19.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 09:43 pm
19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

शिक्षा, अभिभावक और सरकार

Advertisement

जस्टिस विक्रमादित्य निजी स्कूलों के विरुद्घ असंतोष व्यक्त करते अभिभावक मंच ने झारखंड बंद किया और बहुत-सी राजनीतिक पार्टियां एवं अन्य एसोसिएशन ने उनकी हौसला अफजाई की. कुछ निजी स्कूलों ने बंदी के मद्देनजर स्कूल बंद कर दिये और कुछ ने अभिभावकों को फोन पर सूचित किया कि जब तक डीएम का आदेश नहीं होता, […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

जस्टिस विक्रमादित्य
निजी स्कूलों के विरुद्घ असंतोष व्यक्त करते अभिभावक मंच ने झारखंड बंद किया और बहुत-सी राजनीतिक पार्टियां एवं अन्य एसोसिएशन ने उनकी हौसला अफजाई की. कुछ निजी स्कूलों ने बंदी के मद्देनजर स्कूल बंद कर दिये और कुछ ने अभिभावकों को फोन पर सूचित किया कि जब तक डीएम का आदेश नहीं होता, वे स्कूल बंद नहीं करेंगे. कुछ ने सब जानकारी रखते हुए भी न स्कूल बंद किये, न ही बस भेजे और बच्चों को परेशानी में डाल दिया, मानो उनके हर कार्य डीएम के आदेश से ही होते हैं.
शिक्षण शुल्क बढ़ाते समय उन्होंने कभी भी डीएम के आदेश की प्रतीक्षा की हो, ऐसी सूचना अखबारों में नहीं आयी है. पिछले कुछ दिनों में मेरी बातचीत नामी-गिरामी निजी स्कूलों के छात्रों से खुल कर हुई और मुङो लगा कि उनके मन में अपने शिक्षकों के प्रति आदर की कोई भावना है ही नहीं, जो एक छात्र और शिक्षक के बीच बुनियादी रूप से होनी चाहिए.
कुछ छात्रों ने कहा-हमारी कक्षाएं चार मंजिला पर है, एक मरियल पंखा हिलता रहता है और हम बार-बार नीचे उतर कर अपने झुलसते मुंह को पानी से धोते हैं. प्रिंसिपल साहब को हमलोगों से क्या मतलब, वे एसी कमरे में बैठे रहते हैं. मतलब मोटी फी लेने के बाद भी इन स्कूलों में मौलिक सुविधाएं भी छात्रों को नहीं दी जा रही है. शिक्षकों के वेतन भी लिये गये शुल्क की तुलना में बहुत कम होते हैं. एक छात्र ने कहा-अगर हमारे स्कूल का रिजल्ट बहुत बढ़िया होता है, तो इसमें स्कूल का कोई कमाल थोड़े ही है, स्कूल शुरू में ही तेज बच्चों का ही एडमिशन लेता है. ऐसे बच्चे आगे भी अच्छा करेंगे ही.
फिर भी अभिभावक यह मान कर चलते हैं कि इन स्कूलों में गधों को भी घोड़ा बना दिया जाता है. जरा उनकी सोचिए जिनके घरों में शिक्षा का माहौल नहीं है, पूरा का पूरा परिवार अशिक्षित है, वैसे घरों के लड़कों को अपने यहां एडमिशन लेकर वे उन्हें तराश देते, तो मैं उन स्कूलों का लोहा मान लेता. यही कारण है कि शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत वे एडमिशन नहीं ले रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी पोल खुलने का डर है. अभिभावक भी नहीं चाहते कि जहां उनका लड़का पढ़े, वहीं भुरहुआ का भी लड़का पढ़े, ऐसे में उनके लड़के का क्या होगा?
सच तो यह है कि इन स्कूलों में दाखिला बच्चों के हित से ज्यादा अभिभावकों की ऊंची नाक का प्रश्न हो गया है और नाक ऊंची रखने की कीमत तो चुकानी ही पड़ती है. ऐसे में अभिभावकों की हड़ताल बेमानी है. इन स्कूलों ने ओहदेदार लोगों की बीबीओं को अपने यहां नौकरी और उनके कमतर बच्चों को दाखिला लेकर सरकार को अपनी मुट्ठी में कर रखा है.
ऐसे में सामान्य अभिभावक यदि यह समझते हैं कि उनकी हड़ताल का कोई असर होगा, तो यह उनकी नासमझी है. अभिभावकों की हड़ताल का मेरी समझ में कोई आधार नहीं है. कुछ स्कूल के प्रिंसपलों ने ठीक ही कहा है कि वे उन्हें बुलाने तो नहीं गये. सिनेमाघरों के टिकटों, गहने के दुकानदारों, खाद्य सामग्री के विक्रेताओं के विरुद्घ कितने लोगों ने धरना-प्रदर्शन किया है कि दाम क्यों बढ़ा रहे हो. वहां व्यापार है, आज शिक्षा भी एक व्यापार है और अभिभावक वहां भी एक खरीदार ही हैं, फिर यह रवैया क्यों?
हमारी पीढ़ी के अधिकांश लोगों ने गांव के स्कूलों में ही शिक्षा पायी है. हमारे जमाने के शिक्षकों ने जो शिक्षा दी, वह आज भी हमारे जेहन में ताजी है. शिक्षकों के प्रति हमारा आदर बरकरार है. हमारे जमाने में 99 प्रतिशत की होड़ नहीं थी. लड़का अच्छा कर रहा है यही बहुत था. शिक्षक को समाज आदर देता था, तो स्कूलों के शिक्षक भी विद्यार्थियों के प्रति, कुछ अपवादों को छोड़, समर्पित होते थे. आज सरकारी स्कूलों के शिक्षकों की जो दशा सरकार ने कर रखी है, वह सिहरा देनेवाली है.
सरकार ने सरकारी स्कूलों और उसके शिक्षकों को बरबाद कर दिया है. अत: आज जो सामने है, वह उसी का प्रतिफल है. सर्व शिक्षा अभियान के तहत जबरन धकिया कर बच्चों को स्कूल भेजने से कुछ होनेवाला नहीं है. बस पांच साल पूरा धन, उन ढहते स्कूलों पर, वहां शिक्षा का माहौल बनाने में खर्च कीजिए और फिर देखिए, क्या होता है? अभिभावक भी तब अपनी मानसिकता बदलेंगे.
(लेखक झारखंड हाइकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें