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देवघर आनेवाले कांवरिये यहां भी करते हैं जलार्पण, हर-हरि का मिलन स्थल है हरिलाजोड़ी

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बाबा बैद्यनाथ मंदिर से महज पांच किलोमीटर दूर स्थित हरिलाजोड़ी मंदिर का महत्व देवघर में बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना संबंधी धार्मिक कथा से जुड़ा है. हरिलाजोड़ी ही वह स्थान है, जहां हर-हरि का पृथ्वी पर पहला मिलन हुआ था. धार्मिक महत्व के अनुसार, लंकापति रावण जब कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर जा रहे थे, […]

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बाबा बैद्यनाथ मंदिर से महज पांच किलोमीटर दूर स्थित हरिलाजोड़ी मंदिर का महत्व देवघर में बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना संबंधी धार्मिक कथा से जुड़ा है. हरिलाजोड़ी ही वह स्थान है, जहां हर-हरि का पृथ्वी पर पहला मिलन हुआ था.
धार्मिक महत्व के अनुसार, लंकापति रावण जब कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर जा रहे थे, तब हरिलाजोड़ी ही वह स्थान था, जहां उन्हें लघुशंका का अाभास हुआ. हरिलाजोड़ी में ही भगवान विष्णु ने चरवाहा का रूप धारण कर लंकापति रावण से शिवलिंग को थामा था.
उसके बाद रावण ने हरिलाजोड़ी में लघुशंका निवारण किया. इस बीच भगवान विष्णु ने वर्तमान में देवघर में माता सती के हृदय स्थल पर शिवलिंग को स्थापित कर दिया. रावण ने जिस स्थान पर शिवलिंग को चरवाहे के रूप में खड़े भगवान विष्णु को सौंपा था, आज भी उस स्थान पर भगवान विष्णु का पदचिह्न है. रावण ने जिस स्थान पर लघुशंका निवारण किया था, वहां आज भी कुंड है, जिसे रावण कुंड कहा जाता है.
इन दोनों स्थानों पर पूजा-अर्चना होती है. हरिलाजोड़ी में विष्णु मंदिर के साथ-साथ शिव मंदिर, काली मंदिर समेत अन्य देवी-देवताओं के मंदिर है. कार्तिक पूर्णिमा में रावण कुंड में स्नान का भी महत्व है, लोगों यहां स्नान कर मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं.
बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ा है हरिलाजोड़ी का धार्मिक इतिहास : अशोक झा
मंदिर के पुजारी अशोक झा ने कहा कि हरिलाजोड़ी धार्मिक कथा बाबा बैद्यनाथ मंदिर से जुड़ी है. कभी हरिलाजोड़ी में हरतिकी पेड़ के वनों से घिरा था. भगवान विष्णु चरवाहे के रूप में हरिलाजोड़ी में ही भ्रमण कर रहे थे, जिस वजह से रावण ने शिवलिंग उन्हें हरिलाजोड़ी में सौंपा था. इसके बाद माता सती के हृदय पर शिवलिंग को देवघर में स्थापित किया. हरिलाजोड़ी में आज भी सालों भर श्रद्धालु पहुंचते हैं.

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