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35वीं पुण्यतिथि पर विशेष : स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रांतिकारी श्याम बर्थवार

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साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष करना हमारा कर्तव्य था, व्यवसाय नहीं कन्हैया प्रसाद सिन्हा श्याम बर्थवार का जन्म पांच दिसंबर 1900 को पुराने गया जिला अंतर्गत औरंगाबाद के खरांटी ग्राम में हुआ था. हम देश के लिए लड़ थे. अपनी मातृभूमि के लिए साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष करना हमारा कर्तव्य था, व्यवसाय नहीं. यह कहते हुए […]

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साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष करना हमारा कर्तव्य था, व्यवसाय नहीं
कन्हैया प्रसाद सिन्हा
श्याम बर्थवार का जन्म पांच दिसंबर 1900 को पुराने गया जिला अंतर्गत औरंगाबाद के खरांटी ग्राम में हुआ था. हम देश के लिए लड़ थे. अपनी मातृभूमि के लिए साम्राज्यवादियों के खिलाफ संघर्ष करना हमारा कर्तव्य था, व्यवसाय नहीं. यह कहते हुए श्याम बर्थवार ने स्वतंत्रता सेनानी पेंशन और ताम्र पत्र लेने से उस वक्त इंकार कर दिया, जब उन्हें इसकी बहुत जरूरत थी. उनके पिता शरी दामोदर प्रसाद पुलिस सेवा में पदस्थापित थे, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से स्वतंत्रता आंदोलन को समर्थन दिया करते थे. अंतत: 1922 में वह पकड़े गये और उन्हें सरकारी सेवा से वंचित होना पड़ा. श्याम बर्थवार प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए 1920 में बनारस गये. जलियांवाला बाग कांड का उनके मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा.
इन कारणों से वह पढ़ाई में मन न लगा कर क्रांतिकारी गतिविधियों की ओर आकर्षित होते हुए लोगों को संगठित करना प्रारंभ किया. अपने दाैर के तमाम प्रमुख क्रांतिकारियाें के साथ काम करते हुए उन्हाेंने स्वतंत्रता संघर्ष में सक्रिय भूमिका निभायी थी. पुरुषाेत्तम दुबे, जीवाराम जाेशी, रामप्रसाद बिस्मिल, बनारस के स्वामी सत्यानंद, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, श्माम बाबू उनके सक्रिय सहयोगी रहे. देश के काेने-काेने के क्रांतिकारी के साथ उनके तार जुड़े थे.
काकोरी कांड में चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, अशफाक उल्लाह के अतिरिक्त अन्य क्रांतिकारी भी थे, जो ब्रिटिश की पकड़ में नहीं आये. श्याम बाबू के शब्दों में : सुबह होते ही ( आठ अगस्त 1925 ) युवक संघ के कुछ वालंटियर और स्वामी सत्यानंद के साथ हमलोग काकोरी के लिए प्रस्थान कर गये. यहां चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह प्रतीक्षा कर रहे थे. यहां से एक मुसाफिर गाड़ी लखनऊ के लिए चली. हम गाड़ी पर सवार हो गये और निश्चिंत अड्डे के लिए प्रस्थान कर गये. थोड़ी दूर जब गाड़ी गयी, मैंने जंजीर खींच दी. सी…सी करती हुई ट्रेन रुक गयी. युवकों ने गाड़ी घेर ली. सब के सब हथियारों से लैस थे. गार्ड और इंजन चालक हाथ उठा कर जमीन पर लेट गये. युवक सरदार हाथ में तमंचा लिए धूम रहा था. किसी यात्री को बाहर झांकने की हिम्मत नहीं थी.
एक अंग्रेज को नहीं रहा गया. उसने अपने राइफल की नली आजाद की ओर तान दी. स्वामी सत्यानंद की गोली उस अंग्रेज का कलेजा चीरती हुई निकल गयी. अंग्रेज छटपटाया और वहीं ढेर हो गया. चांदी के रुपयों को मोटरसाइकिलों पर लाद कर हमलोग जंगल की ओर चले गये. कुछ देर बाद गाड़ी ने सिटी दी और पराजित सेना की तरह चली गयी.
पलामू जिले में पोस्टल छापा : 23-24 मई 1929 में बनारस में क्रांतिकारियों की बैठक में बंगाल की क्रांतिकारी राधारानी सेन ने सूचना दी कि हथियारों के क्रय के लिए पैसे की व्यवस्था करनी है.
इसके लिए कोतवाली के पीछे इस बुलायी गयी बैठक में जीवाराम जाेशी, पुरुषोत्तम दुबे, सत्यानंद, श्याम बाबू तथा राधारानी सेन ने भाग लिया. श्याम बाबू को छोड़ सब लोगों में सहमति बन गयी कि विश्वनाथ की गली में एक विधवा भिखारिन जो वर्षों से भीख मांग रही है, उसके पास बहुत पैसे हैं और उसे ही निशाना बनाया जाये. लेकिन श्याम बाबू ने आपत्ति जताते हुए कहा ‘प्लान तो अच्छा है, पैसे भी खूब मिलेंगे, लेकिन एक निरीह विधवा को लूटने के बाद हमारी कैसी भद्दी तस्वीर दिखेगी’. राधारानी की आंख में आंसू आ गये और कहा श्याम जी मैंने इतनी तह में जाने की कोशिश नहीं की, लेकिन पैसे की व्यवस्था करनी थी.
पलामू जिला के डालटनगंज में पोस्टल डाक पर छापा के लिए योजना तैयार की गयी. राधारानी को छोड़ सभी क्रांतिकारी पलामू पहुंच गये थे. सभी लोग नागेश्वर प्रसाद सिंह अधिवक्ता के यहां ठहर गये. गणेश वर्मा स्थानीय क्रांतिकारी की मदद से एक्शन की तैयारी पूरी कर ली गयी तथा 27 मई 1929 को कमिश्नर बंगला के सामने पोस्टल डाक को लूट कर सभी निकल गये.
(लेखक मालती धार्री कॉलेज, नौबतपुर के प्राचार्य हैं)

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