बालेंदु शर्मा दाधीच
तकनीकी विशेषज्ञ
तकनीकी क्षेत्र में हम हिंदी का चमत्कारिक प्रसार देख रहे हैं. पहले हमारी चिंताएं, आकांक्षाएं और मांगें हिंदी के बुनियादी तकनीकी समर्थन तक सीमित रहा करती थीं, जैसे डिजिटल डिवाइसों पर यूनिकोड का समर्थन, हिंदी में टाइप करने में सुगमता, अच्छे हिंदी फॉन्ट की उपलब्धता, पुरानी सामग्री का आधुनिक यूनिकोड फॉरमेट में रूपांतरण, वर्तनी जांचक जैसे भाषाई औजारों की उपलब्धता, ई-मेल, वेब, मोबाइल, ग्राफिक्स तथा पेजमेकिंग जैसे प्लेटफॉर्मों पर हिंदी के लिए निर्बाध समर्थन आदि. इनमें से ज्यादातर में हिंदी में सरलता और सुगमता से काम करना संभव हो चुका है. अगर कोई हिंदी यूनिकोड फॉन्ट का प्रयोग करते हुए इन सुविधाओं से वंचित है, तो वह जागरूकता की कमी का मामला है.
यूनिकोड के बाद के दौर में तकनीकी क्षेत्र में हिंदी के प्रसार का पहला चरण पूरा हो चुका है. अब दूसरे चरण में हम टेक्स्ट इनपुट यानी टाइपिंग और संचार की बुनियादी चुनौती से आगे ध्यान केंद्रित कर रह हैं.
यानी हिंदी में की-बोर्ड आधारित टेक्स्ट इनपुट से इतर दूसरे तरह के माध्यमों का प्रयोग, जो बहुत हद तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित हैं. ध्वनि आधारित टंकण, हस्तलिपि पहचान, न्यूरल नेटवर्क आधारित मशीन अनुवाद, टेक्स्ट से ध्वनि आउटपुट, मुद्रित टेक्स्ट का कनवर्जन (ओसीआर) और ध्वनि से ध्वनि अनुवाद. इनमें से कुछ क्षेत्रों में प्रगति हो चुकी है, जबकि कुछ में काम जारी है.
इन सब अनुप्रयोगों को जीवन और व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों में लागू करने पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. यानी हिंदी में उत्पादकता, कंटेंट का सृजन, कोलेबरेशन (सहकर्म), डिजिटल-इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में हिंदी का प्रयोग (जैसे ई-शिक्षा, ई-प्रशासन, ई-कारोबार आदि) पर ध्यान. तकनीक बनानेवाले अपना काम करने में लगे हुए हैं. अब बारी तकनीक का इस्तेमाल करनेवालों की है.