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गांवों में अब सूरज की रोशनी से दूर होगा रात का अंधेरा

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सूर्य के आज से उत्तरायण होने के मौके पर देशभर में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है. सूर्य की हमारे जीवन में कितनी महत्ता है इससे आप भली-भांति परिचित हैं. कुछ दशक पूर्व वैज्ञानिकों ने सूर्य की किरणों से बिजली बनाने में कामयाबी पायी, जो बड़ी संख्या में घरों का अंधेरा दूर कर […]

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सूर्य के आज से उत्तरायण होने के मौके पर देशभर में मकर संक्रांति का पर्व मनाया जा रहा है. सूर्य की हमारे जीवन में कितनी महत्ता है इससे आप भली-भांति परिचित हैं. कुछ दशक पूर्व वैज्ञानिकों ने सूर्य की किरणों से बिजली बनाने में कामयाबी पायी, जो बड़ी संख्या में घरों का अंधेरा दूर कर रही है. क्या है सौर ऊर्जा की तकनीक, देश-दुनिया में क्या हैं बिजली के हालात और कैसा है सौर ऊर्जा का भविष्य, बता रहा है आज का नॉलेज..
दिल्ली : मानव सभ्यता के शुरुआती दौर से ही इंसान सूर्य की ऊर्जा को अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल में ला रहा है. हालांकि, इस ऊर्जा को रूपांतरित करने और उसे संचित करने की कामयाबी अब जाकर मिली है. इस ऊर्जा को इस्तेमाल में लाने के लिहाज से खास यह है कि इसे हासिल करने लिए किसी तरह के शुल्क का भुगतान नहीं करना होता है.
इतना ही नहीं, सूर्य की रोशनी से मिलनेवाली ऊर्जा कितनी तादाद में हमें मुहैया हो सकती है, अब तक हम उसका पूरी तरह से आकलन भी नहीं कर पाये हैं. मौजूदा प्रचलन में आये शब्द नवीकरणीय ऊर्जा का यह सबसे अच्छा स्नेत है, लेकिन बिजली बनाने के लिए उसका इस्तेमाल हाल ही में (पिछले कुछ दशकों में) शुरू हुआ है.
भले ही सूर्य पृथ्वी से 15 करोड़ किलोमीटर दूर हो, लेकिन है बहुत शक्तिशाली. उसकी ऊर्जा के बेहद न्यून हिस्से से हमारी तमाम ऊर्जा जरूरतें पूरी हो सकती हैं. देश के ग्रामीण इलाकों में बिजली आपूर्ति मुहैया कराने की दिशा में यह तकनीक बेहद कारगर साबित हो सकती है.
खबरों के मुताबिक, मौजूदा केंद्र सरकार ने हरित ऊर्जा स्नेतों को विकसित करने के मकसद से पांच बिलियन डॉलर के कोष की स्थापना का निर्णय लिया है. इस कार्ययोजना के तहत ऊर्जा सुरक्षा का ब्लूपिंट्र तैयार किया गया है. इसके लिए पूर्व में निर्धारित मकसद को बढ़ाते हुए वर्ष 2022 तक एक लाख मेगावॉट सोलर ऊर्जा की क्षमता को कायम करने का लक्ष्य रखा गया है. इसके लिए संबंधित अन्य संगठनों, निगमों, संस्थाओं आदि से सहयोग लिया जायेगा.
मौजूदा हालात
पर्याप्त संसाधनों की कमी की वजह से देश के दूरदराज, खासकर ग्रामीण इलाकों तक बिजली पहुंचाना अब भी सपना बना हुआ है. ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक इलेक्ट्रिक ग्रिड से बिजली पहुंचाने में अनेक प्रकार की बाधाएं देखी जा रही हैं. उत्पादन स्थल से लेकर उपभोक्ता तक बिजली के पहुंचने के दौरान काफी तादाद में उसका क्षय हो जाता है, जिसे ‘लाइन लॉस’ कहा जाता है. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में बिजली मुहैया कराने के लिए सोलर एनर्जी को मुफीद माना जा रहा है, क्योंकि इसमें ग्रिड बनाने और वहां से गांव-गांव बिजली भेजने का झंझट नहीं है. इस संदर्भ में देश के उत्तरी और पूर्वी हिस्से में हजारों गांव आपको ऐसे मिल जायेंगे, जहां सड़क तो पहुंच चुकी है, लेकिन बिजली पहुंचाना अब भी बड़ी चुनौती है.
योजना आयोग के आंकड़ों (वर्ष 2013) के मुताबिक, करीब 40 करोड़ लोग आज भी ऐसे हैं, जिनके पास बिजली नहीं पहुंच पायी है. जानकारों का कहना है कि इस परिस्थिति से निपटने का उपाय है कि ग्रामीण इलाकों में विद्युतीकरण के लिए सौर ऊर्जा का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
नेशनल सोलर मिशन
भारत में सोलर पावर मिशन को बढ़ावा देने के मकसद से तत्कालीन यूपीए सरकार ने वर्ष 2011 में जवाहरलाल नेहरू नेशनल सोलर मिशन लॉन्च किया था. इस मिशन के तहत वर्ष 2022 तक देश में 20,000 मेगावॉट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया था. मौजूदा केंद्र सरकार ने इस लक्ष्य को और बढ़ाते हुए एक लाख मेगावॉट कर दिया है.
इस बढ़े लक्ष्य को हासिल करने के बाद देश के सभी गांवों और सभी घरों को बिजली मुहैया करायी जा सकेगी. इस कार्यक्रम के तहत देश के दस राज्यों- मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, तेलंगाना, कर्नाटक, मेघालय, जम्मू कश्मीर और पंजाब में आरंभिक तौर पर दस बड़े सोलर पार्क/अल्ट्रा मेगा सोलर पावर प्रोजेक्ट्स लगाने की प्रक्रिया जारी है.
बड़े पैमाने पर धन की जरूरत
कोई भी उत्पादन उसके प्रारंभिक चरण में महंगा ही पड़ता है, लेकिन समय बीतने के साथ वह सस्ता हो जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि किसी भी पदार्थ की मात्र यकीनन उसकी गुणवत्ता में बदल जाती है.
‘रेडियो रूस’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में कई निजी कंपनियां सरकारी एजेंसियों के समर्थन से ठोस परियोजनाएं बना रही हैं. उदाहरण के लिए संयुक्त अरब अमीरात में एक ‘भविष्य के शहर’ का निर्माण किया जा रहा है. वहां बिजली का उत्पादन ‘हरित तकनीकों’ की सहायता से किया जायेगा. अफ्रीका महादेश के सहारा इलाके में बड़े पैमाने की डेजर्टेक परियोजना पर काम जारी है.
विशेषज्ञों की राय यह है कि अर्थव्यवस्था ही सौर ऊर्जा के भविष्य को निर्धारित करेगी. अगर सौर ऊर्जा की लागत कम करने में सफलता मिलेगी, तो पूरी दुनिया में सौर ऊर्जा-बिजलीघरों का निर्माण होने लगेगा. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यदि उपभोक्ता स्वच्छ ऊर्जा के लिए पैसा नहीं दे सकेंगे, तो मानव-जाति आगे भी तेल, प्राकृतिक गैस और लकड़ी का उपयोग तब तक करती रहेगी, जब तक कि हमारी पृथ्वी इन संसाधनों से पूरी तरह से वंचित नहीं हो जायेगी या फिर जब तक वैज्ञानिक किसी बेहद सस्ते तकनीक की खोज नहीं कर लेंगे.
बिजली का सबसे सस्ता विकल्प बनेगी सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा से बिजली बनाने में हम भले ही चीन से 10 साल पीछे हों, लेकिन हमारे देश में मौजूद संसाधनों से हम उस मुकाम तक पहुंच सकते हैं. बिजली बनाने के जितने भी स्नेत हैं, उनमें सौर ऊर्जा संयंत्र को सबसे कम समय में स्थापित करते हुए उत्पादन शुरू किया जा सकता है.
न्यूक्लियर या थर्मल पावर प्लांट लगाने में करीब 10 वर्षो का समय लग जाता है, जबकि सोलर पावर प्रोजेक्ट महज एक से दो साल के भीतर तैयार हो जाता है. सनएडीशन (अमेरिका स्थित ग्लोबल सोलर एनर्जी सर्विस फर्म, जो सोलर फोटोवॉल्टिक प्रोजेक्ट्स में सक्रिय है) के एशिया पेसिफिक के प्रेसीडेंट और भारत में कंपनी के संचालन के मुखिया पशुपति गोपालन के हवाले से ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि फिलहाल सोलर उद्योग का आरंभिक काल है और भारत में इसके लिए स्वर्णिम अवसर मौजूद हैं.
भारत के लिए इस क्षेत्र में बेहतरीन मौका इसलिए भी है, क्योंकि दुनियाभर में पैदा की जानेवाली सोलर एनर्जी का 90 फीसदी से ज्यादा हिस्सा क्रिस्टलाइन सिलिकॉन की मदद से पैदा की जाती है और हजारों कंपनियां क्रिस्टलाइन सिलिकॉन का उत्पादन करती हैं. इतना ही नहीं, इसमें इस्तेमाल की जानेवाली ज्यादातर चीजों का उत्पादन देश में घरेलू स्तर पर ही होता है.
