16.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

दीपावली पर विशेष : भागऽ हो दलिद्दर, दीया नहीं, जलता है जिया

Advertisement

घर की सफाई दीपावली पर और मन की सफाई होली पर अनिल सिंह दीये की लौ को देखिए. अंधेरे के आखिरी छोर तक बढ़ते गये उसके वलय की लहरों को देखिए. देखना चाहेंगे तो आपको दशकों नहीं, सदियों पुराना इतिहास दिख जायेगा. नहीं चाहेंगे तो बस इतना दिखेगा कि पहले घी के दीये जलते थे, […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

घर की सफाई दीपावली पर और मन की सफाई होली पर
अनिल सिंह
दीये की लौ को देखिए. अंधेरे के आखिरी छोर तक बढ़ते गये उसके वलय की लहरों को देखिए. देखना चाहेंगे तो आपको दशकों नहीं, सदियों पुराना इतिहास दिख जायेगा. नहीं चाहेंगे तो बस इतना दिखेगा कि पहले घी के दीये जलते थे, खेतों की मेड़ों और घरों की मुंडेरों पर. दीये फिर तेल के हुए और अब बहुत हुआ तो पामोलिन या सस्ते वनस्पति के दीये जलते हैं. नहीं तो मोमबत्ती के बने-बनाये दीयों की भरमार है.
फिर भी दीपों की लड़ियां कहीं तो टूट गयी लगती हैं. मुल्क का अंधेरा बड़ा गहरा हो गया है. बूढ़ी मां की ढिबरी अक्सर बुझ जाया करती है. घर की लक्ष्मी महीनों इंतजार करते-करते उदासी में डूब जाती है.
भिखारी ठाकुर के उस गीत की तरह कि दिनवां गिनत मोरि घिसलीं अंगुरिया, नैना तकत नैना लोरे से विदेसिया. उधर दूर चमकते-दमकते नगरों-महानगरों की चकाचौंध है. चिट्ठी संदेश की जरूरत नहीं, मोबाइल से बात हो जाती है. अब मनीऑर्डर की जरूरत नहीं, पैसा भी मोबाइल से चला जाता है. बच्चे से थोड़ा जवान हो गये, थोड़ा बहुत कमा लेते हैं, तो उनके पास स्मार्टफोन आ जाता है. चाइनामेड ढाई से तीन हजार में बडी स्क्रीनवाला मोबाइल.गाने सुनिए या वीडियो देखिए. बैटरी मजे में 36-40 घंटे चल जाती है.
जिंदगी बदली भी है, बल्कि बहुत तेजी से बदल रही है. ख्वाहिशें इतनी कि पुराने बंधन टूट गये हैं. भख्खर में पड़े या ओखल में सिर दें, उड़ना है, तो उड़ना है. जहां हैं वहां ठहरे नहीं रह सकते. जाति की पहचान है. समाज की मर्यादा है, देश का गर्व है, लेकिन सपनों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए कोई दुबई, तो कोई कोलंबिया तक जाता है. जिसके पास जितनी लक्ष्मी है, उससे वो आखिरी बूंद तक उजाला हासिल कर लेना चाहता है.
लेकिन क्या करें! लक्ष्मी तो शुरू से चंचला हैं. पहले उन्हें सोने और जमीन-जायदाद में बांध कर रखा जा सकता था, लेकिन जब से 40 साल पहले सोने का पैमाना खत्म हुआ है, तब से लक्ष्मी जेब में रहने के बावजूद उड़न-छू हो जाया करती हैं.
1975 में डॉलर ने पहले खुद को स्वर्ण मानक से मुक्त किया, फिर सारी दुनिया की मुद्राएं डॉलर के इर्द-गिर्द भांगड़ा करने लग गयीं. दुनिया में इधर आठ-दस सालों में बहुत कुछ बदला है. फिर भी डॉलर के मूल देश अमेरिका के पेट में मरोड़ होती है, तो तमाम देश कराहने लगते हैं.
कभी लक्ष्मी का सार माने जानेवाले सोने का उठना-गिरना भी अमेरिकी डॉलर से नाभिनाल-बद्ध हो गया है.अमेरिका की अर्थव्यवस्था और डॉलर मजबूत होता है, तो सोना कमजोर होता है. इसका उल्टा होने पर सोने के भाव बढ़ते हैं. पिछले पांच सालों में सोने का अंतरराष्ट्रीय भाव 22.5 प्रतिशत गिर चुका है. जमीन-जायदाद या रियल एस्टेट के दाम तो बराबर बढ़ रहे हैं, लेकिन लंबे समय तक टिक पायेंगे इसमें शक है. निवेश या कालेधन के बल पर फूल रहे रियल एस्टेट का गुब्बारा कब फट जाये, कहा नहीं जा सकता.
दीपावली को लक्ष्मी का, धन का, अर्थ का पर्व माना जाता है. सवाल उठता है कि इस पर्व के मूल में विराजती लक्ष्मी बढ़ कहां रही हैं? लक्ष्मी वहां बढ़ रही हैं जहां उन्हें किसी सार्थक उद्यम में लगाया जाता है. वही लोग अपनी लक्ष्मी को बढ़ा रहे हैं जो रिस्क लेकर उसे कहीं लगाते हैं.
