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मुगाबे के इस्तीफे के बाद नये दौर में जिंबाब्वे

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कुछ दिनों की टालमटोल के बाद जिंबाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे का त्यागपत्र मात्र एक नयी सरकार के सत्ता-ग्रहण का प्रारंभ-बिंदु नहीं है, बल्कि देश के एक नयी दिशा में जाने का क्षण भी है. करीब चार दशकों से सत्ता के शिखर पर रहे मुगाबे के खाते में कई उपलब्धियां हैं और गंभीर आरोप भी. […]

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कुछ दिनों की टालमटोल के बाद जिंबाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे का त्यागपत्र मात्र एक नयी सरकार के सत्ता-ग्रहण का प्रारंभ-बिंदु नहीं है, बल्कि देश के एक नयी दिशा में जाने का क्षण भी है. करीब चार दशकों से सत्ता के शिखर पर रहे मुगाबे के खाते में कई उपलब्धियां हैं और गंभीर आरोप भी. जहां उन्होंने किसानों को जमीनें दीं, वहीं विरोधियों से हिंसक दमन से निबटने से भी बाज नहीं आये. उनकी राजनीतिक यात्रा और मौजूदा घटनाक्रम के विविध आयामों पर नजर डालती इन-डेप्थ की प्रस्तुति…
यजेसन बर्क/वरिष्ठ पत्रकार, द गािर्डयन
ह बिल्कुल सिनेमाई सख्तापलट की तरह दिखता है : बख्तरबंद वाहनों के काफिले, राष्ट्रपति घर में नजरबंद, और जनरल देश की स्क्रीन पर सुबह के अगले कुछ घंटों में ‘स्थिरता बहाली’ की बात कह रहा है.
लेकिन, हफ्ताभर पहले हुए जिंबाब्वे में सत्ता पर सैन्य अधिग्रहण की कहानी अब बदल रही है. राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को कोई नुकसान नहीं पहंुचाया गया. रविवार रात जब उन्होंने टेलीविजन प्रसारण के दौरान इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, तो भी किसी भी प्रकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी.
उनको बेदखल करने के लिए संसद को महाभियोग की बोझिल प्रक्रिया को अपनाना पड़ा. वर्षों से अफ्रीका में हुए अन्य तख्तापलट के मुकाबले यह घटनाक्रम बिल्कुल विपरीत है. सत्ता पर कब्जे के लिए सेनाओं को भारी संघर्ष करते हुए देखा गया है और कई बार तो नेताओं की हत्या तक हो गयी.
जिंबाब्वे के वरिष्ठ विपक्षी नेता डेविड कोल्टार्ट कहते हैं कि ‘यह एक अलग प्रकार से जिंबाब्वे का मसला है और इसमें रॉबर्ट मुगाबे की शख्सियत बहुत मायने रखती है. वे आजादी के नायक के तौर पर जाने जाते हैं. अपने देश को बड़ा नुकसान पहुंचाने के बावजूद वे ज्यादातर अफ्रीकी देशों में प्रतिष्ठित हैं. सेना भी इस बात को समझती है कि उनको आहत करने से अफ्रीका नाराज हो सकता है.
वर्ष 1960 से अफ्रीका में 200 से अधिक सैन्य तख्तापलट हुए हैं, कई देशों और क्षेत्रों के इतिहास में भयावह बदलाव के साथ-साथ भीषण रक्तपात हुआ. यूगांडा में वर्ष 1971 में जनरल इदी अमीन ने राष्ट्रपति मिल्टन अबॉट से सत्ता छीन ली, उस खौफ के शासन को आज भी याद किया जाता है.
वर्ष 2012 में सैन्य तख्तापलट ने माली को अस्थिर कर दिया, जिसकी वजह से इस्लामिक आतंकियों ने देश के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया. इसके बाद फ्रेंच सैनिकों ने स्थिरता बहाली के लिए हस्तक्षेप किया. नाइजीरिया में आठ सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं.
सत्ता में रहते हुए भी नेताओं की हत्याएं हो चुकी हैं. उदाहरण के तौर पर 2001 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के राष्ट्रपति लारेंट कबिला को मौत के घाट उतार दिया गया था.
वर्षों तक चले शीतयुद्ध की वजह से तख्तापलट मामलों में तेजी आयी और कई बार इस दौरान हिंसक वारदातें हुईं.बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के डेमोक्रेसी के प्रोफेसर निक चीजमैन के अनुसार, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को बढ़ावा देने से नेताओं को ज्यादा फायदा नहीं मिलता, लेकिन तख्तापलट हर किसी को भयभीत करता है. ऐसे में लोकतांत्रिक व्यवस्था की बजाय तख्तापलट के खिलाफ आमसहमति बनाना आसान होता है. तख्तापलट के लिए आलोचना से बचने के मामले में लोग अब ज्यादा होशियार हो रहे हैं.
इसका मतलब है कि सत्ता पर काबिज होनेवाले नेता घरेलू और अंतरराष्ट्रीय अभिमत पर पहले के मुकाबले अधिक सावधान हो चुके हैं. यदि सत्ता हस्तांतरण को असंवैधानिक करार दिया गया, तो अफ्रीकी समूह से देश के बेदखल होने का खतरा बढ़ जायेगा. इसके अलावा सहायता और निवेश के लिए भी समस्या पैदा हो सकती है.
अगर जिंबाब्वे के नये प्रशासन को विश्व समुदाय अवैधानिक मानता है, तो देश की चरमराई अर्थव्यवस्था के सुधार के लिए जरूरी फंडिंग इकट्ठा करने में नये प्रशासन को तमाम मुश्किलों का सामना कर पड़ सकता है.
अफ्रीकी यूनियन और स्थानीय साउथ अफ्रीकन डेवलपमेंट कम्युनिटी (एसएडीसी) ने जिंबाब्वे के मौजूदा हालातों पर अपने बयान जारी किये हैं और किसी भी सत्ता परिवर्तन को मान्यता देने से इनकार कर दिया है.
मौजूदा संकट पर विमर्श के लिए बीते दिनों ने एसएडीसी ने अंगोला में बैठक की है. ऐसे में जनरल हरारे में अपने निष्कर्षों को बारीकी से परख रहे होंगे.
(द गार्डियन में छपे लेख का अनुवाद. साभार)
मौजूदा प्रकरण के प्रमुख किरदार
जिंबाब्वे के विवादास्पद और लंबे समय तक राष्ट्रपति रहे राॅबर्ट मुगाबे ने 21 नवंबर को आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे दिया. मुगाबे द्वारा उपराष्ट्रपति इमर्सन मननगाग्वा को बर्खास्त करने के बाद इस महीने के शुरुआत में सेना ने राजधानी को अपने नियंत्रण में ले लिया था.
राॅबर्ट मुगाबे
जिंबाब्वे को 1980 में ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी, तब से लेकर अब तक राॅबर्ट मुगाबे देश का नेतृत्व करते आ रहे थे. उनका जन्म रोडेशिया, जिसे अब जिंबाब्वे के नाम से जाना जाता है, में हुआ था. वर्ष 1945 में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने 15 वर्षों तक रोडेशिया और घाना में अध्यापन का कार्य किया. वर्ष 1960 में उन्होंने राजनीति में प्रवेश लिया और देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रही नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) से जुड़े और उसके प्रचार सचिव बनाये गये. बाद में मुगाबे ने जिंबाब्वे अफ्रीकन नेशनल यूनियन, जिसे अब जानु-पीएफ के नाम से जाना जाता है, के लिए एनडीपी को छोड़ दिया.
गोरों के औपनिवेशिक शासन का विरोध करने के कारण 1964 में वे जेल भेजे गये, जहां से 10 साल बाद रिहा हुए. साल 1980 में आजादी मिलने के बाद वे देश के प्रधानमंत्री बने और 1987 में राष्ट्रपति बने. मुगाबे को 1990 में किये गये उनके भू-सुधार कार्यों के लिए जाना जाता है, जिसके तहत उन्होंने गोरों से जमीन लेकर अश्वेत किसानों में वितरित की. लेकिन इसके बावजूद आलोचकों का मानना है कि समय के साथ वे निरंकुश होते चले गये. उनके शासनकाल में देश में लगातार राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल होती रही है.
ग्रेस मुगाबे
साल 1965 में दक्षिण अफ्रीका में जन्मीं ग्रेस मुगाबे रॉबर्ट मुगाबे की दूसरी पत्नी हैं. ग्रेस की मंहगी खरीदारी की आदतों को देखते हुए आलोचक उन्हें ‘गुच्ची ग्रेस’ कहते हैं. जानु-पीएफ पार्टी में अधिक सक्रिय होने से पहले वे सामाजिक सेवा से जुड़ी थीं. साल 2014 में जानु-पीएफ विमेंस लीग के प्रमुख के लिए उनका नाम प्रस्तावित किया गया था. माना जाता है कि ग्रेस के कहने पर ही तत्कालीन उपराष्ट्रपति जॉयस मुजुरु को हटाया गया था और उनकी जगह मननगाग्वा को उपराष्ट्रपति बनाया गया था. उनकी बर्खास्तगी के पीछे भी ग्रेस का हाथ बताया जा रहा है.
