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सही जीवनशैली व अर्ली स्क्रीनिंग से संभव है डायबिटीज से बचाव

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डॉ रमन कुमार अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका को सामान्य रूप से कार्य करने के लिए शूगर की आवश्यकता होती है. कोशिकाओं तक शूगर एक हार्मोन की सहायता से पहुंचती है, जिसे इंसुलिन कहते हैं. अगर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं है या शरीर ने इंसुलिन के […]

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डॉ रमन कुमार
अध्यक्ष, एकेडमी ऑफ फैमेली फिजिशियंस ऑफ इंडिया, दिल्ली
हमारे शरीर की प्रत्येक कोशिका को सामान्य रूप से कार्य करने के लिए शूगर की आवश्यकता होती है. कोशिकाओं तक शूगर एक हार्मोन की सहायता से पहुंचती है, जिसे इंसुलिन कहते हैं. अगर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं है या शरीर ने इंसुलिन के प्रति प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है, तो रक्त में शूगर का स्तर बढ़ने लगता है. यही डायबिटीज है.
अनियंत्रित डायबिटीज के कारण रक्त में शूगर का स्तर काफी बढ़ जाता है, जिसे हाइपरग्लाइसेमिया कहते हैं. डायबिटीज जीवनशैली से संबंधित एक क्रॉनिक डिजीज है. इससे बचाव संभव है, अगर आप हेल्दी डाइट लें, नियमित रूप से एक्सरसाइज करें और तनाव के स्तर को कम रखें. अर्ली स्क्रीनिंग डायबिटीज का पता लगाने में सबसे महत्वपूर्ण है.
डायबिटीज के प्रकार : यह मुख्यत : तीन प्रकार की होती है- टाइप 1 डायबिटीज, टाइप 2 डायबिटीज और गेस्टेशनल डायबिटीज. वैसे इसके एक और प्रकार- टाइप 1.5 के मामले भी सामने आ रहे हैं.
टाइप 1 डायबिटीज : डायबिटीज के कुल मामलों में से 10 प्रतिशत मामले टाइप 1 के देखे जाते हैं. यह सामान्यत: बचपन में ही एक ऑटो इम्यून कंडीशन के रूप में विकसित हो जाती है. इसमें अग्नाश्य या तो इंसुलिन का उत्पादन बिल्कुल नहीं करता या बहुत ही कम मात्रा में करता है.
टाइप 2 डायबिटीज : पूरे विश्व में डायबिटीज मरीजों में 90 प्रतिशत टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं. इसमें शरीर इंसुलिन हार्मोन का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं कर पाता, जिससे रक्त में शूगर का स्तर अनियंत्रित हो जाता है. मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज का सीधा संबंध होता है. इसके लक्षण टाइप 1 के समान ही, लेकिन कम गंभीर होते हैं, इसलिए शुरू होने के कई वर्षों बाद तक डायग्नोज नहीं हो पाती.
गैस्टेशनल डायबिटीज : यह गर्भावस्था के दौरान होती है. इसके कारण मां और बच्चे दोनों को कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. जिन बच्चों की मां को गैस्टेशनल डायबिटीज होती है, उनमें मोटापे और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है.
अगर गर्भवती महिला टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज से ग्रस्त है, तो गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है. जबकि जिन महिलाओं को गैस्टेशनल डायबिटीज है, वे या तो मृत बच्चे को जन्म देती हैं या कुपोषण के कारण जन्म लेनेवाला बच्चा अत्यधिक कमजोर होता है.
टाइप 1.5 डायबिटीज : इसे टाइप 3 डायबिटीज भी कहते हैं. यह अधिकतर वयस्क लोगों को ही होती है. इसे मैनेज करने के लिए तुरंत इंसुलिन की जरूरत नहीं होती.
जिन लोगों में टाइप 2 डायबिटीज डायग्नोज होता है, उनमें से वास्तव में 15-20 प्रतिशत लोगों को 1.5 टाइप डायबिटीज होती है. टाइप 1.5 उन लोगों को भी हो सकती है, जिनका वजन औसत है और जो फिट दिखते हैं.
डायबिटीज के प्रारंभिक लक्षण : प्यास अधिक लगना, बार-बार पेशाब आना, तेजी से वजन घटना, खाने के बाद भी भूख लगना, नजर कमजोर होना, चिड़चिड़ापन, हाथ-पैरों में झुनझुनी या अकड़न, त्वचा या मसूड़ों में संक्रमण, जख्म का ठीक नहीं होना, खुजली होना व थकान महसूस करना.
रिस्क फैक्टर : हालांकि कई लोगों में डायबिटीज के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते, इसलिए अगर आपमें कोई रिस्क फैक्टर है, तो सतर्क हो जाएं.
अगर आपकी उम्र 30 वर्ष से अधिक है.
वजन सामान्य से अधिक है या मोटापे (बीएमआइ 23-24.9) के शिकार हैं.
पारिवारिक इतिहास है, जैसे- माता-पिता दोनों में से एक या दोनों को डायबिटीज रहा हो.
महिलाएं, जिनमें पीसीओएस (पॉली सिस्टिक ओवरी सिंड्रोम) का डायग्नोसिस हुआ हो.
गर्दन के पिछले हिस्से की त्वचा का रंग गहरा होना.
त्वचा पर सूखे या लाल धब्बे विकसित हो जाना
हाइपरटेंशन/थकान.
ब्लड शूगर टेस्ट और डायबिटीज स्क्रीनिंग
ब्लड शुगर टेस्ट के जरिये रक्त में शूगर के स्तर का पता लगाया जाता है. जबकि डायबिटीज स्क्रीनिंग में शरीर के ग्लूकोज के अवशोषण की क्षमता की जांच की जाती है.
कब शुरू करें : 45 की उम्र में, लेकिन अगर आपका वजन और ब्लड प्रेशर सामान्य से अधिक है या इस बीमारी का पारिवारिक इतिहास है, तो युवा अवस्था में ही शुरू कर दें, क्योंकि युवाओं में भी यह बीमारी तेजी से फैल रही है. कितने अंतराल के बाद : तीन साल में एक बार, पारिवारिक इतिहास होने पर प्रतिवर्ष स्क्रीनिंग कराएं.
इन बातों का रखें ध्यान
संयमित जीवनशैली अपना कर इस घातक रोग से आप बच सकते हैं, लेकिन एक बार यह हो जाये तो पूर्ण छुटकारा पाना संभव नहीं. उचित खान-पान, नियमित व्यायाम और उचित दवाइयों के सेवन से इसे नियंत्रित कर सकते हैं.
नये दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी डायबिटीज रोगियों को अपना ब्लड प्रेशर 120/80 से कम रखना चाहिए और खाली पेट रक्त में शूगर की मात्रा 90 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए. सबसे जरूरी है महिलाएं अपनी कमर का घेरा 32 इंच से कम और पुरुष 35 इंच से कम करें. कोलेस्ट्रॉल का स्तर 100 मिलीग्राम से कम रखना भी रोगियों को सामान्य जीवन जीने में मददगार है. गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं विकसित होने पर किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाएं.
डायबिटीज का बढ़ता दायरा
आंकड़ों की मानें तो पूरी दुनिया में लगभग 44 करोड़ लोग डायबिटीज से पीड़ित हैं, इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डायबिटीज को ‘ग्लोबल एपिडमिक’ की संज्ञा दी है. डायबिटीज रिसर्च सेंटर के अनुसार पिछले दस वर्षों में 16-25 आयु वर्ग के लोगों में यह बीमारी तेजी से फैली है. विश्व स्तर पर इसके विस्तार को देखें, तो भारत में काफी बड़ी संख्या में लोग शिकार बने हैं. वर्ल्ड डायबिटीज फाउंडेशन के अनुसार इस रोग से पीड़ित हर पांच में से एक भारतीय है.
फैक्ट फाइल
पौलेंड के वारसा स्थित इंस्टीट्यूड ऑफ कार्डियोलॉजी के अनुसंधानकर्ताओं के अनुसार युवा महिलाएं जिन्हें डायबिटीज है, उनमें हार्ट अटैक का खतरा छह गुना बढ़ जाता है.
वाशिंगटन डीसी स्थित फिजिशियन कमेटी फॉर रिस्पांसिबल मेडिसीन के क्लिनिकल रिसर्च के अनुसार डायबिटीज़ और कार्डियो वॉस्क्युलर डिजीज में गहरा संबंध है. जिन लोगों को डायबिटीज है, उनमें से 60-70 प्रतिशत लोगों की मृत्यु हृदय रोगों से होती है. डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि चीनी नया तंबाकू है. जैसे तंबाकू कैंसर के प्रमुख कारणों में है, उसी प्रकार से चीनी डायबिटीज का मुख्य कारण है.
इनपुट : शमीम खान, दिल्ली

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