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स्वयं से स्वयं को पहचानने का पर्व है रंगोत्सव, जानें होलिका दहन का शुभ मुहूर्त

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II दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी II ज्योतिषाचार्य askfrompanditji@gmail.com अन्य त्योहारों की अपेक्षा होली एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्योहार है. होली पर आध्यात्मिक रंगों से होली खेलने की अनुभूति निश्चित ही सुखद एवं अलौकिक है. रंगों का लोकजीवन में ही नहीं, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है. अध्यात्म का अर्थ होता है […]

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II दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी II
ज्योतिषाचार्य
askfrompanditji@gmail.com
अन्य त्योहारों की अपेक्षा होली एक विशिष्ट सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्योहार है. होली पर आध्यात्मिक रंगों से होली खेलने की अनुभूति निश्चित ही सुखद एवं अलौकिक है. रंगों का लोकजीवन में ही नहीं, अपितु शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है. अध्यात्म का अर्थ होता है खुद को ईश्वर में तल्लीन कर लेना, साथ ही स्वयं को पहचानना, स्वयं को स्वयं के साथ संबंधित कर लेना. होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं को पहचानने का पर्व है.
होली मनाने के पीछे भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूतना नामक राक्षसी का वध करने की कथा धर्मग्रंथों में है. राक्षसी के मरने के कारण बृजवासी खुशी के चलते आपस में रंग खेलते है. वहीं ऐसी भी मान्यता है कि फाल्गुन माह में शिव के गण रंग लगाकर नाचते-गाते थे. वहीं हिंदू पुराणों के मुताबिक जब दानवों के राजा हिरण्यकश्यप ने देखा कि उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की आराधना में लीन हो रहा है, तो अत्यंत क्रोध में उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाये, क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में जल नहीं सकती, लेकिन जब वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि में बैठी तो खुद जलकर राख हो गयी. नारायण के भक्त प्रह्लाद को खरोंच तक नहीं आयी, तब से इसे होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है.
रंगों का स्वास्थ्य पर प्रभाव : शारीरिक स्वास्थ्य इस पर निर्भर है कि जीवन में हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार रंगों से संश्लेषण करते हैं. जैसे श्वेत रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है. पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय बन जाते हैं. नीला रंग शरीर में कम होता है, तो क्रोध अधिक आता है, नीले रंग के ध्यान से इसकी पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है.
अत: होली को वास्तविक रूप में मनाने के लिए हमें अपने मन को वास्तविक रूप से निर्मल जल की तरह निर्मल रखना चाहिए. असल में होली बुराइयों के विरुद्ध उठा एक प्रयत्न है, जिससे जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है.
रंगों से खेलने के पीछे का दर्शन
हमारे जीवन पर रंगों का गहरा प्रभाव होता है, हमारा चिंतन भी रंगों के सहयोग से ही होता है. हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है. पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- ये पांच तत्व हैं. शरीर इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित है.
ये रंग हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं. होली पर इन पांच तत्व और उनसे जुड़े रंगों का ध्यान करने से हमारा न केवल शरीर, बल्कि संपूर्ण वातावरण शुद्ध और सशक्त बन जाता है. रंगों से खेलने एवं रंगों के ध्यान के पीछे एक बड़ा दर्शन है. निराश-हताश जीवन में इससे एक नयी ताजगी, एक नयी ऊर्जा आती है. रंग बाहर से ही नहीं, आदमी को भीतर से भी बहुत गहरे सराबोर कर देता है. रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेगों आदि का बहुत गहरा संबंध है.
होलिका दहन का मुहूर्त
1 मार्च, गुरुवार को सुबह 7:30 के पश्चात पूर्णिमा अनुदया क्षयवति है.
भद्रा सायं (रात) 06:48 बजे समाप्त हो जायेगी.
होलिका दहन तीन शास्त्रीय नियमों के अनुसार किया जाता है –
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा हो तो
प्रदोष -रात का समय हो तो एवं
भद्रा बीत चुकी हो.
इस अनुसार देखें, तो 1 मार्च, गुरुवार को रात्रि 06:58 बजे के बाद निशामुख होलिका दहन का मुहूर्त निर्धारित किया जा रहा है.
”रात्रौ भद्राsवसाने तु होलिका दीप्यते तदा”
चैत्रकृष्ण प्रतिपदा 2 मार्च को होली रंगोत्सव का पर्व पूरे देश में एक साथ मनाया जायेगा. पूर्णिमा में भद्राकाल 6:45 के बाद होलिका दहन का मुहूर्त प्रारंभ हो जायेगा. होलिका दहन के लिए प्रदोष काल का समय सर्वोत्तम माना जाता है. अतः इसको ध्यान में रखते हुए ‘ओम् होलिकायै नमः’ मंत्रोचार के साथ शास्त्र विधि से होलिका दहन करना उत्तम है.

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