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मांस, मीठे और वसा से दूरी जरूरी

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भारत के पारंपरिक आहार में अल्जाइमर्स से लड़ने की क्षमता दुनिया भर में 4.2 करोड़ लोग अल्जाइमर्स के शिकार हैं, लेकिन एक अध्ययन के अनुसार, भारत सहित कुछ अन्य देशों के पारंपरिक आहार में अल्जाइमर्स से लड़ने की क्षमता पायी गयी है. इसकी वजह यह है कि इनमें पौधों से प्राप्त खाद्य सामग्रियों की अधिकता […]

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भारत के पारंपरिक आहार में अल्जाइमर्स से लड़ने की क्षमता
दुनिया भर में 4.2 करोड़ लोग अल्जाइमर्स के शिकार हैं, लेकिन एक अध्ययन के अनुसार, भारत सहित कुछ अन्य देशों के पारंपरिक आहार में अल्जाइमर्स से लड़ने की क्षमता पायी गयी है. इसकी वजह यह है कि इनमें पौधों से प्राप्त खाद्य सामग्रियों की अधिकता और मांस की मात्रा कम होती है.
एक हालिया अध्ययन की मानें तो भारत, जापान और नाइजीरिया के पारंपरिक आहार में अल्जाइमर्स से लड़ने की क्षमता देखी गयी है. इसकी वजह यह है कि इनमें पौधों से प्राप्त खाद्य सामग्रियों की अधिकता और मांस की मात्रा कम होती है. पश्चिमी देशों में आम तौर पर लोगों का जो आहार होता है, उसमें मांस, अत्यधिक वसा वाले दुग्ध उत्पाद और मीठे की प्रचुरता होती है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन सब चीजों से अल्जाइमर्स का खतरा बढ़ जाता है.
जर्नल ऑफ द अमेरिकन कॉलेज ऑफ न्यूट्रिशन में छपी इस अध्ययन की रिपोर्ट में भूमध्य-सागरीय और पश्चिमी देशों में रहनेवाले लोगों के आहार के बीच तुलना की गयी है, जिसमें यह बताया गया है कि पश्चिमी देशों में लोगों का खानपान, भूमध्य-सागरीय क्षेत्र में रहनेवालों की तुलना में अल्जाइमर्स को दोगुना बढ़ावा देता है.
इस अध्ययन की रिपोर्ट तैयार करनेवाले विलियम बी ग्रांट सैन फ्रांसिस्को कैलिफॉर्निया के सनलाइट, न्यूट्रिशन एंड हेल्थ रिसर्च सेंटर के प्रोफेसर है. वह बताते हैं कि भूमध्य-सागरीय क्षेत्र, खासकर भारत, जापान और नाइजीरिया के लोगों का आहार साग-सब्जी पर ज्यादा और मांस पर कम आधारित है, इसीलिए पश्चिमी देशों की तुलना में इनका आहार अल्जाइमर्स का खतरा 50 प्रतिशत तक कम करता है.
गौरतलब है कि फल, सब्जी, अनाज, कम वसा वाले दुग्ध उत्पाद, दालें और मछली का सेवन अल्जाइमर्स के खतरे को कम करते हैं. किस देश का प्रचलित आहार अल्जाइमर्स के खिलाफ कितना कारगर है, यह जानने के लिए वैज्ञानिकों के एक दल ने भारत के अलावा, ब्राजील, चिली, जापान, क्यूबा, नाइजीरिया, मिस्र, मंगोलिया, कोरिया, श्रीलंका और अमेरिका सहित कुछ देशों के लोगों के आहार, बीते डेढ़-दो दशकों में इनमें आये बदलाव और अल्जाइमर्स से लड़ने की उनकी क्षमता पर पड़े असर के बारे में गहरा विश्लेषण किया
उदाहरण के लिए वैज्ञानिकों ने जापान में लोगों के खाद्य व्यवहार में आये अंतर और अल्जाइमर्स पर उसके प्रभाव से संबंधित आंकड़े पेश किये.
जापान के लोगों ने कुछ दशक पहले अपना पारंपरिक आहार छोड़ कर पश्चिम में प्रचलित आहार को अपनाना शुरू किया. इसके फलस्वरूप वहां के लोगों में अल्जाइमर्स की दर, जो वर्ष 1985 में एक प्रतिशत थी, वह वर्ष 2008 में बढ़कर आठ प्रतिशत हो गयी. खाद्य व्यवहार में आये परिवर्तन के आधार पर लोगों में अल्जाइमर्स के प्रभाव पर केंद्रित इस अध्ययन में अमेरिका इस बीमारी के सबसे खतरे में पाया गया, जहां हर व्यक्ति को अल्जाइमर्स की चार प्रतिशत संभावना है. अध्ययनकर्ता ग्रांट कहते हैं कि मांस का सेवन, अल्जाइमर्स के साथ-साथ कई तरह के कैंसर, टाइप-2 डायबिटीज, हृदयाघात और किडनी की बीमारी का खतरा भी बढ़ा देता है.
गौरतलब है कि दुनियाभर में 4. 2 करोड़ लोग अल्जाइमर्स के शिकार हैं. यह एक मानसिक विकार है, जो आम तौर पर 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों में पाया जाता है. यह बीमारी मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया का सबसे आम प्रकार है. इसमें मरीज की याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है और वह रोजमर्रा के सभी काम करने में कठिनाई महसूस करता है. इस बीमारी से पीड़ित मरीज कोई सामान कहीं रख कर भूल जाता है. यही नहीं, वह लोगों के नाम, पता, नंबर, अपने ही घर का पता, यहां तक कि खाना और नित्य क्रिया तक भूलने लगता है.
इस बीमारी की वजह जानने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन किये जा रहे हैं, लेकिन कई विशेषज्ञों का कहना है कि हमारे मस्तिष्क के अंदर कुछ कोशिकाओं के पुराने पड़ जाने के कारण दिमाग में कुछ संदेश पहुंचने में गड़बड़ी होने से अल्जाइमर्स होता है. यह भी देखा गया है कि परिवार में किसी को यह बीमारी पहले रही हो, तो आनेवाली पीढ़ियों में इसका खतरा बढ़ जाता है.

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