पॉलिसिकॉन कच्चे तेल के शोधन के दौरान पैदा होनेवाला एक उत्पाद है, जिसका देश में ही बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. पशुपति गोपालन के हवाले से इस इस रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनियाभर में करीब ढाई लाख मिट्रिक टन पॉलिसिलिकॉन का उत्पादन होता है. उम्मीद है कि वर्ष 2020 तक इसका उत्पादन दोगुना तक हो सकता है.
भंडारण और वितरण की समस्या
इसके उत्पादन के बाद सबसे बड़ी समस्या इसके भंडारण और वितरण की है. वितरण प्रक्रिया को मुख्य रूप से पांच चरणों या सेगमेंट में बांटा जा सकता है. इस मामले में कॉमर्शियल रूफ -टॉप अग्रणी है और तमिलनाडु व महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इसे काफी प्राथमिकता दी गयी है और कुछ निर्धारित लक्ष्य हासिल किये गये हैं.
इसे प्रोत्साहन देने में ‘सोलर एनर्जी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया’ का बड़ा योगदान है. दूसरा है औद्योगिक हिस्सा. इसमें अनेक चुनौतियां हैं, इसलिए इसे बाजारोन्मुखी बनाने की जरूरत है. तीसरा सेगमेंट है आवासीय हिस्सा, जो सबसे आकर्षक है. आकर्षक इसलिए क्योंकि जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इसी हिस्से के कारण यह आकर्षक बना है. लेकिन आवासीय बिजली उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने की चुनौती यह है कि कुछ हद तक सब्सिडी दिये जाने के बावजूद लोगों की इसके प्रति दिलचस्पी कम ही दिखाई देती है. विशेषज्ञों का मानना है कि बैट्री या इनवर्टर के साथ इस ऑफ -ग्रिड बिजली को जोड़ने से इसे लोकप्रिय बनाया जा सकेगा.
चौथा सेगमेंट है सिंचाई के पंपिंग सेट का. ग्रामीण इलाकों में सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल व्यापक तौर पर किया जा सकता है. सरकार यदि इस मामले में दिलचस्पी दिखाये, तो तीन करोड़ से ज्यादा सिंचाई पंपिंग सेटों को सोलर पावर से चलाया जा सकता है.
पांच किलोवॉट या पांच हॉर्स पावर के तीन करोड़ पंपों को सोलर ऊर्जा से 150 गीगावॉट बिजली पैदा करते हुए चलाया जा सकता है. पांचवां सेगमेंट है सोलर माइक्रो-ग्रिड्स का, जो संचरण की प्रक्रिया को पूरी तरह से प्रभावित करेगा. एक सटीक पॉलिसी और फ्रेमवर्क के दायरे में इन पांचों सेगमेंट को अपनाते हुए इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जा सकता है.
अग्रणी भूमिका में होंगी सौर ऊर्जा तकनीकें
वर्ष 2020 तक सौर ऊर्जा तकनीकें वैश्विक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभायेंगी. सौर ऊर्जा तकनीक जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, बिजनेस व उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों के लिए मददगार साबित होगी.
नये आविष्कारों की मदद से सौर ऊर्जा की मौजूदा तकनीकों में आनेवाली लागत में कमी आयेगी, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक इस तकनीक की पहुंच होगी. सोलर माडय़ूल निर्माताओं द्वारा कच्चे माल के रूप में पोलीसिलिकॉन का प्रयोग किया जाता है, जो सोलर सप्लाई चेन में सबसे महंगा पड़ता है.
आनेवाले वर्षो में पॉलीसिलिकॉन का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन होने से सोलर इंडस्ट्री में नया बदलाव आ सकता है. विशेषज्ञों ने उम्मीद जतायी है कि सस्ता और सुलभ होने पर दुनियाभर में ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सोलर इंडस्ट्री महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी.
