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Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

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Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
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जब राजा दशरथ के आंगन में गूंजीं राम की किलकारियां, पढ़ें ‘रामचरित मानस’ में तुलसीदासजी का वर्णन

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Ram Charit Manas: वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना संस्कृत में की है. वहीं तुलसीदास द्वारा अवधि भाषा में रामचरितमानस लिखी गई. ये दोनों ही ग्रंथ भगवान श्री राम की भक्ति से ओतप्रोत हैं. हम सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं कि प्रभु श्री राम के समय में अयोध्या नगरी कैसी रही होगी. आइए जानते हैं...

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Ram Charit Manas: अवधपुरी में रघुकुल शिरोमणि राजा दशरथ का नाम वेदों में विख्यात है. राजा दशरथ धर्म-धुरन्धर और गुणों के भण्डार व ज्ञानी थे. राजा दशरथ के हृदय में शार्ङ्गधनुष धारण करने वाले भगवान की भक्ति थी, और उनकी बुद्धि भी उन्हीं में लगी रहती थी. उनकी कौसल्या आदि प्रिय रानियां सभी पवित्र आचरणवाली थीं. वे बड़ी विनीत और पति के हिसाब से ही चलने वाली थीं. एक बार राजा के मन में बड़ी ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नहीं है. राजा गुरु के घर गए और उनके चरणों में प्रणाम कर अपना सारा दुख-सुख बताया. गुरु वसिष्ठ जी ने उन्हें समझाया और कहा कि तुम्हारे चार पुत्र होंगे, जो तीनों लोकों में प्रसिद्ध और भक्तों के भय को हरने वाले होंगे. तब वसिष्ठ जी ने शृङ्गी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्र कामेष्टि यज्ञ कराया. मुनि के भक्ति सहित आहुतियां देने पर अग्निदेव हाथ में खीर लिए प्रकट हुए और वे दशरथ से बोले वसिष्ठ ने हृदय में जो कुछ विचारा था, तुम्हारा वह सब काम सिद्ध हो गया. हे राजन! अब तुम जाकर इस खीर को, जिसको जैसा उचित हो, वैसा भाग बनाकर बांट दो.

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अग्निदेव समझाकर अन्तर्धान हो गए. राजा परमानन्द में मग्न हो गए, उनके हृदय में हर्ष समाता न था. उसी समय राजा ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया. कौसल्या आदि सब रानियां वहां चली आयीं. राजा ने आधा भाग कौसल्या को दिया और शेष आधे के दो भाग किए. इसमें से एक भाग राजा ने कैकेयी को दिया. शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग हुए और राजा ने उनको कौसल्या और कैकेयी के हाथ पर रखकर अर्थात् उनकी अनुमति लेकर सुमित्रा को दिया. इस प्रकार सब स्त्रियां गर्भवती हुईं. वे हृदय में बहुत हर्षित हुईं. उन्हें बड़ा सुख मिला. जिस दिन से श्रीहरि गर्भ में आए, सब लोकों में सुख और सम्पत्ति छा गई. शोभा, शील और तेज की खान बनी हुईं सब रानियां महल में सुशोभित हुईं.

कुछ समय बीता और वह अवसर आ गया जिसमें प्रभु को प्रकट होना था. योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए. जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए. पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी. शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित मुहूर्त था. दोपहर का समय था. न बहुत सर्दी थी, न धूप थी. वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देने वाला था. शीतल, मंद और सुगंधित पवन बह रही थी. देवता हर्षित थे और संतों के मन में बड़ा चाव था. वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियां अमृत की धारा बहा रही थीं. जब ब्रह्माजी ने भगवान के प्रकट होने का अवसर जाना तब वे और सारे देवता विमान सजा-सजाकर चले. निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया.

आकाश में घमाघम नगाड़े बजने लगे. नाग, मुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपने-अपने उपहार भेंट करने लगे. देवताओं के समूह विनती करके अपने-अपने लोक में जा पहुंचे. समस्त लोकों को शान्ति देने वाले, जगदाधार प्रभु प्रकट हुए. दीनों पर दया करने वाले, कौसल्याजी के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए. मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हर्ष से भर गईं. नेत्रों को आनंद देने वाला मेघ के समान श्याम शरीर था. चारों भुजाओं में अपने खास आयुध थे. आभूषण और वनमाला पहने थे. बड़े-बड़े नेत्र थे. इस प्रकार शोभा के समुद्र तथा खर राक्षस को मारने वाले भगवान प्रकट हुए. दोनों हाथ जोड़कर माता कहने लगीं- हे अनन्त! मैं किस प्रकार तुम्हारी स्तुति करूं. वेद और पुराण तुमको माया, गुण और ज्ञान से परे और परिमाणरहित बतलाते हैं. श्रुतियां और संतजन दया और सुख का समुद्र, सब गुणों का धाम कहकर जिनका गान करते हैं, वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए प्रकट हुए हैं.

