27.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 02:16 pm
27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

सियासत और सरकार ने ‘आप’ को कितना बदला

Advertisement

Kevin Doyle Phnom Penh आम आदमी पार्टी की सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं. सरकार द्वारा अपनी उपलब्धियों के बखान और विपक्ष द्वारा उसे पूरी तरह निकम्मा ठहराने की रस्म पूरी की जा चुकी है. ऐसे मौक़ों पर कभी-कभी ये सोचकर हैरानी हो सकती है कि एक ही चीज़ के बारे दोनों दावे […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

Undefined
सियासत और सरकार ने 'आप' को कितना बदला 6

आम आदमी पार्टी की सरकार के दो साल पूरे हो चुके हैं. सरकार द्वारा अपनी उपलब्धियों के बखान और विपक्ष द्वारा उसे पूरी तरह निकम्मा ठहराने की रस्म पूरी की जा चुकी है. ऐसे मौक़ों पर कभी-कभी ये सोचकर हैरानी हो सकती है कि एक ही चीज़ के बारे दोनों दावे एक दूसरे के बिलकुल उलट कैसे हो सकते हैं.

क्या मोहल्ला क्लीनिक एक दिलचस्प प्रयोग नहीं, अगर पूरी तरह कामयाब न हो तो भी? क्या स्कूलों को लेकर जैसा भी सही, किसी और सरकार ने इतना सोचने की कोशिश भी की थी? या कम से कम यह न कहा जाना चाहिए था? क्या स्वास्थ्य और शिक्षा को किसी और ने इतनी तरजीह कभी दी थी?

कार्टून: दो-दो करते केजरीवाल के दो साल

केजरीवाल के दो साल, क्या कुछ हुआ कमाल

मोदी-शाह के किले को ढहा पाएंगे केजरीवाल?

Undefined
सियासत और सरकार ने 'आप' को कितना बदला 7

राहुल और मोदी के लिए मुश्किल चुनौती हैं केजरीवाल

संसदीय लोकतंत्र

आख़िर इस सरकार ने निजी विद्यालयों को कहा तो कि वे अपने पड़ोस के बच्चों का दाख़िला करें, यह बात अलग है कि उच्चतम न्यायालय को यह सिद्धांत क़ायल न कर सका! क्या इन सबकी आलोचनात्मक सराहना नहीं की जा सकती थी? क्या यह न कहा जाए कि बेघरों के लिए यह सरकार अलग से सोचने की कोशिश कर रही है?

क्या राहुल गांधी के लिए यह कुछ अधिक होता कि वे आगे बढ़कर अरविंद केजरीवाल को बधाई देने चले जाते! साथ एक कप चाय पीकर बताते कि उन्हें क्या अच्छा लगा, क्या नहीं, और वे क्या चाहते हैं! लेकिन संसदीय जनतंत्र में प्रतिद्वंद्वी से संसदीय सभ्याचार की उम्मीद खामख्याली है!

मोदी, अखिलेश का नया SCAM: A फोर…

ड्रग्स के आगे हवा हुए पंजाब में बाकी चुनावी मुद्दे!

अरविन्द केजरीवाल क्या ‘ख़तरनाक खेल’ खेल रहे हैं?

Undefined
सियासत और सरकार ने 'आप' को कितना बदला 8

रायशुमारी

आम आदमी पार्टी ने भी आख़िर यह दिखा दिया कि दूसरों से अलग होने का दावा सिर्फ़ दावा होता है. संसदीय जनतंत्र में आचरण आख़िर एक होता है, ज़ुबान भी एक. पूरे पूरे पृष्ठ के अपनी पीठ ठोंकनेवाले विज्ञापन की जगह सरकार चाहती तो अपने काम पर चर्चा का कोई और तरीक़ा निकाल सकती थी.

जैसे, मोहल्ला संवाद, या लोगों से ही अपने कामकाज पर राय लेना. आख़िर रायशुमारी में तो वह माहिर है! लेकिन यह सब न हुआ. शायद हम भारत के हम लोग, जो है, उससे बेहतर के लायक नहीं! इन दो सालों में हमने आम आदमी पार्टी के बारे में जितना जाना, उससे कहीं ज़्यादा उससे ताक़तवर प्रतिद्वंद्वी के बारे में!

जिसके घर केजरीवाल के रुकने पर हुआ बवाल

उत्तर प्रदेश से क्यों दूर है आप?

मोदी जी बिल्कुल पगला गए हैं: केजरीवाल

Undefined
सियासत और सरकार ने 'आप' को कितना बदला 9

चुनाव अभियान

बल्कि यह कि संसदीय जनतंत्र में प्रतिद्वंद्वी नहीं, एक दूसरे के विरोधी ही हो सकते हैं. और यह भी, जनता के अस्वीकार को अपनी दबंगई के ज़रिए नाकाम किया जा सकता है. इसीलिए ये दो साल दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार से ज़्यादा उसपर हमले के साल के तौर पर जाने जाएंगे.

जिस चुनाव के माध्यम से पार्टी सत्ता में आई थी, उस चुनाव के अभियान को आतंक-अभियान में बदल देने वाले प्रधानमंत्री की सरकार ने तय कर लिया कि दिल्ली सरकार का एक दिन भी चैन से नहीं निकलने देना है. दिल्ली को जनता को इसकी सज़ा आख़िर कैसे न मिलती कि उसने खुदा की आवाज़ सुनने से इनकार कर दिया!

केजरीवाल बुज़दिल है: अमरिंदर सिंह

‘केजरी पंजाब में चेहरा तो दिल्ली का सीएम कौन’

मोदी के ट्वीट पर बोले केजरी ‘मेरे पास भी माँ है’

Undefined
सियासत और सरकार ने 'आप' को कितना बदला 10

केजरीवाल ने मोदी को बनारस में दी थी चुनौती

पार्टी का सरकारीकरण

बार-बार जनता और उसकी सरकार को उसकी औक़ात बताई गई. जनता के मतों से ज़्यादा एक नामित प्रशासक की ताक़त ज़्यादा होती है, यह इसी प्रधानमंत्री की सरकार बता सकती थी! दिल्ली में आम आदमी पार्टी को लेकर जनता का जोश लेकिन सिर्फ़ एक क़ाबिल सरकार के लिए न था.

वह राजनीति के एक नए मुहावरे की खोज में इस पार्टी तक पहुँची थी और दोनों हाथों उलीच कर वोट नहीं, मुहब्बत दे डाली थी. यहाँ निराशा हाथ लगी. दिखलाई पड़ा कि आम आदमी पार्टी की पूरी राजनीति अंततः सरकार तक ही सिमट कर रह गई. सरकार बनते ही पूरी पार्टी का सरकारीकरण हो गया मानो!

ट्विटर पर फिर भिड़े अमरिंदर और केजरीवाल

पंजाब में दिल्ली जैसी जीत दोहरा सकेगी ‘आप’?

गाने पर कोई हंसे तो हम क्या करें: मनोज तिवारी

भ्रष्टाचार

ख़ुद को रोज़मर्रेपन के तंग दायरे में क़ैद करके आम आदमी पार्टी ने बता दिया कि जन आंदोलन माध्यम ही था, पार्टी का स्वभाव नहीं. जिन लोगों ने सोचा था कि यह पार्टी भारत की सड़ रही संसदीय राजनीति में पलीता लगा देगी, उन्होंने पाया कि यह भी उसी के रंग में रंग गई.

यह भी उस पार्टी के समर्थकों को एक बार यह सोचना पड़ेगा कि आम आदमी पार्टी जिस तिरंगे को लहराते हुए भ्रष्टाचार का सफ़ाया करने के नारे के साथ धूमकेतु की तरह प्रकट हुई थी, वह तिरंगा आज किसके हाथ है और भ्रष्टाचार विरोध या निरोध का योद्धा कौन है! और क्या महज इत्तेफ़ाक़ है, या दोनों के बीच कोई रिश्ता है?

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें