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जोड़ों का दर्द खून में यूरिक एसिड बढ़ने का हो सकता है संकेत

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नेशनल कंटेंट सेल लगातार काम करने और थकान की वजह से हाथ, पैर, जोड़ों आदि में दर्द होना आम बात है. लेकिन अगर यह दर्द कई दिनों तक बना रहे तो शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में वृद्धि यानी हाइपरयूरीकेमिया का भी संकेत हो सकता है. ऐसे में इसके लक्षणों की अनदेखी कई गंभीर […]

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नेशनल कंटेंट सेल

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लगातार काम करने और थकान की वजह से हाथ, पैर, जोड़ों आदि में दर्द होना आम बात है. लेकिन अगर यह दर्द कई दिनों तक बना रहे तो शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में वृद्धि यानी हाइपरयूरीकेमिया का भी संकेत हो सकता है. ऐसे में इसके लक्षणों की अनदेखी कई गंभीर बीमारियों के बुलावे का कारण भी बनती है. दुनिया भर में गाउट या गठिया के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. गठिया का मुख्य कारण शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा का जरूरत से ज्यादा बढ़ जाना है. सामान्यतः पुरुषों में इसका स्तर 3-7 मिलीग्राम/डीएल और स्त्रियों में 2.5-6 मिलीग्राम/डीएल होता है. शरीर में इससे ज्यादा यूरिक एसिड होने की स्थिति को मेडिकल टर्म में ‘हाइपरयूरीकेमिया’ कहा जाता है.

दरअसल, प्यूरिन नाइट्रोजन युक्त ऐसे कंपाउंड्स होते हैं, जिनका निर्माण शरीर की कोशिकाओं द्वारा किया जाता है. इसके अलावा प्यूरिन युक्त चीजों को खाने से भी यह हमारे शरीर में पहुंचता है. यही प्यूरिन हमारे शरीर में पहुंचने के बाद टूटकर यूरिक एसिड में बदल जाता है. हालांकि इसकी ज्यादातर मात्रा खून में मिल जाती है और यूरिन के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाती है. हाइपरयूरीकेमिया की स्थिति में या तो शरीर जरूरत से ज्यादा मात्रा में यूरिक एसिड का निर्माण करने लगता है या फिर इसे सही तरीके से खून में से फिल्टर नहीं कर पाता है. यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने से गठिया के साथ ही हार्ट डिजीज, किडनी स्टोन, किडनी फेल्योर, हाई ब्लड प्रेशर, आर्थराइटिस और जोड़ों के सामान्य दर्द की समस्या भी हो सकती है.

कैसे करता है प्रभावित

यूरिक एसिड की बढी हुई मात्रा शरीर के जोड़ों में क्रिस्टल के रूप में जमने लगती है, जिसका परिणाम अचानक होने वाले जॉइंट पेन के रूप में सामने आता है. मुख्य रूप से एडियां, घुटने, हाथ और कलाई की हड्डियां प्रभावित होती हैं. हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें विकार उत्पन्न होने लगता है. गठिया का अटैक अक्सर लगातार काम करने, अल्कोहल का ज्यादा सेवन या किसी तरह की दवाई लेने के बाद होता है. अचानक आनेवाले ये अटैक कभी-कभी बिना ट्रीटमेंट के कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं. मरीज जितनी जल्दी यूरिक एसिड लेवल की जांच कराकर ट्रीटमेंट लेंगे, उतना ही हड्डियों को कम नुकसान होगा.

पुरुषों को ज्यादा खतरा

महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को ज्यादा खतरा होता है, क्योंकि महिलाओं के शरीर में एस्ट्रोजेन हार्मोन होता है, जो यूरिक एसिड को खून में से फ़िल्टर करने की प्रक्रिया को तेज कर देता है. महिलाओं में मुख्य रूप से मेनोपॉज के बाद यह समस्या देखने को मिलती है. हालांकि हमेशा हाइपरयूरीकेमिया लोगों में गठिया की वजह नहीं बनती है. जिन लोगों में मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा होता है और जिनके परिवार गठिया का इतिहास रहा हो, उन्हें खतरा ज्यादा होता है. बढ़ती उम्र, मोटापा, लगातार एस्प्रिन, साइक्लोस्फोरिन या लीवोडोपा जैसी दवाइयों का इस्तेमाल, प्यूरिन रिच फूड्स, जैसे- रेड मीट और मछलियां, ज्यादा अल्कोहल, पानी कम पीना और शरीर में थाइरॉयड संबंधी समस्याएं गठिया के खतरे को बढ़ा देती हैं.

लक्षण : सामान्य लक्षणों में सुबह जोड़ों में दर्द होना, सूजन, लालीपन, जकडन और गर्मी लगना शामिल हैं. यह दर्द किसी एक जोड़ से शुरू होता है और धीरे-धीरे फ़ैल जाता है. लगातार वर्षों तक यूरिक एसिड की मात्रा असंतुलित रहने से उंगलियों, पैर, कोहनी, एडी और कलाई के पास गांठ बन जाती है. इनमें दर्द नहीं होता, लेकिन शुरू की स्थिति में इस जगह पर सूजन और लाली देखने को मिलती है.

