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शिक्षा व्यवस्था में तय हो सबकी जवाबदेही

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विचार : बिहार-झारखंड में ठोस पहल का अभाव प्रो आशुतोष कुमार पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ बिहार बोर्ड के परीक्षा परिणाम जिस तरह से निराशाजनक रहे हैं, उसका सबसे पहला कारण तो मुझे यही लग रहा है कि पिछले साल नकल की खबरों से इस बार स्कूल प्रशासन सख्त हुआ और नकल कम हुए, जिसके बारे में […]

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विचार : बिहार-झारखंड में ठोस पहल का अभाव
प्रो आशुतोष कुमार
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
बिहार बोर्ड के परीक्षा परिणाम जिस तरह से निराशाजनक रहे हैं, उसका सबसे पहला कारण तो मुझे यही लग रहा है कि पिछले साल नकल की खबरों से इस बार स्कूल प्रशासन सख्त हुआ और नकल कम हुए, जिसके बारे में बच्चों ने सोचा ही नहीं होगा. दरअसल, लाेग यह सोचते थे कि नकल से तो पास हो ही जायेंगे, लेकिन थोड़ी सी सख्ती ने परीक्षा परिणाम ही बिगाड़ दिया.
हालांकि, अभी शिक्षा में जो सुधार एक राज्य सरकार को करना चाहिए, वह होता हुआ नहीं दिख रहा है. सरकारें सिर्फ वादा करती हैं और फिर भूल जाती हैं कि उन्होंने क्या कहा था. यही हाल कमोबेश झारखंड का भी है, जहां शिक्षा को लेकर कोई ठोस पहल नहीं दिखती है, ताकि बच्चों के शैक्षणिक भविष्य को बेहतर बनाया जा सके. देश भर के सरकारी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था का हाल बहुत खराब है, उस पर बिहार-झारखंड की हालत तो और भी खराब है. बिहार सरकार शिक्षा मित्रों को लेकर आयी तो सही, लेकिन उसमें फिर अकुशल शिक्षकों की फौज चली आयी. अब वे खुद ही इतने प्रशिक्षित नहीं हैं, तो वे बच्चों को क्या शिक्षित करेंगे. सरकार को चाहिए कि कुशल और प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्तियां करें और स्कूलों के आधारभूत ढांचों को मजबूत करें, ताकि बच्चों को किसी चीज की कमी न खले. बदलता बिहार का नारा तो दिया गया, लेकिन शिक्षा में कोई सुधार नहीं किया गया.
प्राथमिक शिक्षा की हालत जब तक ठीक नहीं की जायेगी, उसके बाद की कक्षाओं की स्थिति नहीं सुधर सकती. सरकारी शिक्षकों का आलम यह है कि इनकी लॉबिंग चलती है और चुनावों के समय ये इस कदर सक्रिय हो जाते हैं कि इनसे कोई आम नागरिक पंगा भी नहीं ले सकता. राजनीतिक तौर पर इस तरह की शिक्षा व्यवस्था से हम किसी भी तरह से बेहतरीन परीक्षा परिणाम की उम्मीद नहीं कर सकते. भ्रष्टाचार तो इस कदर है कि एक चालीस साल का लड़का अपनी उम्र घटा कर दाखिला लेता है, उसको कुछ नहीं आता है, फिर भी वह टॉप कर जाता है. और इससे भी बड़ी बात यह है कि यह दूसरी बार हुआ है. इसका सीधा अर्थ यह है कि शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हुआ है और अब भी शिक्षा को लेकर सरकारों में कोई जवाबदेही नहीं दिख रही है.
ऐसी स्थिति में सबसे पहले जवाबदेही तय होनी चाहिए और यह शीर्ष से लेकर निचले स्तर पर काम कर रहे लोगों की जवाबदेही तय होनी चाहिए. ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि अगर आगे से ऐसा होता है- मसलन, नकल होता है या फिर कोई फर्जी तरीके से टॉप कर जाता है, तो उस पर कार्रवाई में जवाबदेह लोगों को अपनी जिम्मेवारी लेते हुए जाना चाहिए. बिहार के लोग आज हर क्षेत्र में अच्छा कर रहे हैं और देश भर में नाम कमा रहे हैं. शिक्षा व्यवस्था अगर नहीं सुधरी, तो उनके ऊपर भी दबाव बनेगा और उनका नाम खराब होगा. सरकार का यह काम है कि वह अपनी व्यवस्था में जिम्मेवारी को अहमियत दे, ताकि व्यवस्था की खामियों को दूर किया जा सके. सिर्फ सरकारें ही नहीं, हम सबकी भी जिम्मेवारी होनी चाहिए कि हम अपने बच्चों के भविष्य को लेकर सोचें और उन्हें नकल जैसी चीजों से दूर रहने की सलाह दें.

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