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भौगोलिक निरक्षरता के खतरे

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II महादेव टोप्पो II कुछ वर्षों से कहा जा रहा है कि जो लोग कंप्यूटर साक्षरता में पिछड़ जायेंगे वे अज्ञानी कहे जायेंगे और सामाजिक रूप से पिछड़े. लेकिन, दुनिया में आजकल जिस तरह से प्राकृतिक संकटों से जूझने के खतरे रोज बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं, उससे लगता है कंप्यूटर साक्षरता के साथ-साथ […]

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II महादेव टोप्पो II
कुछ वर्षों से कहा जा रहा है कि जो लोग कंप्यूटर साक्षरता में पिछड़ जायेंगे वे अज्ञानी कहे जायेंगे और सामाजिक रूप से पिछड़े. लेकिन, दुनिया में आजकल जिस तरह से प्राकृतिक संकटों से जूझने के खतरे रोज बढ़ते हुए देखे जा रहे हैं, उससे लगता है कंप्यूटर साक्षरता के साथ-साथ लोगों को भौगोलिक साक्षरता की ज्यादा जरूरत है. भूगोल का सामान्य ज्ञान नहीं रखने के कारण हमारे देश में रोज कहीं न कहीं हमारे देश में बच्चे विभिन्न कारणों से अपनी जान गंवा रहे हैं.
पिछले कुछ सालों में झारखंड में रांची के आस पास कई पिकनिक स्थलों, वॉटर फॉल, डैम, तालाब, डोभा, नदी आदि में फिसलकर, नहाते वक्त, फोटो खिंचाते, सेल्फी लेते या मस्ती करने चक्कर में अपनी जान गंवाने वालों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. उनमें से अधिकांश छह से सत्रह-अट्ठारह साल के बच्चे व किशोर थे.
इस दुर्घटना का एक बड़ा कारण उनका भौगोलिक अज्ञान है. प्रायः ये शहरी बच्चे इन इलाकों से अपरिचित होते हैं और वहां किन स्थितियों में किस तरह चलना या व्यवहार करना है, यह कभी स्कूलों में सिखाया या बताया नहीं जाता. रांची के आसपास के जलप्रपातों में जिनकी मौतें हुई हैं, वे ऐसे बच्चे रहे हैं, जिन्हें इस इलाके में चलने, घूमने आदि का ज्ञान कम था. उबड़-खाबड़ चट्टानों में चलकर कैसे शारीरिक संतुलन बनाये रखना है, इसकी जानकारी या आदत इनकी नहीं थी. फलतः, वे चट्टानी, पथरीली, असमतल इलाके में चलने का अनुभव कम रखने के कारण और जोश में पिकनिक वाले मूड में अति उत्साह या अपनी चंचल प्रवृत्ति व अनावश्यक भाग-दौड़ अथवा उछल-कूद मचाने के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठते हैं या हाथ पैर तुड़वा लेते हैं.
हमारे स्कूलों में एक तो भूगोल-संबंधी जानकारी कम देने की परंपरा रही है. इस विषय को दोयम दर्जे को माना जाता है. फलतः अधिकांश छात्र अपने आस-पास के भौगोलिक वातावरण से अपरिचित होते हैं.
उन्हें किन भौगोलिक-परिवेश में कैसे रहना चाहिए, कैसे चलना, दौड़ना, भागना चाहिए यह मालूम नहीं होता. पानी का व्यवहार व रंग कैसे पहचाना जाय, कैसे गहराई को जाना जा सके आदि कई जरूरी तथ्य मालूम नहीं होते. फलतः, पढ़ाई में तेज माने जानेवाले अनेक छात्र ऐसे पर्यटन-स्थलों में बेवजह अपनी जान गंवा बैठते हैं या घायल हो जाते हैं.
