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कमजोर हो रही हैं धर्मनिरपेक्ष शक्तियां

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कमल मित्र चिनॉय प्रोफेसर, जेएनयू साल 1971 में बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी आजादी की लड़ाई भारत की मदद से लड़ी थी. उस समय जमात-ए-इसलामी के काफी लोग वहां थे, जो बाद के वर्षों में बेगम खालिदा जिया के साथ चले गये. बांग्लादेश में जमात-ए-इसलामी एक कट्टर धार्मिक संगठन है, जो अब भी बेगम जिया […]

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कमल मित्र चिनॉय प्रोफेसर, जेएनयू
साल 1971 में बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी आजादी की लड़ाई भारत की मदद से लड़ी थी. उस समय जमात-ए-इसलामी के काफी लोग वहां थे, जो बाद के वर्षों में बेगम खालिदा जिया के साथ चले गये. बांग्लादेश में जमात-ए-इसलामी एक कट्टर धार्मिक संगठन है, जो अब भी बेगम जिया का समर्थन करता है. बेगम जिया हमेशा से इसलामी कट्टरपंथियों का साथ देती रही हैं, जबकि शेख हसीना ऐसा नहीं करतीं. कट्टरपंथियों की सोच है कि आगे जब शेख हसीना हटेंगी और बेगम जिया की सरकार बनेगी, तो उन्हें अपने धार्मिक काम को अंजाम देने में आसानी होगी. इसलिए कट्टरपंथी वहां स्वतंत्र आवाज उठानेवाले लोगों की हत्या कर रहे हैं. यह एक तरह से सत्ता-संघर्ष का भी मसला है, जो स्वतंत्र आवाजों को दबाने की कोशिश करता है.
दरअसल, आजादी के समय बांग्लादेश में जो लोग प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सोच के थे, उनकी नयी पीढ़ी का मानना है कि अभी उन्हें पूरी आजादी नहीं मिली है, इसलिए वे ब्लॉग लिख कर लोगों को धार्मिक कट्टरता से आगाह करने की कोशिश करने लगे. इस बीच शेख हसीना ने बांग्लादेश की लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष छवि बनाने की कोशिश की है और कट्टरपंथियों के खिलाफ कुछ कदम उठा कर देश भर में लोकप्रियता हासिल की है.
हालांकि वे उतनी कामयाब नहीं हो पायी हैं, क्योंकि कई मौकों पर उन्हें कट्टरपंथ से समझौता भी करना पड़ा है. इन्हीं सब के बीच ही वहां के ब्लॉगरों ने लोगों में धर्मनिरपेक्षता के पक्ष में यह लिखना शुरू किया है कि एक बेहतर देश के लिए धर्मनिरपेक्षता कितना मायने रखती है. ब्लाॅगरों की यह कोशिश कट्टरपंथियों को रास नहीं आती है और वे उनकी हत्या कर देते हैं. साल 2013 से अब तक छह से ज्यादा सक्रिय ब्लॉगर मारे जा चुके हैं, इसका अर्थ है कि वहां धर्मनिरपेक्षता बहुत कमजोर है. ब्लॉगरों की हत्या इस बात का भी संकेत है कि बांग्लादेश में कट्टरपंथियों और सत्ता-संघर्ष के बीच में धर्मनिरपेक्ष और शांति का समर्थन करनेवाले लोग खतरे में हैं.
दूसरी बात यह है कि बांग्लादेश एक बहुत ही गरीब देश है. वहां भुखमरी और बेरोजगारी भी बहुत है. जिनके पास काम नहीं है, कट्टरपंथियों के लिए उन्हें बरगलाना आसान हो जाता है. धार्मिक कट्टरता और ब्लॉगरों की हत्याओं के पीछे एक और मुख्य बात यह भी है कि फिलहाल बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष शक्तियां बहुत कमजोर हैं और कट्टरपंथी शक्तियां हावी हो रही हैं. वहां के बाकी लेखकों-स्तंभकारों को भी चाहिए कि वे इन हत्याओं के खिलाफ लिखें-बोलें, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. ब्लॉगरों की लगातार होती हत्याओं के बाद भी अभी उनमें गुस्सा नहीं फूटा है, जो बांग्लादेश की जनता के लिए खतरनाक साबित हो सकती है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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