पहले इस श्रेणी में केवल लक्ष्मी निवास मित्तल या मुकेश अंबानी जैसे लोग आते थे. लेकिन अब नये-नये लड़के स्टार्ट-अप के जरिये चंद सालों में करोड़ों के मालिक बन जा रहे हैं. चाहे वे फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल व बिन्नी बंसल हों या स्नैपडील के कुणाल बंसल. आइटी उद्योग के शीर्ष संगठन नैस्कॉम के अनुसार आज भारत में ऐसे स्टार्ट-अप उद्यमों की संख्या 4200 के पार जा चुकी है और भारत दुनिया में स्टार्ट-अप की संख्या के मामले में तीसरे स्थान पर आ चुका है. और, अब छोटे-छोटे शहरों व कस्बों के ही नहीं, गांवों तक में स्टार्ट-अप के प्रयोग होने लगे हैं.
बाकी लोगों का क्या हाल है? वे यकीनन आकांक्षाओं से भरे हैं. लेकिन जीवन में जोखिम से दूर भागते हैं, तो जहां-तहां नौकरी या ठेला-खोमचा जैसा धंधा पकड़ने में लगे हुए हैं. इनके बीच क्रूर सच यह है कि जिन गांवों में कभी दिवाली के दीए जगमग किया करते थे, वहां निराशा व हताशा का अंधेरा छाया है. खेती-किसानी पर निर्भर लगभग 55 करोड़ हिंदुस्तानियों से लक्ष्मी कहीं दूर चली गयी हैं. इनमें भी उन्हीं पर लक्ष्मी की कृपा बरसती है, जो किसी न किसी रूप में नेतागिरी या ठेकेदारी के जरिए जन-धन की लूट में व्यस्त हैं.
सरकार की तरफ से कहा जा रहा है कि देश में जमीन व श्रम तो है, लेकिन विकास के तीसरे अहम कारक पूंजी या लक्ष्मी की कमी है. इसलिए वो बाहर से पूंजी लाने के सरंजाम में जुटी है. इस हो-हल्ले में किसी को देखने और बताने की फुरसत नहीं कि हमारे बैंकों में लोगों का जमाधन 90,73,330 करोड़ रुपये का है. इसका 10 प्रतिशत भी 9,07,333 करोड़ रुपये बनता है. अगर यह धन निवेश या रिस्क की पूंजी के रूप में उद्योग-धंधों को मिल जाये तो देश को किसी विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआइ) या प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की जरूरत नहीं रह जायेगी.
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 1995 से 2015 के बीच भारत में सालाना एफडीआइ का औसत 108.25 करोड़ डॉलर (लगभग 7040 करोड़ रुपये) रहा है. देश में एफपीआइ या एफडीआइ निवेश जरूर बढ़ रहा है और इस साल जनवरी से नवंबर के पहले हफ्ते तक इक्विटी और सरकारी बांडों में इनका निवेश 78,437 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है. लेकिन घरेलू बचत या बैंकों की जमाराशि का एक प्रतिशत (90,733 करोड़ रुपये) भी इस पर भारी पड़ता है. सवाल उठता है कि विदेशी फंड भारतीय बाजार में रिस्क लेकर अपना धन बढ़ा रहे हैं, लेकिन आम भारतीयों को संतुलित रिस्क लेकर अपनी लक्ष्मी बढ़ाने के लिए तैयार क्यों नहीं किया जा रहा?
सवाल बड़े हैं. लेकिन इनके जवाब में देश में लक्ष्मी के आगम का समाधान छिपा हुआ है. वैसे, हम हिंदुस्तानी बड़ी जिजीविषा व जुगाड़वाले लोग हैं. एक मित्र कहने लगे कि हम तो चाहते हैं कि दीपावली साल में कम से कम चार बार आये. इसी बहाने घर के कोने-अंतरे की सफाई हो जाती है. दीपावली पर भले ही दीवाला निकल रहा हो, लेकिन हमने इसे सफाई का त्योहार बना रखा है. अच्छा है. घर की सफाई दीपावली पर और मन की सफाई होली पर. कुछ ऐसे ही हैं हम हिंदुस्तानी. अनंत संभावनाओं की दहलीज पर खड़े हैं और उनके दोहन की हरसंभव कोशिश भी करते हैं. बस, सिरा मिलने की देर है. फिर तो हम आसमान छू लेते हैं.
अंत में लक्ष्मी के पर्व पर अपनी परंपरा को भी याद कर लेना चाहिए. हमारे शास्त्रों में माना गया है कि जीवन में सुख-शांति के लिए धन यानी लक्ष्मी की भारी जरूरत है. लेकिन ध्यान रहे कि हम धन को मां का दूध मान कर ही उपयोग करें. जिस तरह मां का दूध हम जीवन धारण करने और भूख मिटाने के लिए करते हैं, उसी तरह धन का उपयोग होना चाहिए. इसी विचार के साथ श्रद्धालु लोग मां लक्ष्मी का आवाहन मंत्र के इस छंद से कर सकते हैं:
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे, महाशक्ति महोदरे. महापाप हरे देवि, महालक्ष्मीः नमोस्तुते.. ॐ श्री लक्ष्म्यै नमः..
( लेखक हिंदी की आर्थिक व वित्तीय मामलों की वेबसाइट अर्थकाम.कॉम (arthkaam.com) के संस्थापक हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें