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डॉ भीम राव आंबेडकर की जयंती आज, निर्भय क्रांतिवीर थे डॉ बाबा साहेब : रघुवर दास

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II रघुवर दास II मुख्यमंत्री झारखंड राष्ट्र और समाज के विषय में हमलोग भाग्यशाली हैं. हमारे पास हजारों वर्षों का इतिहास, संस्कृति और मानव सभ्यता की विरासत है. बीते वर्षों का प्रत्येक पल हमारे लिए प्ररेणा का अविरल स्रोत प्रवाहित करता रहा है. भारत की भूमि पर भारत माता की कोख से अनेक महापुरुषों ने […]

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II रघुवर दास II

मुख्यमंत्री झारखंड

राष्ट्र और समाज के विषय में हमलोग भाग्यशाली हैं. हमारे पास हजारों वर्षों का इतिहास, संस्कृति और मानव सभ्यता की विरासत है. बीते वर्षों का प्रत्येक पल हमारे लिए प्ररेणा का अविरल स्रोत प्रवाहित करता रहा है. भारत की भूमि पर भारत माता की कोख से अनेक महापुरुषों ने जन्म लिया है़ डॉ बाबा साहेब आंबेडकर का उनमें एक महत्वपूर्ण स्थान है.

महान विचारक, कर्मयोगी, मन से -वचन से-कृति से निरंतर संघर्षरत डॉ साहब की गणना उन महापुरुषों में होती है, जिनके व्यक्तित्व, कृतित्व ने न केवल इतिहास में अपना स्थान बनाया, बल्कि उस काल के घटनाचक्र को भी एक निश्चित दिशा दी. डॉ बाबा साहेब ने अछूत और निम्न वर्ग के मानव की समता के लिए समाज में एक चिंगारी प्रकट की. बाबा साहेब अांबेडकर निर्भय क्रांतिवीर थे. भारत के उस कालखंड में व्याप्त कुरीतियों से उन्होंने दलित समाज को ऊपर उठाया था, परंतु किसी बदले की भावना से नहीं. उन्होंने दूसरों को मार–काट कर बड़ा होने की बात कभी नहीं की. डॉ बाबा साहेब एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जो वंचितों के लिए लड़ते थे. वे दलितों के अधिकार के लिए लड़ते थे, उनके स्वाभिमान और सम्मान के लिए जूझते थे. दलितों के बीच बैठ कर उन्हें कड़वी से कड़वी, कठोर से कठोर बात कोई कह सकता था, ऐसे थे डॉ बाबा साहेब. जिन्होंने भी डॉ आंबेडकर के बारे में अध्ययन किया होगा, उन्हें इस बात का ज्ञान अवश्य होगा.

बाबा साहेब का नाम स्मरण होते ही समाज में एक चेतना की अनुभूति होती है. वे समस्त विश्व के महामानव थे. एक बात तो समझनी चाहिए कि अगर जीवन में प्रगति करनी है, तो डॉ अांबेडकर ने जो रास्ता बताया है, उसी पर चलना पड़ेगा.

बौद्ध परंपरा में और बौद्ध धर्म में एक ही बात की गूंज है–‘अप्प दिप्पो भव’. दूसरे शब्दों में कहें, तो आत्मदीपो भव:. अर्थात स्वयं प्रकाशित हो, अंधकार तुम्हारे पास नहीं आयेगा. उन्होंने अपने जीवन में कभी भी अंधकार को अपने पास फटकने नहीं दिया.शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ने के लिए बाबा साहब से बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती है.

एक विद्यार्थी के रूप में उन्होंने जैसा संघर्ष जीवन में किया, वैसा हमलोगों को नहीं करना पड़ा है. उन्होंने जितने कष्ट उठाये थे, ऐसे कष्ट तो शायद ही किसी ने उठाये हों. विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने यह ऊंचाई प्राप्त की थी.

