर्जी का इस्तेमाल किया जा रहा है.

सॉफ्टवेयर से नियंत्रण : पौधों की बढ़वार, उसके रंग, स्वाद, तने और पत्ते का सही अनुपात, पोषण और उत्पादन आदि पर नियंत्रण के लिए कंपनी ने अपना सॉफ्टवेयर विकसित किया है. इसका दायरा बढ़ने की दशा में सटीक निगरानी के लिए सेंसर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

स्मार्ट न्यूट्रिशन : पौधों को पनपने के लिए मैक्रो और माइक्रो न्यूट्रिएंट्स की निगरानी की जाती है. सामान्य बीजों के जरिये पारंपरिक खेती के मुकाबले आधे समय में ही इसे उगाया जा सकता है और समान क्षेत्रफल में 75 गुना तक ज्यादा उत्पादन हासिल किया जा सकता है.

स्मार्ट डाटा एलगोरिदम : एयरो फॉर्म्स के प्लांट वैज्ञानिक प्रत्येक सीजन में 30,000 से अधिक आंकड़ों की निगरानी करते हैं. बेहतर और नियमित नतीजे हासिल करने के लिए वे प्रोडक्टिव एनालिटिक्स का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें एलगोरिदम की मदद ली जाती है. इससे पैदावार को बढ़ाया जा सकता है.

बीज बोने के लिए खास प्रक्रिया : बीज बोने के लिए पेटेंटेड, दोबारा से इस्तेमाल में लाये जा सकनेवाले खास कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके जरिये इनका अंकुरण भी होता है. यह खास कपड़ा रिसाइकिल किये हुए प्लास्टिक से बनाया जाता है, जिस पर बोतलों से होनेवाले रिसाव के जरिये पानी का छिड़काव किया जाता है.

पेस्ट मैनेजमेंट : इनडोर पर्यावरण में सभी चीजें कृत्रित रूप से नियंत्रित की जाती हैं, लिहाजा इसके बढ़वार की प्रक्रिया में पेस्टीसाइड्स, हर्बीसाइड्स और फंजीसाइड्स की जरूरत नहीं होती.

इस विधि की प्रमुख खासियतें

एक आकलन के मुताबिक दुनियाभर में हो रही पानी की कुल खपत का करीब 70 फीसदी इस्तेमाल खेती में होता है. इस नयी विधि से खेती में पानी की काफी बचत होती है. इसके अब तक के परीक्षण में अच्छे नतीजे मिले हैं, जिसकी कुछ खासियतें हैं:

तेज हारवेस्ट साइकल यानी फसल चक्र के लिए प्रभावी सिस्टम.

उच्च स्तर की खाद्य सुरक्षा मुहैया कराने में सक्षम.

पर्यावरण पर बहुत ही कम दुष्प्रभाव.

प्रदूषित मिट्टी के हानिकारक असर से रहित फसल की प्राप्ति.

पारंपरिक खेती के मुकाबले 95 फीसदी तक कम पानी का इस्तेमाल.

पौधों में रोग और संक्रमण का जोखिम कम!

आमतौर पर पौधों में रोग लगने या संक्रमण की दशा में उसके तेजी से बढ़ने का खतरा रहता है, जो पूरी फसल को चौपट कर देते हैं. लेकिन, इस विधि के तहत इनका खतरा बहुत ही कम हो जाता है. साथ ही मिट्टी के जरिये पौधों तक पहुंचनेवाले संक्रमण को जोखिम तो बिल्कुल ही खत्म हो जाता है.

नासा ने स्पेस फ्लाइट में उगाये पौधे

इस तकनीक को विकसित करने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ पिछले करीब दो दशकों से काम कर रहा है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर इसके परीक्षण के लिए नासा ने वर्ष 1997 में कोलोरेडो की एग्रीहाउस इंक से गंठजोड़ किया था. यह कंपनी 1980 के दशक से ही इस पर काम कर रही थी और बाद में इसने एयरोपॉनिक क्रॉप प्रोडक्शन के लिए पेटेंट का दावा भी किया. एग्रीहाउस ने नासा-प्रायोजित रिसर्च पार्टनरशिप सेंटर के तौर पर एक नॉन-प्रॉफिट संगठन ‘बायोसर्व स्पेस टेक्नोलॉजीज’ के जरिये स्पेस फ्लाइट में इस तकनीक से पौधे भी गये.

एक्वापॉनिक्स और हाइड्रोपॉनिक्स से बेहतर है एयरोपॉनिक्स

एयरो फॉर्म्स के फाउंडर डेविड रोसेनबर्ग के मुताबिक इस बड़े फार्म से सालाना 20 लाख पाउंड हरित पदार्थों का उत्पादन किया जा सकेगा, जिनका इस्तेमाल खाने के लिए किया जा सकता है. रोसेनबर्ग का दावा है कि आम तौर पर इनडोर फार्मिंग तकनीक के तहत एक्वापॉनिक्स और हाइड्रोपॉनिक्स का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन एयरोपॉनिक्स इनसे बेहतर है.