राजा दशरथ जी पुत्र का जन्म कानों से सुनकर मानो ब्रह्मानन्द में समा गए. मन में अतिशय प्रेम है, शरीर पुलकित हो गया. आनंद में अधीर हुई बुद्धि को धीरज देकर और प्रेम में शिथिल हुए शरीर को संभालकर वे उठना चाहते हैं. जिनका नाम सुनने से ही कल्याण होता है, वही प्रभु मेरे घर आए हैं, यह सोचकर राजा का मन परम आनंद से पूर्ण हो गया. गुरु वसिष्ठजी के पास बुलावा गया. वे ब्राह्मणों को साथ लिए राजद्वार पर आए. उन्होंने जाकर अनुपम बालक को देखा, जो रूप की राशि है और जिसके गुण कहने से समाप्त नहीं होते. फिर राजा ने सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और ब्राह्मणों को सोना, गौ, वस्त्र और मणियों का दान दिया. राजा ने हर किसी को भरपूर दान दिया. जिसने पाया उसने भी नहीं रखा और लुटा दिया. घर-घर मंगलमय बधाई गीत बजने लगे.

कैकेयी और सुमित्रा ने भी सुंदर पुत्रों को जन्म दिया. उस सुख, सम्पत्ति, समय और समाज का वर्णन सरस्वती और सर्पों के राजा शेषजी भी नहीं कर सकते. अवधपुरी इस प्रकार सुशोभित हो रही है, मानो रात्रि प्रभु से मिलने आई हो और सूर्य को देखकर मानो मन में सकुचा गई हो, परंतु फिर भी मन में विचारकर वह मानो सन्ध्या बन कर रह गई हो. यह कौतुक देखकर सूर्य भी अपनी चाल भूल गए. एक महीना उन्हें वहीं बीत गया यानी महीने भर का दिन हो गया. इस रहस्य को कोई नहीं जानता. सूर्य अपने रथसहित वहीं रुक गए, फिर रात किस तरह होती. सूर्यदेव भगवान श्री राम जी का गुणगान करते हुए चले. यह महोत्सव देखकर देवता, मुनि और नाग अपने भाग्य की सराहना करते हुए अपने-अपने घर चले. उस अवसर पर जो जिस प्रकार आया और जिसके मन को जो अच्छा लगा, राजा ने उसे वही दिया. हाथी, रथ, घोड़े, सोना, गायें, हीरे और भांति-भांति के वस्त्र देकर राजा ने सबके मन को संतुष्ट किया.

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जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी।।

सो सुखधाम राम अस नामा। अखिल लोक दायक बिश्रामा।।

इस प्रकार कुछ दिन बीत गए. दिन और रात जाते हुए जान नहीं पड़ते. तब नामकरण- संस्कार का समय जानकर राजा ने ज्ञानी मुनि श्री वसिष्ठ जी को बुला भेजा. मुनि की पूजा करके राजा ने कहा- हे मुनि! आपने मन में जो विचार रखे हों, वे नाम रखिये. मुनि ने कहा-हे राजन्! इनके अनेक अनुपम नाम हैं, फिर भी मैं अपनी बुद्धि के अनुसार कहूंगा. ये जो आनंद के समुद्र और सुख की राशि हैं, जिस आनंद सिंधु के एक कण से तीनों लोक सुखी होते हैं, उनका नाम ‘राम’ है, जो सुख का भवन और संपूर्ण लोकों को शांति देने वाला है. जो संसार का भरण-पोषण करते हैं. आपके दूसरे पुत्र का नाम ‘भरत’ होगा. जिनके स्मरण मात्र से शत्रु का नाश होता है, उनका वेदों में प्रसिद्ध ‘शत्रुघ्न’ नाम है और जो शुभ लक्षणों के धाम, श्रीरामजी के प्यारे और सारे जगत के आधार हैं, गुरु वसिष्ठ जी ने उनका ‘लक्ष्मण’ ऐसा श्रेष्ठ नाम रखा. गुरुजी ने हृदय में विचारकर ये नाम रखे और कहा कि हे राजन्! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्व हैं.

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