20.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

मैन को सुपरमैन बनाता साइबोर्ग

Advertisement

साइबोर्ग टेक्नोलॉजी नि:शक्त लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. इसकी मदद से विकलांग हो चुके लोग भी कृत्रिम अंगों को अपने दिमाग से कंट्रोल करने में सक्षम हो रहे हैं. हालांकि भविष्य में सामान्य लोग भी अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग कर सकेंगे. इसके प्रयोग से साधारण व्यक्ति […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

साइबोर्ग टेक्नोलॉजी नि:शक्त लोगों के लिए वरदान साबित हो रही है. इसकी मदद से विकलांग हो चुके लोग भी कृत्रिम अंगों को अपने दिमाग से कंट्रोल करने में सक्षम हो रहे हैं. हालांकि भविष्य में सामान्य लोग भी अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इस तकनीक का प्रयोग कर सकेंगे. इसके प्रयोग से साधारण व्यक्ति भी कई असाधारण काम करने में सक्षम हो जायेंगे.
साइबोर्ग‘साइबरनेटिक ऑर्गेनिज्म’ का शॉर्ट फॉर्म है. सामान्य शब्दों में इसे मशीनी मानव भी कह सकते हैं, जो ऑर्गेनिक (सामान्य शरीरिक अंग) और बायोमेकेट्रॉनिक्स (मशीनी अंग) अंगों से मिल कर बना होता है.
साइबोर्ग शब्द का प्रयोग सबसे पहले ‘मैनफ्रे ड क्लाइन’ और ‘नाथन एस क्लाइन’ ने किया था. मैनफ्रेड वैज्ञानिक हैं, जो दिमाग और कंप्यूटर के बीच संबंध बनाने का प्रयास कर रहे हैं. नाथन मेडिसिन के विशेषज्ञ हैं. इस विषय पर 1965 में डीएस हेलेसी की एक किताब भी आयी थी-‘साइबोर्ग : इवॉल्यूशन ऑफ सुपरमैन’.
साइबोर्ग की हकीकत भी कुछ ऐसी ही है. मानव कोई भी काम मशीन की मदद से बेहतर कर पाता है. तब वैज्ञानिकों ने कल्पना की कि शरीर में यदि मशीनों को फिट कर दिया जाये, तो साधारण इनसान भी सुपरमैन की तरह ताकतवर हो जायेगा.
फिल्मों में भी दिखा है साइबोर्ग
हॉलीवुड के साइंस फिक्शन फिल्मों को रोमांचक बनाने के लिए हीरो को ‘साइबोर्ग’ के रूप में पेश किया जाता रहा है. इनमें से कुछ प्रमुख फिल्में और उनके पात्र हैं- स्टार वार्स का डार्थ वेदर, डॉक्टर हू का साइबर मैन, टर्मिनेटर, स्पाइडरमैन का डॉ ऑक्टोपस, जो काफी चर्चित रहे हैं. टर्मिनेटर फिल्म ने तो धूम मचा दी थी. इसमें टर्मिनेटर की भूमिका अर्नाल्ड श्वाजर्नेगर ने निभायी थी.
इन सभी फिल्मों में साइबोर्ग को साधारण मनुष्य से कहीं अधिक ताकतवर दिखाया गया है. स्पाइडर मैन 2 में डॉक्टर ऑक्टोपस ने चार मशीनी हाथ बना कर उसे अपने दिमाग से जोड़ लिया था. इन हाथों की मदद से वह बहुत ताकतवर हो गया था. अब असल जिंदगी में भी ऐसे प्रयोग किये जा रहे हैं.
कुछ नये प्रयोग
अभी कृत्रिम टिश्यू बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं. इनके लिए पौधे की या फंगल कोशिकाओं और कार्बन नैनोटय़ूब की मदद ली जा रही है. इन कृत्रिम टिश्यू के प्रयोग से नये अंग बनाये जा सकेंगे, जिनका प्रयोग मशीनी अंगों के निर्माण में भी किया जा सकेगा.
ये अंग दिमाग और कंप्यूटर दोनों की भाषा समझ सकेंगे. इस टिश्यू पर वैज्ञानिक डी गियाकोमो और मेरेस्का कार्य कर रहे हैं. उन्होंने एमआरएस 2013 के स्प्रिंग कॉन्फ्रेंस में अपने किये गये कार्यो को प्रदर्शित भी किया.
इनकी मदद से साइबोर्ग के अंग बहुत ही सस्ते, हल्के और मनचाहे गुणों से युक्त तैयार किये जा सकेंगे. हाल ही में वैज्ञानिकों ने वियरेबल टेक्‍नॉलॉजी में काफी सफलता हासिल की है. ये छोटे-छोटे वियरेबल डिवाइस घड़ी या कपड़ों के रूप में आ रहे हैं, जो स्वास्थ्य पर नजर रखते हैं. शरीर में कोई गड़बड़ी होते ही इसकी सूचना ये मोबाइल स्क्रीन पर देते हैं.
अब वैज्ञानिक इन्हें और छोटा बना कर त्वचा में ही फिट करने का प्रयास कर रहे हैं, जो अत्याधुनिक तकनीक है. इनके खोने का भी डर नहीं रहेगा. इसके अलावा टैटू के जैसे डिवाइस भी बनाये जा रहे हैं.
क्या हैं इनके खतरे
चिप जैसे छोटे डिवाइस हमारे वास्थ्य के बारे में जानकारी देते हैं और त्वचा के भीतर इंप्लांट किये जा सकते हैं. ये इनसान को साइबोर्ग जरूर बना देंगे, लेकिन इनके कुछ खतरे भी हैं. एक बड़ा खतरा यह है कि इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस कभी भी खराब हो सकते हैं. खराब होने के बाद उसे हटाने के लिए दोबारा सजर्री करनी होगी. दूसरा खतरा इससे संक्रमण होने का भी है.
इसके अलावा आजकल कई कंपनियां फोन को ट्रैक भी करती हैं. यदि शरीर में लगे हुए डिवाइस को ट्रैक किया जाता है, तो लोगों की प्राइवेसी खतरे में पड़ जायेगी. हालांकि वैज्ञानिक संक्रमण के खतरे को बड़ा खतरा नहीं मानते हैं, क्योंकि आज भी पेसमेकर, स्टेंट्स और रिप्लेसमेंट ज्वाइंट को सफलता पूर्वक प्रत्यारोपित किया जा रहा है. ऐसे मरीज अपना सामान्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
विकलांगों के लिए वरदान
वैज्ञानिक ऐसी मशीनें भी बना रहे हैं, जो बुजुर्गो या शारीरिक रूप से अशक्त लोगों को चलने या दैनिक कार्यो में मदद करेंगे. इन्हें एक्जोस्केल्टन कहते हैं. वैज्ञानिक ऐसे रोबोटिक हाथ या पैर बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो दिमाग से कंट्रोल हो सकें. हाल ही में अमेरिका में एक लकवाग्रस्त महिला ने सिर्फ अपनी दिमागी क्षमता से रोबोटिक हाथ को कंट्रोल किया. उसने न सिर्फ खुद से चॉकलेट खाया, बल्कि फ्लाइट सिम्यूलेटर भी चलाया. इस सिम्यूलेटर से हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग दी जाती है.
वैज्ञानिकों ने महिला के मस्तिष्क में इलेक्ट्रॉड लगाया था, जो मस्तिष्क के सिग्नलों को ग्रहण कंप्यूटर में भेज रहे थे. कंप्यूटर इन सिग्नलों को मशीनी सिगAल में बदल रहा था, जिससे वे रोबोटिक हाथ काम कर रहे थे. इस मशीन की मदद से न सिर्फ लकवाग्रस्त, बल्कि विकलांग भी अपने हाथ-पैर स्वयं संचालित कर सकेंगे.
रीयल लाइफ के कुछ साइबोर्ग
विज्ञान फिल्मों की तरह रीयल लाइफ में भी कई ऐसे लोग हैं, जिन्होंने मशीन को अपने शरीर का हिस्सा बनाया है.नील हार्बिसन : नील कलर ब्लाइंडनेस के शिकार थे. उन्हें सिर्फ ब्लैक एंड व्हाइट ही नजर आता था. उनके शरीर में ऐसा डिवाइस लगा है, जो रंग को संगीत के माध्यम से सुनाता है. यह एक इलेक्ट्रॉनिक आइ है. इस प्रकार उन्हें अब इस डिवाइस की आदत हो गयी है और वे संगीत के माध्यम से आसानी से रंगों को पहचान जाते हैं.
केविन वारविक : यह यूके में साइबरनेटिक्स के प्रोफेसर हैं. वे प्रोजेक्ट साइबोर्ग पर काम कर रहे हैं. उन्होंने 1998 में ही अपने हाथ में एक माइक्रोचिप इम्प्लांट कर लिया था. इसकी मदद से वे कंप्यूटर से जुड़ी घर की चीजों को आसानी से बिना छुए ही प्रयोग कर पा रहे हैं.
जेस सुल्लीवान : इन्होंने रोबोटिक हाथों को शरीर से जोड़ लिया है. ये रोबोटिक हाथ किसी कंप्यूटर से नहीं, बल्कि उनके नर्वस सिस्टम से जुड़े हैं. वे इन हाथों को दिमाग से कंट्रोल करते हैं. वे इन हाथों के स्पर्श से ठंडा या गरम को भी महसूस कर सकते हैं.
जेन्स न्यूमान : एक एक्सीडेंट में इन्होंने अपनी दोनों आंखें खो दी थीं. 2002 में पहली बार उनकी आंखों में आर्टिफिसियल विजन सिस्टम लगाया गया. यह डिवाइस ध्वनि या स्पर्श द्वारा काम नहीं करता, बल्कि उनकी आंखों के विजुअल कॉर्टेक्स से जुड़ा हुआ है. इसकी मदद से वे सामने से आनेवाले प्रकाश को रेखाओं के रूप में देख सकते हैं.
जेरी जलावा : जेरी जलावा ने यह सिद्ध किया है कि साइबोर्ग होने के लिए लिए रोबोटिक इंजीनियर होना ही जरूरी नहीं है. एक सामान्य व्यक्ति भी यदि दिमाग लगाये, तो साइबोर्ग बन सकता है. एक एक्सीडेंट में जेरी जलावा की एक उंगली कट गयी थी.
यह काफी अजीब लग रही थी. इस उंगली की जगह पर उन्होंने 2 जीबी के पेन ड्राइव को एंबेड करा लिया. यह पेन ड्राइव मैट्रिक्स फिल्म की तरह दिमाग में डाटा ट्रांसफर नहीं करती, बल्कि यह एक सामान्य पेन ड्राइव है. लेकिन फिर भी कटी हुई उंगली का यह एक बेहतर उपयोग है.
आलेख : अजय कुमार

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें