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VIDEO: गिरिडीह के दंगल में कौन भारी… मथुरा, सीपी या जयराम, तीनों में कौन मरेगा बाजी?

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गिरिडीह लोकसभा सीट का गठन संयुक्त बिहार में 1957 में हुआ था. यहां देश में हुए दूसरी लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे. 1957 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में गिरिडीह लोकसभा सीट से छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी काजी एसए मतीन विजय हुए थे.

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रत्नगर्भा गिरिडीह का धार्मिक और पौराणिक महत्व रहा है. यह निर्वाण की भूमि है. पहाड़-जंगलों से घिरे इस सुंदरवादी में शांति और एकाग्रता की भूमि रही है. पारसनाथ की चोटी पर समवेत शिखरजी का इतिहास दो हजार वर्ष पुराना है. जैन के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने इस स्थान पर समाधि या ध्यान केंद्रित एकाग्रता के माध्यम से निर्वाण प्राप्त किया. इस क्षेत्र में मुगलों की नजर रही और 1556 ईस्वी में सम्राट अकबर ने झारखंड के क्षेत्रों पर ताजपोशी की. आजादी के बाद वैभव से भरे गिरिडीह का रफ्ता-रफ्ता विकास हुआ. गिरिडीह राज्य बिहार के हजारीबाग जिले का हिस्सा बन गया। वर्ष 1972 में मौजूदा हजारीबाग जिले से गिरिडीह जिले के रूप में एक अलग जिला बनाया गया था। झारखंड अलग होने के बाद गिरिडीह की पहचान बढती गयी. बात गिरिडीह लोकसभा के सियासी कहानी की करें, तो गिरिडीह लोकसभा सीट का गठन संयुक्त बिहार में 1957 में हुआ था. यहां देश में हुए दूसरी लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे. 1957 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में गिरिडीह लोकसभा सीट से छोटा नागपुर संथाल परगना जनता पार्टी काजी एसए मतीन विजय हुए थे. वर्ष 1967 में कांग्रेस ने पहली बार इम्तेयाज अहमद के सहारे खाता खोला और बिहार के मुख्यमंत्री रहे बिंदेश्वरी दुबे भी इस सीट से चुनाव जीते. वर्ष 1989 रामदास सिंह ने भाजपा से पहली बार जीते, फिर यहां रवींद्र पांडेय ने भाजपा का खूंटा गाड़ा. वह रवींद्र पांडेय यह चुनाव पांच बार जीत चुके हैं. पिछले चुनाव यानि 2019 में यह सीट एनडीए गठबंधन के तहत आजसू को चली गयी और इस सीट से चंद्रप्रकाश चौधरी चुनाव जीते. वर्तमान लोकसभा चुनाव में भी यह सीट आजसू के खाते में है और आजसू ने पुराने चेहरे चंद्रप्रकाश को ही मौका दिया है. इनके सामने झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो हैं.वहीं झारखंड की राजनीति में उभरे नये चेहरे और बेबाक छवि, झारखंडी मूल की बात करने वाले जयराम महतो भी चुनावी मैदान में हैं. गिरिडीह का मुकाबला रोचक होने वाला है.

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