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तकनीक से तनहाई दूर करने की कोशिश

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नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से जोड़ने में लगे दो स्कूली बच्चे बुढ़ापे का अकेलेपन से बड़ा गहरा नाता है़ उम्र की इस ढलान पर व्यक्ति के लिए कोई काम नहीं होता और शायद इसी वजह से वह उपेक्षित होता है़ ऐसे में उसे अकेलेपन से जूझना ही पड़ता है़ उनके इस अकेलेपन को दूर […]

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नयी पीढ़ी को पुरानी पीढ़ी से जोड़ने में लगे दो स्कूली बच्चे

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बुढ़ापे का अकेलेपन से बड़ा गहरा नाता है़ उम्र की इस ढलान पर व्यक्ति के लिए कोई काम नहीं होता और शायद इसी वजह से वह उपेक्षित होता है़ ऐसे में उसे अकेलेपन से जूझना ही पड़ता है़ उनके इस अकेलेपन को दूर करने की कोशिश की है दिल्ली के पास स्थित गुड़गांव के श्री राम स्कूल में पढ़नेवाले दो छात्रों, सुयेशा दत्ता और विभोर रोहतगी ने, जिन्होंने एक ऐसा स्कूल प्रोजेक्ट शुरू किया है,

जो हमारे वरिष्ठ नागरिकों के चेहरे पर मुस्कान ला रहा है़ यहां यह जानना जरूरी है कि 11वीं कक्षा में अध्ययनरत इन किशोरों ने समाज के एक ऐसे वर्ग का ख्याल रखा है, जिन्हें आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम आमतौर पर नजरअंदाज कर देते हैं. अन्य सहपाठियों की तरह जब सुयेशा और विभोर को स्कूल के लिए एक प्रोजेक्ट करने का टास्क दिया गया था, तब इन दोनों ने मिलकर यह विचार किया कि क्यों न कुछ ऐसा किया जाये, जो एक प्रोजेक्ट से बढ़कर कुछ ऐसा हो, जिससे किसी के जीवन में बदलाव या चेहरे की मुसकान आये़

बस फिर क्या था! अपने स्कूल के कुछ शिक्षकाें से राय लेकर दोनों ने ‘सिल्वर सर्फर प्रोग्राम’ की शुरुआत की़ इस प्रोग्राम का लक्ष्य समाज के उस वर्ग के चेहरे पर मुसकान लाना था, जिन्होंने अपना सारा जोश और ऊर्जा हमारी बेहतरी के लिए खर्च कर दिया, और उम्र की ढलान पर किसी को उनकी परवाह नहीं है़

इन बच्चों ने यह महसूस किया कि आज की तकनीक की रफ्तार में हमारे दादा-दादी, नाना-नानी कहीं पीछे छूटते जा रहे हैं. इन बच्चों का लक्ष्य अपने प्रोजेक्ट के जरिये यह दूरी पाटने का था. और इसी सोच के साथ जन्म हुआ वरिष्ठ नागरिकों के लिए कंप्यूटर साक्षरता प्रोग्राम का, जिसका नाम रखा गया ‘सिल्वर सर्फर प्रोग्राम’. इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें सुयेशा और विभोर जैसे युवा वॉलंटियर्स की मदद ली जा रही है़

इस प्रोजेक्ट के बारे में सुयेशा बताती हैं, मेरा अधिकतर बचपन नाना-नानी के साथ बीता है़ मैं आज भी उनसे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करती हूं. यह प्रोग्राम इन दोनों के लिए मेरी तरफ से एक भेंट है़ बहरहाल, स्कूल की मदद से इस प्रोग्राम की शुरुआत पिछले वर्ष, यानी मई 2015 में हुई़ अब तक लगभग 50 वरिष्ठ नागरिकों को शिक्षित कर चुका यह प्रोग्राम, इस वर्ग की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर डिजाईन किया गया है़ इसके जरिये उन्हें ई-मेल आइडी बनाना, ई-मेल भेजना, फेसबुक और ट्विटर से परिचित कराना, स्मार्टफोन और टैबलेट के एेप्स का प्रयोग करने के अलावा बिल भुगतान और नेट बैंकिंग की भी जानकारी दी जाती है़

सिल्वर सर्फर प्रोग्राम के नाम के पीछे की सोच के बारे में विभोर का कहना है, सिल्वर सर्फर मेरा पसंदीदा सुपर हीरो रहा है और मैंने एक सुपर हीरो को यह कहते सुना था कि जरूरी नहीं कि सारे सुपर हीरो के पास उड़ने के लिए पंख हो़ मेरा मानना है कि हमारे जीवन में हमारे नाना-नानी या दादा-दादी ऐसे ही एक सुपर हीरो हैं, जो हमें सारी तकलीफों से बचाते हैं. इसी सोच के साथ हमने इस प्रोग्राम का नाम सिल्वर सर्फर रखा़ हमारे यहां कंप्यूटर सीखनेवाले दादा-दादी, नाना-नानी लोग इस नाम के पीछे की वजह पूछते हैं, तो मैं यही कहता हूं कि आपको उड़ने के लिए पंख की जरूरत नहीं है़

इस प्रोग्राम की शुरुआत करने और इसे संचालित करने में आयी बाधाओं के बारे में विभोर बताते हैं कि उनके लिए इसका प्रचार करना और लोगों को जागरूक करना एक चुनौती थी़ इससे निबटने के लिए इन लोगों ने कई तरह के पोस्टरों के जरिये प्रचार किया और एक फेसबुक पेज भी बनाया़ धीरे-धीरे इनकी कोशिश रंग लायी और लोग उनकी इस पहल की ओर आकर्षित होकर इससे जुड़ने लगे़ विभाेर आगे बताते हैं, बुजुर्ग लोगों को सिखाने में मुश्किल यह थी कि उनके पास सीखने के लिए बहुत कुछ था लेकिन तकनीक के क्षेत्र में उनका अनुभव बहुत कम था़ इसमें संयम रखकर धीमी गति से उन्हें हर छोटी चीज सिखानी होती थी़

इन बच्चों ने फिलहाल अपनी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए इस प्रोग्राम को थोड़े समय के लिए रोक रखा है़ हालांकि इसे आगे भी जारी रखने की उनकी इच्छा है. वे चाहते हैं कि इस प्रोग्राम को वे उन दादा-दादी, नाना-नानी तक ले कर जायें, जो समाज और परिवार से कट चुके हैं. इनकी कोशिश है कि सिल्वर सर्फर प्रोग्राम का अगला चरण वृद्ध आश्रम में रहनेवालों के बीच शुरू किया जाये, ताकि वे इसका लाभ उठाकर तकनीक के इस महासमुद्र में अपने अकेलेपन को भूल पायें.

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