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वर्कलेस फ्यूचर की आहट कामकाजी वर्ग के लिए चुनौती है ऑटोमेशन!

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भविष्य की आशंकाओं के बारे में जब हम बात करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि नयी पीढ़ी के लोग शायद एक नये किस्म की दुनिया गढ़ सकते हैं. तकनीकी विकास के दौर में चीजें जिस तरीके से बदल रही हैं, उसमें यह कहना मुश्किल है कि 21वीं सदी में पैदा हुई पीढ़ी कैसी […]

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भविष्य की आशंकाओं के बारे में जब हम बात करते हैं, तो ऐसा महसूस होता है कि नयी पीढ़ी के लोग शायद एक नये किस्म की दुनिया गढ़ सकते हैं. तकनीकी विकास के दौर में चीजें जिस तरीके से बदल रही हैं, उसमें यह कहना मुश्किल है कि 21वीं सदी में पैदा हुई पीढ़ी कैसी दुनिया का निर्माण करेगी?
क्या ऑटोमेशन समाज पर इतना ज्यादा हावी हो जायेगा कि इससे चहुंओर निराशा का माहौल होगा? आबादी के एक उल्लेखनीय हिस्से को जब यदि आवश्यक रूप से रोजगार दिलाने के लिए यह जरूरी बन जाये, तो क्या हम अपने स्थापित मूल्यों को कायम रखने में सक्षम होंगे? भविष्य के गर्त में छिपे ऐसे ही कुछ मसलों को टटोलने का प्रयास कर रहा है आज का साइंस टेक्नोलॉजी पेज …
उड़नेवाली कारों, कैशलेस स्टोर्स और डिलीवरी ड्रोन जैसी चीजें धीरे-धीरे वास्तविकता के धरातल पर उतर रही हैं. सुनने में ये बातें आज हमें भले ही फैंटेसी लग रही हो, लेकिन वास्तव में इस चुनौती से कई लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर असर हो रहा है. अनेक देशों में विनिर्माण से जुड़े उद्योगों के अलावा बैंकिंग सेक्टर में कैशियर और रिटेल स्टोर में अनेक नौकरियां इसकी चपेट में आ चुकी हैं.
21वीं सदी के आरंभ से अमेरिकी अर्थव्यवस्था में प्रत्येक वर्ष औसतन आठ लाख नौकरियां बढ़ी हैं. इसमें उबर, गूगल, एप्पल और टेसला जैसी कंपनियों का बड़ा योगदान रहा है, जिन्होंने कम खर्चीली तकनीकों के जरिये इसे अंजाम दिया है.
आधी नौकरियों पर खतरा
वर्ल्ड इकोनोमिक फॉरम के एजेंडा प्लेटफार्म प्रोजेक्ट्स में यह आशंका जतायी गयी है कि ऑटोमेशन के कारण दुनियाभर में अगले दो दशकों में करीब आधी नौकरियों खत्म हो सकती हैं.
हालांकि, पहले के अध्ययनों के अाधार पर सांत्वना के रूप में यह कहा जा सकता है कि मौजूदा नौकरियाें पर भले ही संकट के बादल मंडरा रहे हों, लेकिन इससे नये मौके पैदा होने की गुंजाइश बढ़ेगी. लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि तब तक समय बदल चुका होगा. यदि ये अनुमान सच हुए और वाकई में हम वर्कलेस फ्यूचर यानी रोजगारविहीन भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, तो अब वह समय आ चुका है कि हम इस बारे में नीतियों के संशोधन पर चर्चा करें और इसके लिए तैयारी शुरू कर दें.
जाॅबलेस भविष्य की ओर
इसमें सबसे ज्वलंत और आजकल चर्चित सवाल यह है कि कोई इनसान कैसे अपनी मदद कर सकता है, जब वह स्वयं कामकाजी होने की उम्मीद नहीं करे.
अनकंडीशनल बेसिक इनकम यानी शर्तरहित मूलभूत आमदनी का कॉन्सेप्ट लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ के टिप्पणीकार डेविड इग्नेटियस अपनी रिपोर्ट में बताते हैं कि आज जरूरत इस बात की है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम के जरिये सभी परिवारों को गारंटीशुदा आर्थिक सुरक्षा मुहैया कराने के मसले पर राजनीतिक चर्चा होनी चाहिए.
आर्थिक प्रणाली में नये मोड़
यह आदर्श नीतिगत प्रस्ताव वेलफेयर जैसे मसले से अक्सर विरोधाभासी है. इस पूरे मसले में समस्या यह है कि मौजूदा परिस्थितियों को संबंधित चीजों के साथ ढाल दिया गया है, जहां नीतियों को कुछ इस तरीके से तैयार किया गया, जिसमें इनसान को कुछ नहीं करना होगा. इस तरह के हालातों के उभरने से हमारे आर्थिक सिस्टम में गंभीर रूप से नये मोड़ आने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता.
यूनिवर्सल बेसिक इनकम
कुछ संदर्भों में यूनिवर्सल बेसिक इनकम का विचार थोड़ा रेडिकल लग रहा हो, लेकिन कुछ खास सामाजिक समस्याओं के लिए यह आसान तकनीकी समाधान है. मान लीजिये कि यदि हमें काम नहीं करना पड़े, और एक नये वैल्यू सिस्टम में, जहां बेरोजगारी कलंक नहीं रहे, तो ऐसे सामाजिक माहौल की कल्पना करना भी बहुत मुश्किल है.
समाज में ऐसे नॉर्म्स अपनाये जायें, जहां किसी के व्यक्तिगत योगदान का इकोनॉमिक आउटपुट से कोई संबंध न रहे, तो विविध स्तरों पर इससे एक नयी चुनौती उभरकर सामने आयेगी. इन सभी चीजों से निपटने के लिए पहले नीतिगत रूप से अनेक बदलाव करने होंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम इन्हीं में शामिल एक समाधान के रूप में है.
विशेषज्ञ की राय
बिग डाटा और मशीन लर्निंग के माध्यम से दुनियाभर में ऑटोमेशन को ज्यादा-से-ज्यादा सेक्टर में मुमकिन बनाने में बड़ी भूमिका होगी.
इस संदर्भ में सबसे बड़ी समस्या होगी कि ट्रक ड्राइवरों, अकाउंटेंट्स, फैक्टरी में काम करने वाले कामगारों और ऑफिस क्लर्क का काम रोबोट के जरिये होने से इन लोगों को कैसे सार्थक रोजगार मुहैया कराया जा सकेगा. ऐसे में नेताओं को नीतियों में बदलाव के बारे में अभी से कुछ सोचना और करना होगा, ताकि लाखों लोगों के रोजगार पर मंडरा रहे संकट का समाधान तलाशा जा सके.
– डेविड इग्नेटियस, टिप्पणीकार, वॉशिंगटन पोस्ट.
दुनियाभर में रोबोट मानवीय कामगार को रिप्लेस कर रहा है. प्रत्येक 10,000 कामगारों के अनुपात में यह घनत्व अमेरिका के मुकाबले जापान और जर्मनी में ज्यादा है. इसमें क्लर्क और असेंबली लाइन वर्कर जैसे मध्यम कुशलता वाले कर्मचारियों की संख्या अधिक है, जिन्हें सबसे पहले रिप्लेस किया जा रहा है.
– प्रवक्ता, व्हाइट हाउस काउंसिल ऑफ इकोनॉमिक एडवाइजर्स.
भारत और चीन में होगा अधिक संकट
मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के बाद अब सर्विस सेक्टर में भी रोबोट से काम लिया जायेगा. सिटी यूनियन बैंक की रोबोट ‘लक्ष्मी’ और एचडीएफसी बैंक की रोबोट ‘इरा’ से इसकी शुरुआत हो चुकी है. पहले जहां कोई कर्मचारी काम करता था, उसकी जगह अब ये रोबोट काम करते हैं. ये सब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की ही देन है. हाल के वर्षों में इसका साइड इफैक्ट ये हुआ कि कभी सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाले बैंकिंग सेक्टर में भी नौकरियों का संकट पैदा होता जा रहा है.
कार्यकुशलता बढ़ाने पर जोर :
ऐसा नहीं है कि ऑटोमेशन के सिर्फ नकारात्मक परिणाम हैं. कंपनियों ने इन तकनीकों के इस्तेमाल से अपने लागत में भारी कटौती की है. साथ ही इससे कार्यकुशलता बढ़ाने में भी मदद मिली है. लेकिन इसने सबसे बड़ा खतरा पैदा किया है नौकरियों पर खासकर उन नौकरियों पर, जिसका काम ये रोबोट या मशीन कर सकती हैं.
विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ऑटोमेशन के कारण भारत में 69 फीसदी और चीन में 77 फीसदी रोजगार पर संकट मंडरा रहा है. विश्व बैंक का कहना है कि चूंकि अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए हम बुनियादी ढांचे में निवेश को निरंतर प्रोत्साहित कर रहे हैं, ऐसे में हमें यह सोचना होगा कि विभिन्न देशों को भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए किस प्रकार की ढांचागत सुविधाओं की जरूरत है.

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