एक्वापॉनिक्स : यह ऐसा इनडोर फार्मिंग सिस्टम है, जिसमें खेती और मछली पालन साथ-साथ किया जाता है. एक प्रकार से सहजीवी माहौल के तहत पारंपरिक तरीके से यह खेती की जाती है, जिसमें मछलियों द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का इस्तेमाल खाद के रूप में किया जाता है. हालांकि, खेती के दायरे के अनुरूप इसके सिस्टम के कुछ आयामों में बदलाव देखा जा सकता है.

हाइड्रोपॉनिक्स : इस सिस्टम के तहत पानी में मौजूद पोषक तत्वों की मदद से मिट्टी के बिना ही पौधे उगाये जाते हैं. इसे एक प्रकार से जलीय खेती कहा जा सकता है, क्योंकि इसमें मुख्य भूमिका जल की ही होती है. हालांकि, इसके कई तरीके हैं, लेकिन मुख्य रूप से दो तरीकों (पौधों की जड़ों में पानी देने और ऊपर से छिड़काव करने) का इस्तेमाल किया जाता है.

और रेगिस्तान में उग रही हैं सब्जियां

समुद्र का पानी और रेगिस्तान, ये दोनों ऐसे प्राकृतिक संसाधन हैं, जो दुनियाभर में प्रचुरता में मौजूद हैं, लेकिन अब तक इनकी उपयोगिता बहुत कम रही है. इन्हें उपयोगी बनाने की सार्थक पहल करते हुए ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने इनके जरिये सालाना करीब 17,000 टन टमाटर की पैदावार हासिल की है. ‘साइंस एलर्ट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, दक्षिण ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तानी इलाके में वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल के सहयोग से ‘सनड्रॉप फार्म्स’ ने छह वर्षों तक व्यापक शोध किया. इन वैज्ञानिकों ने यहां ताजे पानी और सामान्य मिट्टी के बिना रेगिस्तान में फसल उत्पादन की संभावनाओं की तलाश की है. पारंपरिक ग्रीनहाउस में सिंचाई के लिए भूमिगत जल, हीटिंग के लिए गैस और कूलिंग के लिए बिजली का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन, सनड्रॉप ग्रीनहाउस समुद्री जल और सूरज की रोशनी को ही ऊर्जा व ताजे पानी में तब्दील करता है. फसलों की बढ़वार के लिए इसमें कार्बन डाइऑक्साइड और न्यूट्रिएंट्स का इस्तेमाल किया जाता है.

सोलर एनर्जी का व्यापक इस्तेमाल : ऑस्ट्रेलिया में पोर्ट ऑगस्टा के निकट 20 हेक्टेयर भूमि पर वर्ष 2014 से इस कॉन्सेप्ट का व्यापक इस्तेमाल किया जा रहा है. महज दो किमी की दूरी पर मौजूद स्पेंसर गल्फ से समुद्र का पानी लाया जाता है, जिसने खेती में ताजे पानी की जरूरत को कम कर दिया है. दरअसल, इस फार्म के निकट एक सोलर पावर संचालित प्लांट लगाया गया है, जहां समुद्र के पानी से नमकीन पदार्थों समेत अन्य गैर-जरूरी तत्वों को साफ किया जाता है और उसे सिंचाई योग्य बनाया जाता है. यहां खासकर सब्जियों की खेती की जाती है, जिनकी जड़ों में नारियल के बुरादे डाले जाते हैं, जो गर्मी के मौसम में 48 डिग्री से ज्यादा तापमान में पौधों को झुलसने से बचाते हैं. जाड़े के दिनों में महज सूरज की रोशनी से ही पौधे अपना अस्तित्व बनाये रखते हैं और इसके अलावा इन्हें किसी अन्य चीज की जरूरत नहीं होती.

फार्म में 23,000 शीशे : सोलर पैनल के बजाय यहां फार्म में 23,000 शीशे लगाये गये हैं, जो एक फिक्स्ड टावर पर सूर्य की किरणों को फोकस करते हैं. यहां लगा हुआ जेनरेटर उससे बिजली पैदा करता है. इस पूरे काम के लिए अलग से बिजली की जरूरत नहीं पड़ती है. इस फार्म हाउस की लागत करीब 20 करोड़ डॉलर है, जिसमें 1,80,000 टमाटर के पौधे लगाये जाते हैं. सनड्रॉप के विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि भविष्य में इस सिस्टम की लागत में कमी आयेगी और इसके जरिये पूरी दुनिया में प्रचुरता में मौजूद समुद्री जल का इस्तेमाल करते हुए व्यापक पैमाने पर खेती की जा सकती है.
प्रस्तुति: कन्हैया झा

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