गूगल में नक्शे की सहायता से हम अनेक दुर्गम स्थानों में जा सकते हैं. गाड़ी या बाइक ले जा सकते हैं लेकिन, जब जान खतरे में हो तो हम गूगल में कोई सहायता ले पाने की स्थिति में नहीं होते. मतलब ज्ञान-विज्ञान व तकनीकी विशिष्टता आपको एक हद तक जीवन को सफल बनाने में जरूर मददगार हैं लेकिन इन पर अत्यधिक निर्भरता हमेशा सहायक नहीं होती.
हमें जीवन में कई छोटी बड़ी बातें सुनकर, पूछकर, या अनुभव से सीखना, जानना होता है और सावधानी से इनका उपयोग अपने जीवन में करना होता है.
भूगोल एक ऐसा विषय है जो जीवन के हर पल आपको प्रभावित करता रहता है. हवा, पानी, धरती, चट्टान, मिट्टी, पेड़-पौधे, झील, नदी, झरने, समुद्र, आंधी, तूफान, बारिश, मौसम, सूखा, अकाल, रेगिस्तान आदि के व्यवहार के बारे यह हमें अनेक जानकारी देते हैं, जिससे हम अपने जीवन सुरक्षित व बेहतर बना सकते हैं.
देखा गया है कि दुनिया की 65 प्रतिशत से अधिक दुर्घटनाएं, हादसे आदि भौगोलिक हलचलों के कारण हैं जबकि मानव निर्मित त्रासदी जैसे युद्ध या मशीनी दुर्घटनाएं 25 से 35 प्रतिशत तक हैं. इन घटनाओं के आधिकांश शिकार किशोरवय के लोग होते हैं. अतः, उन्हें अनुभवी साथियों के साथ ऐसे इलाकों में जाना चाहिए. उन्हें फिसलन भरे चट्टानी रास्तों में चलने का अनुभव होना चाहिए. वे अपने साथ मजबूत रस्सी आदि साथ रख सकते हैं जो पानी में डूबने पर किसी के लिए सहायक हो सकते हैं.
उन्हें एकांत इलाकों में जाने से बचना चाहिए ताकि किसी संकट की स्थिति आने से वे बचाए जा सकें. अपने अतिउत्साह और चंचलता को ऐसे इलाकों में नियंत्रित रखना और शांत रहना चाहिए. भूगोल मनुष्य को प्रकृति के हर पहलू की जरूरी जानकारी प्रदान करता है. मनुष्य इस विषय को जितनी मौलिकता, आत्मीयता व अंतरंगता के साथ जानेगा, विभिन्न आपदाओं से बच सकेगा. झारखंड जैसे जटिल, विविधतापूर्ण भौगोलिक क्षेत्र में जहां सुंदर झरने, पहाड़, खदान से बने गड्ढे, जंगल, छोटी-नदियां एवं डैम भरे पड़े हैं वहां इन भौगोलिक जानकारी की उपयोगिता अधिक है.
क्योंकि भूगोल की बेहद सामान्य जानकारी न होने कारण आये दिन खान-क्षेत्रों में दुर्घटनाएं एवं हादसे होते देखे गये हैं. साथ ही भूगोल एक ऐसा विषय है जो मनुष्य के हर प्रकार की गतिविधियों से सीधा जुड़ा है, जिससे विकास, संस्कृति, भाषा, पर्यावरण, वेश-भूषा, भोजन की प्रकृति, कृषि, उत्खनन, वन-रोपण एवं संरक्षण, डैम-निर्माण से लेकर, नगर-निर्माण, जल-निकास-व्यवस्था, युद्ध और राजनीतिक-आंदोलन तक प्रभावित रहे हैं.
अतः, भूगोल की सामान्य जानकारी सभी को हो तो इस तरह के संकट एवं समस्याओं को कम किये जा सकते हैं. आस-पास की भौगोलिक-स्थिति एवं माहौल से परिचित होने के कारण कोई भी जिम्मेदार नागरिक की भूमिका में रह सकता है. जागरुकता से झारखंड के पर्यटन व पिकनिक-स्थलों में संभावित दुर्घटनाओं, खतरों, हादसों को कम कर सकते हैं. पृथ्वी को स्वच्छ, स्वस्थ रखकर, हम भी स्वस्थ व दीर्घजीवी हो सकते हैं. झारखंड के सुंदर पर्यटन-स्थलों, झरना, डैम आदि का ज्यादा आनंद ले सकते हैं.

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