28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

पहले से ज्यादा संभावनाएं हैं भारत में

Advertisement

भारत में मुक्त उद्यम का सशक्तीकरण गत चार फरवरी, 2016 को मुंबई में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम जी राजन ने 13वां नानी पालकीवाला स्मृति व्याख्यान दिया था. राजन अपनी साफगोई के लिए मशहूर हैं. वह मानते हैं कि भारत एक गतिशील समाज है, जो सदा परिवर्तनशील तथा चिर नवीन है. यकीनन, भारत में मुक्त […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

भारत में मुक्त उद्यम का सशक्तीकरण
गत चार फरवरी, 2016 को मुंबई में रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम जी राजन ने 13वां नानी पालकीवाला स्मृति व्याख्यान दिया था. राजन अपनी साफगोई के लिए मशहूर हैं. वह मानते हैं कि भारत एक गतिशील समाज है, जो सदा परिवर्तनशील तथा चिर नवीन है. यकीनन, भारत में मुक्त उद्यम के लिए संभावनाएं इसके इतिहास में पहले कभी से आज कहीं अधिक हैं. पढ़िए पूरा भाषण.
मुझे नानी पालकीवाला से मिलने का सौभाग्य हासिल नहीं हो सका, पर भारत का प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में उनके जीवन-कार्य से अवश्य प्रभावित हुआ है, और, उस अर्थ में, वह उनका ऋणी है. 1920 में जन्मे पालकीवाला न केवल उच्चतम क्षमता के विधिवेत्ता, बल्कि संवैधानिक स्वतंत्रताओं, मानवाधिकारों, वैयक्तिक तथा आर्थिक आजादी के अथक पैरोकार भी थे.
उन्होंने केशवानंद भारती मुकदमे की पैरवी की, जिसने यह तय किया कि भारतीय संसद संविधान के बुनियादी ढांचे में फेरबदल नहीं कर सकती. अकेले यही उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में प्रतिष्ठित करने को काफी है. मगर उन्होंने तो इससे आगे भी बहुत कुछ किया. वह आपातकाल के विरुद्ध उठ खड़े हुए और उनकी आवाज उस वक्त निरंकुशता के खिलाफ बुलंद की गयी चंद आवाजों में एक थी, जब भारतीय लोकतंत्र का मौलिक चरित्र डगमगा रहा था.
फिर यह मानते हुए कि राजनीतिक तथा आर्थिक आजादी साथ-साथ चलती है, बजट के बाद के अपने नियमित व्याख्यानों के द्वारा उन्होंने भारत की आथिक नीतियों पर अपने विचारों द्वारा हजारों व्यक्तियों को मंत्रमुग्ध कर छोड़ा था.
तब भारत में जिस समाजवाद का चलन था, पालकीवाला ने अकेले ही उसकी मुखालफत करते हुए यह दलील दी कि वह ईमानदार धनवानों की दौलत बेईमान धनवानों को हस्तांतरित करनेवाली धोखाधड़ी है. इसके बजाय, उन्होंने मुक्त उद्यम की तरफदारी की. यहां यह याद रखना मौजूं होगा कि वे टीसीएस (टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज) के अध्यक्ष भी थे, जो आज भारतीय आर्थिक आकाश का सबसे चमकदार सितारा है.
तभी तो एक बार राजाजी ने उन्हें ‘भारत को भगवान का विशिष्ट उपहार’ बताया था. अपनी जीवनसंध्या में नानी पालकीवाला भारत के प्रति निराशा से भर उठे थे. तभी आइआइटी प्रवेश परीक्षा के पर्चे उजागर हो जाने की घटना ने कभी
बेजोड़ समझे जानेवाले एक और संस्थान की खामियां उजागर कर उनकी पीड़ा और भी बढ़ा दी, जिसे ऑस्ट्रेलिया में दिये गये अपने एक व्याख्यान में व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं नहीं समझता कि अपने 5000 वर्षों के इतिहास में भारत कभी इतना निचला स्तर छू सका है, जहां वह अभी पहुंच चुका है.’
मगर उसी भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि भारत हमेशा ही ऐसी उलझनों से निकल पाने के रास्ते तलाश लेता है. आज के अपने व्याख्यान में मेरी यही दलील रहेगी कि पालकीवाला की निराशा से कहीं अधिक भारत को आज उनकी आशावादिता की जरूरत है. हां, हमारी अपनी कमजोरियां और आत्यंतिकताएं हैं, किंतु हमारा लोकतंत्र स्व-सुधारात्मक भी है और जब हमारे कुछ संस्थान कमजोरियों के शिकार बन जाते हैं, तो कई दूसरे अपनी मजबूतियां दिखा दिया करते हैं. भारत एक गतिशील समाज है, जो सदा परिवर्तनशील तथा चिर नवीन है. यकीनन, भारत में मुक्त उद्यम के लिए संभावनाएं इसके इतिहास में पहले कभी से आज कहीं अधिक हैं.
मुक्त उद्यम के फलने-फूलने की इन दो शर्तों को ऐतिहासिक मान्यता हासिल है:
1. सबके सुगम प्रवेश तथा निकास के लिए समान अवसर, तथा
2. संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा.
पहले तो मैं उपर्युक्त स्थितियों की व्याख्या कर लूं, फिर मैं इनमें दो और कारक जोडूंगा, जिन्हें मुक्त उद्यम के राजनीतिक रूप से टिकाऊ होने के लिए मैं अहम मानता हूं:
3. क्षमताओं तक पहुंच का विस्तारीकरण, और
4. एक बुनियादी सुरक्षा ढांचा.
क) सबके सुगम प्रवेश तथा निकास के लिए समान अवसर
· उद्यम के क्षेत्र में जब कोई भी प्रवेश पाकर एक फर्म स्थापित करते हुए स्पर्धा में उतर सकता है, तो इससे स्वस्थ नतीजे हासिल होते हैं. सबसे अच्छी इकाई जीतती है और इससे पूरी अर्थव्यवस्था में कार्यकुशलता बढ़ जाती है.
· मुक्त उद्यम तथा स्पर्धा पक्षपात तथा सामाजिक पूर्वाग्रहों का मुकाबला करते हैं.
-दलित उद्यमीगण
-प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर)
· कामकाज के नियम तय करने तथा वांछित व्यवहारों के लिए विवश करने हेतु सरकार तथा विनियामकों की जरूरत है. पक्षपातपूर्ण सरकार/विनियमन समान अवसरों को विकृत कर देते हैं. ऐसा नहीं है कि अड़चनें हों ही नहीं, मगर गैर-बराबर अड़चनें तो नहीं ही होनी चाहिए.
-प्रवेश के विनियमों पर मेरे द्वारा किया गया अध्ययन: इटालियन फर्म्स स्मॉल. बट लो एंट्री. व्हाई? मेरे द्वारा किया गया अध्ययन: राजन, लीवेन ऐंड क्लैपर (2006). इतालवी फर्मों को प्रवेश की नियत लागतों से पार पाने के लिए बड़े आकार की जरूरत होती है, पर वे धीरे-धीरे बढ़ती हैं. इससे आर्थिक विकास और धीमा होता है.
· भारत की स्थिति
-लाइसेंस-परमिट राज : इलाज: 1990 के दशक का उदारीकरण
§ 23 नए बैंकों का प्रवेश
-संसाधन राज: खदानों, स्पेक्ट्रम इत्यादि तक रसूखदारों की पहुंच. इलाज: नीलामी तथा पारदर्शिता
-इंस्पेक्टर राज: इलाज: स्टार्टअप इंडिया, लालफीताशाही में कमी, प्रवेश की अड़चनें
§ कानूनों को लगातार तार्किक बनाने से उम्मीद जगती है, खासकर जब राज्यों के बीच भी विनियमों के सरलीकरण की स्पर्धा है.
§ रिजर्व बैंक के सर्वोपरि निदेश
· कुछ ऐसी खामियां बनी हुई हैं, जो नयी फर्मों को खासतौर पर नुकसान पहुंचाती हैं:
-बुनियादी ढांचा के साथ ढुलाई (लॉजिस्टिक्स): छोटी फर्मों के अनुकूल नहीं
*सड़कें, बंदरगाह, हवाईअड्डे, ऊर्जा, इंटरनेट बाजार
-भूमि: छोटी फर्मों के अनुकूल नहीं
* राज्यों के बीच स्पर्धा
-वित्त: छोटी तथा गैर-आजमायी फर्मों के अनुकूल नहीं. प्रौद्योगिकी तथा नये संस्थानों के साथ स्थिति बदल रही है.
* छोटी फर्में तथा छोटे बैंक – सबूत: छोटे वित्त बैंक
* विशिष्ट पहचानपत्र: सरकार
* व्यापार प्राप्य रियायत प्रणाली (टीआरइडीएस)
-स्टार्टअप्स – उदारीकरण
· संकट में पड़ने पर समान अवसर अब भी उपलब्ध नहीं
-बड़ी फर्मों का विघटन अब भी बहुत कठिन: कामगारों को मोहरे बनाना.
* विघटन की बजाय पुनरुद्धार पर अदालतों का ज्यादा जोर
* प्रमोटर को फायदा
* ऋण के पैसों की उगाही कठिन
* कानून ऋणदाता को ज्यादा शक्ति देते हैं.
-छोटी फर्मों पर कानून अधिक तेजी से लागू किये जाते हैं, कभी-कभी तो ऋणदाता की तरफदारी के साथ.
-परिचालन संहिता तथा तेजी से निबटनेवाली दिवाला (बैंकरप्सी) संहिता सबको समान अवसर देंगी.
* दिवालिया होने की जोखिमतले समझौतावार्ता
· बाजार की अत्यधिक शक्ति तथा दूसरी फर्मों द्वारा हानि पहुंचाने के मुद्दे
-प्रतिस्पर्धा आयोग अपनी क्षमता प्रदर्शित कर रहा है.
-अपील के बावजूद फैसलों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने की जरूरत
· स्पर्धा तथा प्रवेश के मुद्दों को लेकर अब ज्यादा चिंता क्यों है?
-जॉब पर जोर: जॉब समावेशन का सबसे बेहतर रूप है.
-जॉब के सृजन के लिए छोटी फर्मों का विकास जरूरी
ख) संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा
· गतिविधियों को प्रोत्साहन के लिए निजी संपत्ति की सुरक्षा जरूरी: अपना शिकार मैं खाऊंगा.
-भारत में यह मोटे तौर पर सुरक्षित
-जरूरत से ज्यादा सुरक्षित – बुनियादी ढांचे के लिए भूमि
· मर्यादित तथा आशानुरूप कर तथा संपदा शुल्क – सरकार ने यह कर दिया है.
-गैरजरूरी कर-मांग के नियंत्रण हेतु प्रशासनिक कदम
-कर प्रक्रिया के अहम हिस्सों का स्वचालन
· पूर्वप्रभावी कराधान: स्पष्ट सरकारी बयान. मगर, आधार क्षरण तथा मुनाफा स्थानांतरण (बीइपीएस) – विश्वव्यापी मुद्दा, बड़े कॉरपोरेशनों को जिसका जवाब देना है – पारदर्शिता भी कॉरपोरेट पक्ष के लिए उतनी ही जरूरी: वैश्विक समझौते की जरूरत
ग) क्षमताओं तक पहुंच का विस्तारीकरण
· आम आदमी यदि भागीदार न बन सके, तो वह मुक्त उद्यम को अहम नहीं मानता.
· भविष्य के उद्यमों को अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य से संपन्न कर्मियों की ज्यादा से ज्यादा जरूरत
· कुपोषण और गुणवत्ताविहीन प्रारंभिक शिक्षा के असर किसी व्यक्ति पर आजीवन बने रहते हैं.
· सामाजिक कार्यक्रमों का कारगर क्रियान्वयन अत्यंत आवश्यक, ताकि प्रत्येक व्यक्ति में स्पर्धा की क्षमता हो.
· पूंजीवाद 21 की उम्र से आरंभ हो जाता है!
घ) एक बुनियादी सुरक्षा ढांचा
· व्यक्ति की सर्वोत्तम कोशिशों के बावजूद स्पर्धा विनाशकारी हो सकती है.
· एक बुनियादी सुरक्षा ढांचा जरूरी, जो फर्मों पर नहीं, बल्कि व्यक्तियों पर केंद्रित हो:
-बेरोजगारी बीमा, बुनियादी स्वास्थ्य सेवा, वृद्धावस्था पेंशन
· यह सरकार के लिए बेहद महंगा न हो.
-हकों की लागत आंकी जाये और उसे बजट दायित्व प्रोजेक्शन्स में शामिल किया जाये.
-बीमा के लिए तार्किक प्रीमियम लिया जाये.
-यह माना जाये कि एक लोकतांत्रिक समाज में बीमा यदि प्रकट न भी हो, तो यह अप्रकट तो होगा ही.
· सुरक्षा ढांचा लोगों को वे जोखिम उठाने को प्रोत्साहित कर सकता है, जिसके बगैर वे उनसे मुंह चुराएंगे.
निष्कर्षतः
· मुक्त उद्यम को प्रोत्साहित करने की दिशा में भारत ने लंबी दूरी तय कर ली है.
· छोटे दुकानों से लेकर बड़े इंटरनेट स्टार्टअप्स तक उद्यमिता की भावना जीवित है.
· स्नातक होने के बाद युवा किसी स्थापित परामर्शी फर्म अथवा बैंक में जाने के बजाय अब कारोबार शुरू करने अथवा स्टार्टअप्स के लिए काम करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं.
· व्यवसाय करना या अमीर बनना ज्यादा मशहूर करनेवाला होता है.
· मगर माहौल बेहतर बनाने के लिए काफी कुछ और करना जरूरी, ताकि सबको एक मौका मिल सके. सहायता प्रणालियों पर निर्भरता के बजाय, व्यवसाय को इसके लिए जोर लगाने की जरूरत है कि व्यावसायिक माहौल सबके लिए बेहतर बन सके. कुछ व्यावसायिक संगठन इसे ज्यादा से ज्यादा अंजाम दे रहे हैं.
· जैसा पालकीवाला ने कहा, तेजी और सरलता से नहीं, तो एक अरसे बाद ही सही, भारत हमेशा रास्ता ढूंढ़ ही लेता है.
(अनुवाद: विजय नंदन)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें