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बच्चों के खिलाफ हिंसा यौन शोषण अब और नहीं

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जॉब जकारिया झारखंड हेड, यूनिसेफ बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता. चाहे वह पारंपरिक रूप में हो या अनुशासन के रूप में. यह अस्वीकार्य है और इसे आज ही समाप्त किया जाना चाहिए. यूनिसेफ के हाल में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि बच्चों के […]

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जॉब जकारिया
झारखंड हेड, यूनिसेफ
बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता. चाहे वह पारंपरिक रूप में हो या अनुशासन के रूप में. यह अस्वीकार्य है और इसे आज ही समाप्त किया जाना चाहिए. यूनिसेफ के हाल में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि बच्चों के साथ शारीरिक, यौन एवं भावनात्मक शोषण का आर्थिक बोझ किसी देश या क्षेत्र के सकल घरेलू उत्पाद के दो प्रतिशत के बराबर हो सकता है. झारखंड में यह आर्थिक नुकसान 2,200 करोड़ रुपये के बराबर है
इन आंकड़ों पर जरा विचार करें :
– भारत में 15 वर्ष से अधिक उम्र की 21 प्रतिशत लड़कियों (1.2 करोड़) के साथ शारीरिक हिंसा की गयी.
– 15 से 19 वर्ष की 26 लाख लड़कियां या उसी आयु वर्ग की 4.5 प्रतिशत लड़कियां किसी न किसी प्रकार के यौन हिंसा की शिकार हुई. (यूनिसेफ रिपोर्ट, 2014)
– 15 से 19 वर्ष की 13 प्रतिशत विवाहित लड़कियां यौन हिंसा की शिकार हुईं
– झारखंड में वर्ष 2013 में बच्चों के खिलाफ अपराध के मात्र 129 मामले ही दर्ज हुए. झारखंड में बच्चों के खिलाफ हिंसा की दर 0़ 99 है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 13़ 0 है. (नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो, 2013)
हालांकि, ये आंकड़े पूरी कहानी को बयान नहीं करते, क्योंकि बहुत सारे मामले दर्ज ही नहीं होते.
बच्चों के खिलाफ हर दिन हिंसा होती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अमीर हैं या गरीब, युवा हैं या किशोर, लड़के हैं या लड़कियां या फिर शहरी हैं या ग्रामीण. सभी इसके शिकार होते है. और यह सब हमारे आसपास ही होता है. दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कोई इसके खिलाफ चुप्पी नहीं तोड़ता. बच्चों के खिलाफ हिंसा की समाप्ति एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, क्योंकि प्राय: चुप्पी के कारण वे पीड़ित होते हैं. मुद्दों के प्रति यह चुप्पी समस्या को बढ़ा देती है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे रोका जा सकता है और यह तभी संभव है, जब लोग एकजुट होकर कहें कि यह अस्वीकार्य है. बच्चों के खिलाफ हिंसा को सामूहिक बोध और सशक्तीकरण से समाप्त किया जा सकता है. यूनिसेफ इस बात में विश्वास करता है कि हम सभी समाज के अंदर परिवर्तन के उत्प्रेरक हैं और हमारे पास निभाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका है.
झारखंड में बच्चों के खिलाफ हिंसा की समाप्ति के लिए एक अभियान ‘‘अब और नहीं. मत छुपाओ, आवाज उठाओ’’, की शुरुआत की गयी है, जिसका उद्देश्य पूरे प्रदेश के लड़के-लड़कियों, माता-पिता, शिक्षकों, पदाधिकारियों और समुदाय तक इस संदेश को पहुंचाना है.
बच्चों के खिलाफ हिंसा एवं यौन शोषण को रोका जा सकता है. हिंसा के चक्र को तोड़ना बिल्कुल संभव है. यह हमारा नैतिक और मानवीय दायित्व है कि इसके खिलाफ आवाज उठाएं. इसे हम आज से ही शुरू कर सकते हैं.

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