बाबा साहेब की दूसरी विशिष्टिता थी कि वे कहते थे– ‘‘शिक्षित बनो’’, परंतु जब तक वे स्वयं शिक्षित नहीं हुए, तब तक उन्होंने यह उपदेश किसी को नहीं दिया था. शिक्षित होने के बाद ही उन्होंने शिक्षित बनो का नारा दिया। यही एक मात्र सही मार्ग है. डॉ बाबा साहेब के जीवन को जानने का, पढ़ने का, अध्ययन करने का, मनन–चिंतन का संकल्प करें. आप देखेंगे कि इस महामानव के जीवन में से आपको जीने की एक नयी दिशा प्राप्त होगी. मैंने बाबा साहेब को पढ़ने का, अध्ययन करने का काम किया है. मैं भी एक मजदूर पिछड़े परिवार में जन्म लेकर बड़ा हुआ हूं. इसलिए अनुभव करता हूं कि यह वेदना क्या होती है. यह पीड़ा क्या है, इसकी जानकारी मुझे है. और इस कारण अंदर में एक आग सुलगती है.

बाबा साहेब की एक और विशिष्टता थी. वे सत्य के लिए लड़ते थे, परंतु उनके जीवन में नफरत का कहीं कोई स्थान नहीं था. वे समाज को तोड़ना नहीं जोड़ना चाहते थे. एकता, समता और ममता के लिए जीवन भर उनका मंथन चलता रहा है. समाज परिवर्तन में नारी कितना योगदान दे सकती है, यह भी बाबा अच्छी तरह से जानते थे. इसलिए उन्होंने 1942 में शिड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन (अनुसूचित जाति संघ) के अधिवेशन में 20 हजार अस्पृश्य महिलाओं से आह्वान किया था– ‘‘आप स्वच्छ रहिए, दुर्गुणों से दूर रहिए, अपनी संतानों को अच्छी तरह पढ़ाईए और शिक्षित कीजिए. मेरी इस सलाह को मान कर आप सब अपनी भी उन्नति करेंगे और समाज को प्रगति के मार्ग पर भी ले जा सकेंगे’’.

मुझे लगता है कि घर-परिवार को सुखी बनाना है, तो डॉ साहब की यह बात केवल अनुसूचित जाति की माता–बहनों को ही नहीं, बल्कि भारतवर्ष की समस्त माता–बहनों को स्वीकार करनी चाहिए. दलितों, पीड़ितों और शोषितों के सामाजिक व आर्थिक जीवन में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने संघर्ष किया.

डॉ साहेब ने देश के लिए काम किया, इस कारण वे पूजनीय हैैं. परंतु बाबा साहेब को मात्र दलितों का तारणहार मान कर उन्हें एक सीमा में बांध दिया गया है. बाबा साहेब तो सभी पिछड़े व उपेक्षित लोगों के तारणहार थे. वंचितों के लिए लड़ते विगत सदी के दो महामानव इसके उदाहरण हैं. अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग और भारत में डॉ अांबेडकर. इन दोनों ने अपना जीवन दबे–कुचले लोगों के अधिकार के लिए संघर्ष करते हुए बीता दिया. बाबा साहेब और मार्टिन लूथर किंग के पालन-पोषण में अद्भूत साम्य है. दोनों अभावों के बीच जन्मे और पले. दोनों अपने लिए नहीं, बल्कि वंचितों के लिए लड़ते रहे. सामाजिक असमानता और विषमता की खाई को पाटने के लिए जीवन भर जूझते रहे. दोनों ने शिक्षित होने पर जोर दिया.

बाबा साहेब आंबेडकर ने इंग्लैंड की धरती पर रह कर डिग्रियां प्राप्त कर ली थी. इन डिग्रियों के आधार पर वे चाहते तो रुपयों का ढेर लग जाता, परंतु उन्होंने यह सब छोड़ दिया. बैरिस्टर बने थे. इसके बाद भी उन्होंने इंग्लैंड के पाउंड को ठोकर मार दी और कहा कि मैं तो अपने देशवासियों की सेवा में जीवन अर्पित कर दूंगा. उन्हें स्वयं की नहीं, समाज की चिंता थी. डॉ बाबा साहब, पं नेहरू के मंत्रिमंडल में कानून मंत्री थे, परंतु उनके ह्दय में तो समाज हित की अखंड धारा प्रवाहित हो रही थी. इसी कारण वे मंत्री पद त्याग कर समाज के काम पर निकल पड़े.

आजादी के बाद देश में कांग्रेस की सरकार थी. कांग्रेस का झंडा लहराता था. तब देश में लोग बाबा साहेब को कम से कम पहचाने, इसके लिए योजना पूर्वक कार्यक्रम बनाया गया था. कांग्रेस ने खुद योजनाबद्ध तरीके के दो महापुरुषों के प्रति अन्याय किया था. एक थे सरदार पटेल और दूसरे बाबा साहेब अांबेडकर. पूरे देश से इनका संपूर्ण परिचय ही नहीं होने दिया. यही कारण है कि आज भी समाज के अंदर बाबा आंबेडकर और सरदार पटेल की कमी महसूस होती है. बाबा साहेब को भारत रत्न पुरस्कार मिले, इसके लिए हम सबको आंदोलन करना पड़ा, इससे बड़ा कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता.

समय की मांग है कि अपने समाज के ऐसे महामानवों को हमें विश्व–फलक पर लाना है. उनका स्वप्न था–‘‘जाति विहीन समाज रचना’’ अर्थात समग्र समाज एकात्म और समरस बने, कोई ऊंचा नहीं, कोई नीचा नहीं. बाबा साहेब ने मन में निश्चय किया था कि मैं हिंदू के रूप में जन्मा हूं, परंतु हिंदू रह कर मुझे मरना मंजूर नहीं. उन्होंने जब हिंदू धर्म छोड़ने का निश्चय किया, तो दुनिया भर के लोगों ने उन्हें अपनी ओर लाने के लिए प्रयास किया था. दुनियाभर के चर्च, समस्त ईसाई जगत ने बाबा आंबेडकर को ईसाई धर्म स्वीकार करें, इसलिए धन–दौलत का लालच दिया था. दूसरी ओर इस्लामी जगत उन्हें मुसलमान बनाने के लिए उतावला हो रहा था.

हैदराबाद के निजाम डॉ साहेब के चरणों में स्वर्ण मुद्रा का ढेर लगा देने को तैयार था. दोनों धर्म के लोग उन्हें अपने पक्ष में लाने के लिए पीछे पड़ गये थे. उस समय उन्होंने जो बात कही–वह बहुत महत्वपूर्ण थी. आनेवाले दिनों में हिंदुस्तान की एकता और अखंडता के लिए बाबा साहेब के इन शब्दों को स्वर्णक्षरों में लिखा जाना है. उन्होंने कहा–‘‘मैं हिंदू धर्म छोड़ दूंगा. हिंदू समाज में जो विकृति आ गयी है, उन विकृतियों के लिए मेरा विरोध है, परंतु मैं हिंदुस्तान से प्रेम करता हूं.

मैं जीऊंगा तो हिंदुस्तान के लिए और मरूंगा तो हिंदुस्तान के लिए. मेरे शरीर का प्रत्येक कण और मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण हिंदुस्तान के लिए काम आये, इसलिए मैं जन्मा हूं. मैं हिंदु धर्म छोड़ दूंगा, परंतु ऐसे धर्म को अंगीकर करूंगा, जो हिंदुस्तान की धरती पर जन्मा है. मुझे ऐसा ही धर्म स्वीकार है, जो विदेशों से आयात किया हुआ नहीं हो. इसी कारण मैं बौद्ध धर्म अंगीकर करता हूं.

इसके बाद उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकार किया’’. देश भक्ति की यह उच्च पराकाष्ठा है. बाबा साहेब ने दलितों को अस्पृश्यता की यातनाओं से मुक्ति दिलाने के लिए राष्ट्रद्रोह नहीं किया, न धर्म द्रोह किया.

समाज के दृष्टिकोण को बदलने के लिए 14 अप्रैल से 5 मई, 2018 तक ग्राम स्वराज अभियान (ग्राम स्वशासन अभियान)–सबका साथ, सबका गांव, सबका विकास कार्यक्रम निर्धारित किया गया है.

झारखंड के सभी लोगों से अपील है कि गरीब और वंचित परिवारों के जीवन में समृद्धि लाने के लिए आगे आयें. राज्य की सवा तीन करोड़ जनता समाज में समता, ममता व समरसता लाने के लिए और नया भारत और नया झारखंड के निर्माण में सहभागी बने.

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