इमर्सन मननगाग्वा
अभी हाल तक 71 वर्षीय मननगाग्वा उपराष्ट्रपति थे. उन्होंने मिस्र और चीन में सैन्य प्रशिक्षण लिया है, लेकिन बाद में वे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए तत्कालीन रोडेशिया लौट आये थे.
मुगाबे की ही तरह उनको भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए 10 वर्ष की सजा हुई थी. जानु-पीएफ पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक मननगाग्वा देश की स्वतंत्रता के बाद से ही सरकार में शामिल रहे हैं. वर्ष 2013 में उपराष्ट्रपति बनने से पहले वे देश के राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री थे. अटकलों के अनुसार, मुगाबे के बाद सत्ता की बागडोर मननगाग्वा के हाथ में आ सकती है.
जनरल कॉन्स्टैंटिनो चिवेंगा
जनरल कॉन्स्टैंटिनो चिवेंगा वर्ष 1990 से ही राष्ट्रीय सेना का नेतृत्व कर रहे हैं. मननगाग्वा के करीबी सहयोगी चिवेंगा 1970 में देश के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे.
जिंबाब्वे की अफ्रीकी नेशनल आर्मी से उन्होंने मोजांबिक में प्रशिक्षण लिया था. वे 2003 में जिम्बॉब्वे के संयुक्त सैन्य बलों के कमांडर बनाये गये थे, लेकिन जनरल बनाये जाने से पहले 2002 में यूरोपीय संघ, अमेरिका और न्यूजीलैंड ने इसके लिए स्वीकृति दी थी. उन्होंने 13 नवंबर को इस बात की चेतावनी दी थी कि अगर उनके ऐतिहासिक राजनीतिक सहयोगी को परेशान किया जाना जारी रहा तो सेना इसके खिलाफ कदम उठायेगी.
रॉबर्ट मुगाबे की राजनीतिक यात्रा
1965- रोडेशियन फ्रंट के नेता और प्रधानमंत्री इयान स्मिथ ने श्वेत अल्पसंख्यक शासन के तहत ब्रिटेन से रोडेशिया की स्वतंत्रता की घोषणा की.
1972- गोरों के शासन के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध तेज हुआ.
1978- स्मिथ आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय दबाव से झुके और चुनाव की घोषणा की. पर, जिंबाब्वे संघर्ष की दो पार्टियों- जानु और जापु- ने इसका बहिष्कार किया. बिशप एबेल मुजोरेवा की सरकार को अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिली. गृह युद्ध जारी रहा.
1979- लंदन के लैंकस्टर हाउस में ब्रिटेन ने सभी पक्षों में मध्यस्थता की. समझौते के तहत नये संविधान और श्वेत अल्पसंख्यकों की अधिकारों को मान्यता.
1980- मुगाबे की पार्टी ने ब्रिटेन की निगरानी में हुए चुनाव में जीत हासिल की और मुगाबे प्रधानमंत्री बने. इस साल 18 अप्रैल को विधिवत स्वतंत्रता की घोषणा कर दी गयी.
1982- मुगाबे द्वारा अपने सहयोगी जोशुआ नकोमो को हटाने के बाद नकोमो-समर्थकों का विद्रोह. माना जाता है कि इस विद्रोह को दबाने के दौरान मुगाबे की सेना ने हजारों नागरिकों को मारा.
1987- देश के दक्षिणी हिस्से में चल रहे आंतरिक युद्ध की समाप्ति. मुगाबे और नकोमो के दलों का विलय. अब जानु पार्टी का नाम जानु-पीएफ हो गया. इसी साल संविधान में बदलाव कर मुगाबे कार्यकारी राष्ट्रपति बन गये.
1991- राजधानी हरारे में कॉमनवेल्थ सम्मेलन आयोजित हुआ जिसमें अंतरराष्ट्रीय शांति और सहयोग तथा नागरिक अधिकारों को मजबूत करने का प्रण दोहराया गया.
1998- दंगों और हड़ताल के साथ आर्थिक संकट गहराया.
1999- संकट जारी. कांगो में जिंबाब्वे सेना के हस्तक्षेप से लोग नाराज. मुगाबे के विरुद्ध विपक्षी आंदोलन की स्थापना.
2000 (फरवरी)- जमीन से जुड़े कानूनों तथा अपना कार्यकाल बढ़ाने के मुद्दे पर कराया गया मुगाबे का जनमत-संग्रह विफल. अश्वेत लोगों द्वारा श्वेत लोगों की जमीनें कब्जा करने का सिलसिला शुरू.
2000 (जून)- संसदीय चुनाव में थोड़े अंतर से मुगाबे की पार्टी जीती, पर संविधान में बदलाव के लिए जरूरी ताकत खत्म हो गयी.
2001 (जुलाई)- वित्त मंत्री सिंबा मकोनी ने आर्थिक संकट काबू से बाहर जाने की बात स्वीकारी. उन्होंने कहा कि विदेशी मुद्रा कोष समाप्त हो गया है और खाने-पीने की चीजों की कीमतें बेतहाशा बढ़ सकती हैं. राष्ट्रपति मुगाबे के जमीन दखल कार्यक्रम से नाराज विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अधिकतर पश्चिमी धनदाताओं ने सहयोग में कटौती कर दी.
2002 (फरवरी)- संसद द्वारा मीडिया की आजादी में कमी. यूरोपीय संघ का आर्थिक प्रतिबंध.
2002 (मार्च)- मुगाबे राष्ट्रपति पद पर फिर से निर्वाचित. चुनाव में भारी गड़बड़ी के आरोप.
2002- अप्रैल में खाने-पीने की चीजों की भारी कमी के दौरान आपद-काल घोषित. जून तक संसदीय कानून के तहत करीब तीन हजार श्वेत किसानों ने अपनी जमीनें छोड़ीं.
2003- मार्च से जून तक बड़े पैमाने पर मुगाबे-विरोधी प्रदर्शन. इसी साल अपने निलंबन को वापस नहीं लेने पर कॉमनवेल्थ से जिंबाब्वे बाहर आ गया.
2005 (मार्च)- मुगाबे की पार्टी को विवादित चुनाव में दो-तिहाई संसदीय बहुमत. उसी साल शहरी स्वच्छता अभियान के तहत कार्रवाई में सात लाख से अधिक लोग बेघर कर दिये गये.
2006- अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट और मुद्रास्फीति आसमान पर पहुंची.
2008- राष्ट्रपति चुनाव में मुगाबे पर धांधली के आरोप. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जिंबाब्वे पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर रूस और चीन का वीटो.
2009 (अक्टूबर)- मुगाबे ने पश्चिमी देशों से संबंध सुधारने की वकालत की.
2010- विदेशी कंपनियों के अधिकांश शेयर स्थानीय लोगों को देने का कानून पारित. हीरों के अधिकृत व्यापार को मंजूरी मिली.
2011- यूरोपीय संघ ने मुगाबे के 35 समर्थकों की जब्त संपत्ति से प्रतिबंध हटाया. अगले साल भी कई ऐसे प्रतिबंध हटाये गये.
2013- मार्च में जनमत-संग्रह कर भावी राष्ट्रपतियों के कार्यकाल को दो पंचवर्षीय कार्यकाल तक सीमित करने का प्रस्ताव पारित. इसी साल जुलाई में मुगाबे फिर से राष्ट्रपति चुने गये और उनकी पार्टी को चीन-चौथाई सीटें मिलीं.
2014- मुगाबे की पत्नी ग्रेस मुगाबे का नाम पार्टी की महिला विंग की प्रमुख पद के लिए प्रस्तावित. इसी साल दिसंबर में मुगाबे ने उपराष्ट्रपति जॉयस मुजुरु और सात मंत्रियों को उनकी हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में हटा दिया.
2015- राष्ट्रपति मुगाबे एक साल के लिए अफ्रीकी संघ के प्रमुख बने.
2017 (अप्रैल)- मुगाबे के प्रमुख विरोधियों- मॉर्गन तस्वांगिराइ और मुजुरु- के बीच समझौता.
2017 (नवंबर)- मुगाबे ने उपराष्ट्रपति मननगाग्वा को हटाया, पर उनकी ओर से सेना ने दखल दिया और राष्ट्रपति से पद छोड़ने को कहा. मुगाबे के नहीं मानने पर उनकी पार्टी ने उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया और संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया, लेकिन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान ही मुगाबे के इस्तीफे की खबर आ गयी.

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