सोलर फोटोवॉल्टिक
सोलर फोटोवॉल्टिक यानी एसपीवी एक ऐसी तकनीक है, जो धूप को सीधे बिजली में परिवर्तित करती है. यह नवीकरणीय ऊर्जा उद्योग के सबसे तेज उत्पादक स्नेतों में से एक है. दरअसल, सूर्य फोटॉन्स का उत्सर्जन करता है. जब ये फोटॉन्स फोटोवॉल्टिक सेल पर आघात करते हैं, तो बिजली पैदा होती है. फोटोवॉल्टिक सेल सिलिकॉन की दो परतों से बना होता है. जब सूर्य की रोशनी इस सेल पर पड़ती है, तो उसकी परतों में एक विद्युतीय क्षेत्र तैयार हो जाता है. रोशनी जितनी तेज होगी, उतनी अधिक बिजली पैदा होगी. पीवी सेल्स कई आकार और रंग के होते हैं. छतों की टाइलों से लेकर बड़े-बड़े पैनल जैसे या पारदर्शी भी होते हैं. भारत समेत अनेक देशों में यह पहले से ही कायम है और 21वीं शताब्दी की प्रमुख तकनीकों में शामिल होने जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऊर्जा के इस नवीन स्नेत का विकास करनेवाले कुछ कारक इस प्रकार हैं: वायुमंडल में फैल रहे कार्बन उत्सर्जन को कम करना, ऊर्जा सुरक्षा और जीवश्म ईंधन की बढ़ती हुई कीमतों के प्रति चिंता आदि. इसमें खास यह है कि पारंपरिक सौर सेल सिलिकॉन से तैयार किये जाते हैं और सामान्यता ये सर्वाधिक कार्यसक्षम होते हैं. सिलिकॉन अथवा गैर-सिलिकॉन सामग्री जैसे केडमियम टेल्युराइड से तैयार किये गये पतले फिल्म सौर सेल का भी इसमें इस्तेमाल किया जाता है. उच्च कार्यक्षम पीवी सामग्री को डिजाइन कराने के लिए तृतीय-उत्पादन सौर सेलों में नयी सामग्री की किस्मों और नैनो तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है.
सौर ऊर्जा तकनीक
सोलर एनर्जी ऊर्जा का सबसे स्वच्छ और नवीकरणीय स्नेत होने के साथ ही यह प्रचूर मात्र में उपलब्ध है. आज हमारे पास ऐसी तकनीकें मौजूद हैं, जिनसे हम व्यापक तादाद में इसका उत्पादन कर सकते हैं. इसमें मुख्य रूप से तीन तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है.
सौर तापीय प्रणालियां गरम जल, गरम वायु, वाष्प आदि के रूप में ताप पैदा करके सौर विकिरणों का इस्तेमाल कर सौर ऊर्जा का उपयोग करती हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बिजली के उत्पादन, कम्युनिटी कुकिंग प्रक्रिया तापन आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में अनेक एप्लीकेशंस को पूरा करने के लिए लगायी जा सकती है. इन एप्लीकेशंस का हीट एक्सचेंजरों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, जो सौर विकिरण ऊर्जा को ट्रांसपोर्ट मीडियम (अथवा हीट ट्रांसफर फ्लूइड, सामान्यत: वायु, जल अथवा तेल) को आंतरिक ऊर्जा में बदल देता है. सौर तापीय प्रणालियां गैर-संकेंद्रीय अथवा संकेंद्रीय किस्मों की हो सकती हैं. ये तमाम एप्लीकेशंस अपेक्षित तापमान और आर्थिक व्यावहार्यता पर निर्भर करते हुए स्थिर (स्टेशनरी) अथवा सूर्य-ट्रेकिंग मेकेनिज्म हो सकते हैं.
कॉन्सेंट्रेटिंग सोलर पावर
कॉन्सेंट्रेटिंग सोलर पावर प्लांट के तहत बड़े मिरर का इस्तेमाल किया जाता है, जो सूर्य से ऊर्जा ग्रहण करते हैं. पारंपरिक स्टीम टरबाइन या इंजन से जिस प्रकार बिजली बनायी जाती है, यह उसी प्रकार कार्य करता है. इसमें सूर्य की ऊर्जा से पानी को उबाला जाता है और फिर उससे बिजली बनायी जाती है. इसमें लैंस या शीशों का प्रयोग किया जाता है, ताकि एक बड़े क्षेत्र की रोशनी को एक छोटी किरण में बदला जा सके. इस संकेंद्रित ताप का इस्तेमाल सामान्य बिजली संयंत्र में किया जाता है.
इस तकनीक के तहत पाराबोलिक ट्राउ सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है यानी इसके शीशे मुड़े होते हैं और सूर्य की ऊर्जा की ओर फोकस करते हैं व पूरी ऊर्जा को ग्रहण कर उसे केंद्र की ओर भेजते हैं. इसमें लगा रिसीवर ट्यूब सूर्य के उच्च तापमान से सिंथेटिक ऑयल की भांति फ्लूड को एब्जॉर्ब करता है और उसे हीट एक्सचेंजर में भेज देता है. हीट एक्सचेंजर पानी को गरम करता है और उससे भाप बनती है. यह भाप पारंपरिक स्टीम टरबाइन पावर सिस्टम के तहत बिजली पैदा करती है.
भारत में अभी इस तकनीक का बहुत कम इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन कई बड़ी परियोजनाओं के प्रस्ताव हैं. इसकी खासियत यह है कि यह प्लांट सोलर एनर्जी को स्टोर करके रखता है और जरूरत पड़ने पर चाहे दिन हो या रात यह बिजली का उत्पादन करता है. अमेरिका में इस तकनीक से 1400 मेगावॉट बिजली बनायी जाती है और अभी 400 मेगावॉट का प्लांट लगाया जा रहा है.

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