आयुर्वेद में भी है इलाज

आयुर्वेद में यूरिक एसिड की मात्रा को कम करने के लिए पंचकर्म विधि अपनायी जाती है. इस दौरान कई तरह की दवाइयों के साथ मरीज की जीवनशैली में भी जरूरी बदलाव किये जाते हैं इस दौरान उन्हें मालिश दी जाती है. ट्रीटमेंट के आखिरी दिन ख़ास तरह के औषधियों से बनी एक घुट्टी पिलायी जाती है, जो शरीर में मौजूद सारे टॉक्सिन को बाहर निकालता है. हर तीन महीने में यह प्रक्रिया दोहरायी जाती है और इस दौरान बैलेंस डायट का ख्याल रखा जाता है. इससे गठिया की समस्या काफी हद तक दूर हो जाती है.

बरतें ये सावधानियां
डॉ एहसान अहमद
एसोसिएट प्रोफेसर यूरोलॉजी डिपार्टमेंट, आईजीआईएमएस, पटना

शरीर में कुछ एंजाइम्स की कमी से यूरिक एसिड ज्यादा मात्रा में बनने लगती है. हाइ ब्लड प्रेशर और ओबेसिटी के मरीजों में यह समस्या ज्यादा देखी जाती है. ऐसे में जिन चीजों में प्यूरिन बहुत अधिक मात्रा में हो, जैसे- नॉनवेज, पालक, दाल आदि खाने से बचना चाहिए. तली हुई चीजें, डेयरी प्रोडक्ट्स भी एक सीमा के अंदर ही खाना चाहिए. जितना ज्यादा हो सके विटामिन-सी का सेवन करना चाहिए, खूब पानी पीना चाहिए और रेगुलर एक्सरसाइज के जरिये अपने वजन को संतुलित रखने का प्रयास करना चाहिए. लगातार वजन के कम होने से भी शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है. इसलिए वजन घटाना भी हो, तो संतुलित डायट लेते रहना चाहिए. एक्सरसाइज जरूर करनी चाहिए. यूरिक एसिड का लेवल बढ़ने से किडनी स्टोन की समस्या भी हो सकती है, लेकिन समय रहते दवाइयों द्वारा स्टोन शरीर से बाहर निकाला जा सकता है.
बातचीत : पूजा कुमारी

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एड्रेनलिन के दुष्परिणाम
डॉक्टरों के मुताबिक कार्डियक अरेस्ट के उपचार में एड्रेनलिन युक्त दवाओं का इस्तेमाल आखिरी विकल्प होता है. यह हार्ट में न सिर्फ ब्लड फ्लो बढ़ा देता है, बल्कि दिल की धड़कन को वापस लौटाने में भी मदद करता है. मगर ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ वार्विक के विशेषज्ञ गेविन पर्किंस ने इसके दुष्परिणाम की ओर ध्यान दिलाया है. उनका कहना है कि एड्रेनलिन के फायदे बहुत कम हैं. हर 125 मरीजों पर 1 मरीज ही बचाया जा सका है, जबकि उस मरीज के दिमाग पर भी एड्रेनलिन के इस्तेमाल का बहुत बुरा असर देखने को मिला है. यह स्टडी न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में पब्लिश हुई, जिसमें शोधकर्ताओं की टीम ने 8,000 मरीजों का विश्लेषण किया.

प्रेग्नेंसी में दिल का दौरा

न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय में हुए एक शोध के मुताबिक महिलाओं में अधिक उम्र में बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति का बढ़ना उनमें दिल के दौरे के खतरे को बढ़ाती है. यह जोखिम उम्र के साथ बढ़ता है, विशेष रूप से गर्भावस्था के दौरान. कई महिलाओं में बच्चे को जन्म देने या प्रसव के दो महीने के बाद दिल का दौरा पड़ना दर्ज किया गया है. शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि प्रेग्नेंसी के दौरान माताओं में होनेवाले शारीरिक बदलाव उनके दिल के लिए कितना तनावपूर्ण हो सकते हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक, महिलाओं में मोटापे या मधुमेह से पीड़ित होने की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है, जो दिल के दौरे के लिए जिम्मेवार प्रमुख कारकों में से एक है.

एंटीबायोटिक प्रयोग में वृद्धि

एंटीबायोटिक दवाओं का दुष्परिणाम विश्वभर के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है. ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विवि के ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2000 और 2010 के बीच इन दवाओं की खपत वैश्विक रूप से बढ़ी है और 50 अरब से 70 अरब मानक इकाई हो गयी है. इसके इस्तेमाल में वृद्धि प्रमुख रूप से भारत, चीन, ब्राजील, रूस व दक्षिण अफ्रीका में दर्ज हुई है. जाहिर तौर पर भारत सहित विभिन्न देशों में एंटीबायोटिक दवाओं की आपूर्ति में वृद्धि खतरे का संकेत है. अब इसे लेकर कानून को सख्ती से तत्काल लागू करने की जरूरत है. इसके कारण अमेरिका में हर साल 20 लाख संक्रमण व 23,000 मौतें होती हैं और यूरोप में हर साल करीब 25,000 मौतें होती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन दवाओं का अत्यधिक इस्तेमाल इसके फैलाव व विकास को सुविधाजनक बना सकता है.

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