25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

धरती के स्वर्ग में भीषण बाढ़: कौन हैं गुनहगार कश्मीर के?

Advertisement

जम्मू कश्मीर में आयी बाढ़ ने भीषण कहर बरपा किया है. धरती का स्वर्ग कही जानेवाली कश्मीर की पूरी आबादी आज बाढ़ के पानी के बीच घिर गयी है. लेकिन सवाल यह है कि इस बाढ़ के लिए जिम्मेदार कौन है? कहीं यह मानवीय भूल का नतीजा तो नहीं है. पेश है इसी मुद्दे पर […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

जम्मू कश्मीर में आयी बाढ़ ने भीषण कहर बरपा किया है. धरती का स्वर्ग कही जानेवाली कश्मीर की पूरी आबादी आज बाढ़ के पानी के बीच घिर गयी है. लेकिन सवाल यह है कि इस बाढ़ के लिए जिम्मेदार कौन है? कहीं यह मानवीय भूल का नतीजा तो नहीं है. पेश है इसी मुद्दे पर यह समसामयिक टिप्पणी.

- Advertisement -

पुण्य प्रसून बाजपेयी

कश्मीर को इस हालात में आने देने से रोका जा सकता था. ङोलम का पानी जिस खामोशी से समूचे कश्मीर को ही डुबो गया, उसे रोका जा सकता था. घाटी के हजारों गांव पानी में जिस तरह डूब गये, उन्हें बचाया जा सकता था. यह ऐसे सवाल हैं, जो आज किसी को भी परेशान कर सकते हैं कि अगर ऐसा था, तो फिर ऐसा हुआ क्यों नहीं.

असल में सबसे बड़ा सवाल यही है कि चार बरस पहले ही जम्मू-कश्मीर की फ्लड कंट्रोल मिनिस्ट्री ने इसके संकेत दे दिये थे कि आनेवाले पांच बरस में कश्मीर को डुबोनेवाली बाढ़ की तबाही आ सकती है. फरवरी में बाढ़ नियंत्रण मंत्रलय की तरफ से बाकायदा एक रिपोर्ट तैयार की गयी थी, जिसे घाटी से निकलनेवाले अखबार ‘ग्रेटर कश्मीर’ ने 11 फरवरी, 2010 को छापा.

उस वक्त कश्मीर में तबाही के संकेत की बात सुन कर कश्मीर से लेकर दिल्ली तक सरकारें हरकत में आयीं जरूर, लेकिन जल्द ही सियासी चालों में सुस्त पड़ गयीं. उस वक्त बाढ़ नियंत्रण विभाग के अधिकारियों ने माना था कि बाढ़ की स्थिति इतनी भयावह हो सकती है कि समूचा कश्मीर डूब जाये. बाकायदा डेढ़ लाख क्यूसेक पानी नदी से निकलने का जिक्र किया गया था. और संयोग देखिए, फिलहाल करीब पौने दो लाख क्यूसेक पानी कश्मीर को डुबोये हुए है. रिपोर्ट के मुताबिक, इसकी आशंका चार बरस पहले ही जता दी गयी थी कि कश्मीर पूरी तरह कट जायेगा. जम्मू-श्रीनगर रास्ता बह जायेगा. हवाई अड्डे तक जानेवाली सड़क भी डूब जायेगी. और कमोबेश हालात वहीं हैं, जिसका जिक्र चार बरस पहले की रिपोर्ट में किया गया था. सवाल सिर्फ वैसे ही हालात के होने भर का नहीं है, बल्किऐसे हालात न हों, इसके लिए बाढ़ नियंत्रण विभाग ने बाकायदा दस्तावेजों का बंडल ट्रक में भर कर दिल्ली भेजा.

सारी रिपोर्ट जल संसाधन मंत्रलय पहुंची भी. लेकिन सारी रिपोर्ट बीते चार बरस में सड़ती रही. क्योंकि उस वक्त जम्मू कश्मीर के बाढ़ नियंत्रण मंत्रलय ने केंद्र से 2200 करोड़ रु पये के बजट की मांग की थी.

जिसे 500 करोड़ रु पये की किस्तों के हिसाब से देने को कहा गया. जिससे बाढ़ नियंत्रण के बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने के लिए काम शुरू हो सके. लेकिन तब की केंद्र में मनमोहन सरकार ने मार्च के महीने में 109 करोड़ रु पये देने का भरोसा भी दिया. लेकिन ना दिल्ली से कोई बजट श्रीनगर पहुंचा. ना जम्मू-श्रीनगर सरकार इस दौर में कोई इन्फ्रास्ट्रक्चर बना पायी, जिससे बाढ़ को रोका जा सके. हुआ इसका उलट. बीते दस बरस में कश्मीर में कोई ऐसी जगह बची ही नहीं जहां से बाढ़ का पानी बाहर निकल सके. बेमिना जैसी जगह तो बाढ़ के लिए स्वर्ग बन गयी क्योंकि यहा रिहायशी और व्यावसायिक इमारतों ने समूची जमीन ही घेर ली. यानी बाढ़ की जिस त्रसदी का अंदेशा चार बरस पहले जताया गया.

उस पर आंख मूंद कर कश्मीर को जन्नत का नूर बनाने का सपना देखने वालों ने कभी महसूस ही नहीं किया कि अगर ऐसा होगा तो फिर ऐसा नजारा भी सामने होगा, जब कश्मीर के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लग जायेगा. जमीन पानी-पानी और आसमान ताकती कातर निगाहें पीने के पानी के लिए तरसेंगी. लेकिन पहली बार यह सवाल भी खड़ा हुआ है कि क्या वाकई वक्त के साथ इस तरह की आपदा से निपटने की क्षमता खत्म होती जा रही है क्योंकि 1902 में पहली बार कश्मीर बाढ़ की गिरफ्त में फंसा. उसके 57 बरस बाद 1959 में घाटी इस बुरी तरह बाढ़ से घिरी की तब कश्मीर के लिए अंगरेजों से मदद मांगी गयी. और अब यानी 2014 के हालात तो सबके सामने हैं. तो पहला सवाल कमोवेश हर 55 बरस के बाद कश्मीर बाढ़ की त्रसदी से घिरा है. दूसरा सवाल बाढ़ से निपटने के लिए पहली बार 2014 में ही सरकार बेबस नजर आ रही है. या फिर कोई तकनीक है ही नहीं कि कश्मीर के लोगो की जान बचायी जाये.

तो क्या कश्मीर के बचाव को लेकर सरकार के हालात बीसवीं सदी से भी बुरे हो चले हैं. यह सवाल इसलिए बड़ा है क्योंकि इससे पहले 1959 में जब कश्मीर में बाढ़ आयी थी, तब समूची घाटी पानी में डूब गयी थी. उस वक्त कश्मीर सरकार के पास बाढ़ से बचने के कोई उपाय नही थे, तो तत्कालीन सीएम गुलाम मोहम्मद बख्शी ने अंगरेजों से मदद मांगी थी. और तब इगलैंड के इंजीनियरों ने ङोलम का पानी शहर से दूसरी दिशा में मोड़ने के लिए वुल्लहर तक जमीन और पहाड़ को भेद डाला. इसके लिए बाकायदा भाप के इंजन का इस्तेमाल किया गया.

असल में 1948 में आयी बाढ़ ने ही कश्मीर को आजादी के बाद पहली चेतावनी दी थी. और तब प्रधानमंत्री नेहरू ने कश्मीर सरकार को ही बाढ़ से निपटने के उपाय निकालने की दिशा में कदम बढ़ाने को कहा था. और उसी के बाद शेख अब्दुल्ला की पहल पर ब्रिटिश इंजीनियरों ने श्रीनगर के पदशाही बाग से वुल्लहर तक करीब 42 किलोमीटर लंबा फ्लड चैनल बनाया. जिससे बाढ़ का पानी शहर से बाहर किया जा सके. असर इसी का हुआ कि राजबाग का जो इलाका आज पानी में पूरी तरह डूबा हुआ है और हेलीकॉप्टर से राहत देने के अलावे सरकार के पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है, वहीं 55 बरस पहले अंगरेजों की तकनीक से राजबाग में बाढ़ का पानी आने के बावजूद जान-माल की कोई हानि नहीं हुई. लेकिन बीते पचास बरस में बाढ़ की त्रसदी से निपटने की दिशा में कोई काम तो हुआ नहीं उल्टे पेड़ों की कटाई और पहाड़ों को गिरा कर जिस तरह रिहाइश शुरू हुई और इसी आड़ में व्यावसायिक धंधे ने निर्माण कार्य शुरू किया, असर उसी का है कि मौजूदा बाढ़ के वक्त समूचे कश्मीर की जमीन ही बाढ़ के लिए बेहतरीन जमीन में बदल चुकी है. घाटी के सारे फ्लड चैनल बंद हो चुके हैं.

ङोलम की जमीन नादरु नंबल, नरकारा नंबल और होकारसर पर रिहायशी कालोनियां बन गयी हैं. यहां तक की श्रीनगर विकास ऑथरिटी ने भी फ्लड चैनल पर शापिंग काम्पलेक्स खोल दिया है. यानी कश्मीर जो आज बाढ़ की त्रसदी से कराह रहा है उसके पीछे वही अंधी दौड़ है जो जमीनों पर कब्जा कर मकान या दुकान बनाने को ही सबसे बड़ा सुकुन माने हुए है. और हर कोई इसे आपदा मान कर खामोश है और गुनहगारों की तरफ कोई देखने को तैयार नहीं है.

(लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें