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मेरी प्यारी रांची तब और अब : कार्य क्षेत्र बदला पर जुड़ाव बना रहा

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स्वामी शशांकानंद साढ़े तीन वर्षो के बाद सन 1974 में जब मेरा सेवा कार्य क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश हो गया तो उनकी भीनी विदाई तथा संपर्क बनाये रखना मुङो प्रभु का आशीर्वाद ही लगता रहा. 1980 ई से 1997 तक पश्चिम बंगाल के गांवों में विकास कार्यो में सेवारत रहते हुए भी मोरहाबादी आश्रम के तत्कालीन […]

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स्वामी शशांकानंद
साढ़े तीन वर्षो के बाद सन 1974 में जब मेरा सेवा कार्य क्षेत्र अरुणाचल प्रदेश हो गया तो उनकी भीनी विदाई तथा संपर्क बनाये रखना मुङो प्रभु का आशीर्वाद ही लगता रहा. 1980 ई से 1997 तक पश्चिम बंगाल के गांवों में विकास कार्यो में सेवारत रहते हुए भी मोरहाबादी आश्रम के तत्कालीन सचिव महाराज जो भी आये मुङो बुलाते रहे, कभी सलाह के लिए तो कभी उत्सवों में वक्ता के रूप में.
उसी रांची के प्रेम ने पुन: सेवा का अवसर दिया और सन 1997 ई में आश्रम के सचिव के पद पर आया तो ऐसा लगा कि घर लौट आया. इस अवधि में दिव्यायन अब 28 वर्ष का युवक था. अब दिव्यायन में प्रशिक्षण के लिए युवकों को घर से पकड़ पकड़ कर नहीं लाना पड़ता था. प्राक-प्रशिक्षणार्थीगण अपने-अपने गांवों से युवकों को भेज रहे थे.
प्रशिक्षण में कृषि, बागवानी, मधु-पालन, मुरगी पालन एवं गो-पालन के अतिरिक्त विभिन्न कारीगरी एवं व्यावसायिक विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने वालों की संख्या बढ़ी. प्रशिक्षण के बाद कुछ नौकरी की तलाश तो कोई अपने खेत में काम करने लगा. कुछ युवकों ने अपनी दुकान खोल ली. परंतु ऐसा करने के लिए वे मिशन की आर्थिक सहायता या सरकारी योजनाओं की सहायता की ओर टकटकीलगाये रहते.
पुराने प्रशिक्षणार्थियों ने स्वागत किया और 23 वर्षो में विवेकानंद सेवा संघ ने समय के साथ-साथ विकास का कार्य आगे बढ़ाया. विकास की इति नहीं होती. अब 70 गांवों में काम चल रहा था, जिसमें 55 विवेकानंद सेवा संघ चल रहे थे. गांव भी बदले, रहन सहन बदला, खाना पीना बदला, पोशाक बदली, शिक्षा के लिए विद्यालय खुले.
गांवों में शहरी पोशाक, पक्के घर भी बनने ले और दुकानों की भीड़ भी बढ़ी. साक्षरों की संख्या बढ़ी, शिक्षितों की संख्या बढ़ी, विद्यालय जानेवालों की संख्या बढ़ी और लोग जागरूक हुए. कृषि मेले लगने लगे. विवेकानंद सेवा संघ की मासिक बैठक होने लगी जिसमें प्रतिनिधि गण पूरे महीने की प्रगति बताते और अगले महीने की योजना तैयार करते. 885 कुएं, छह तालाब और 28 लघु उद्वाह सिंचाई के साधन ने किसानों को उन्नति की राह दिखायी.
स्वामी विवेकानंद जी के विचारों की दृष्टि से तथा उन विचारों पर आधारित 26 वर्षो की ग्रामीण विकास की निजी अनुभूति ने मुङो उस मोड़ पर खड़ा कर दिया जहां मुङो यह सोचने के लिए विवश होना पड़ा कि विकास कहां तक हुआ है और कितना करने की संभावनाएं हैं. उद्देश्य था हमारे गांवों में समृद्धि और चरित्र गठन करके वर्तमान दरिद्रता और बेरोजगारी की समस्या से मुक्त कराना.
नौकरी के लिए दर दर भटकने वाली शिक्षा को रोजगार उन्मुखी करके स्वनिर्भर बनाना. गांवों में अच्छे विद्यालय और चिकित्सा की व्यवस्था, यातायात के साधन और गांव के लोग स्वयं का विकास स्वयं करने में सक्षम हों. पारस्परिक प्रेम, सहानुभूति और सांगठनिक प्रयास का वातावरण बनाने का. भावों से भरी स्थानीय संस्कृति, नृत्य, गीतों से उभारने का.
अस्वामी विवेकानंद कहते हैं, ‘‘यदि पृथ्वी की सारी धन राशि भारत के एक छोटे से गांव में भी उड़ेल दी जाये तो भी उसकी उन्नति नहीं हो सकती जब तक कि वे अपने पांव पर खड़ा होना न सीखें, अपनी चिंता अपने आप न करना सीखें.’’ अत: स्वावलंबी बनाना प्राथमिकता नजर आयी. (जारी)
(स्वामी शशांकानंद लगभग साढ़े तीन वर्ष 1971 से 1974 तक रामकृष्ण मिशन आश्रम मोरहाबादी में कार्यरत रहे और साढ़े 17 वर्ष 1997 से 2014 सितंबर तक आश्रम के सचिव के पद पर रहे. अब सर्व पदों एवं दायित्वों से मुक्त पठन, लेखन एवं प्रवचनादि हेतु भ्रमण करते हुए इस समय मुख्यत: देहरादून आश्रम में रह रहे हैं.)

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