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हिंदी सिनेमा में समय -समय पर ज़िन्दगी की दूसरी पारी पर फिल्मे बनती रहती हैं.सारांश,बाग़बान,102 नॉट आउट जैसी फिल्में इसका उदाहरण रही हैं.राजश्री बैनर ज़िन्दगी की इस दूसरी पारी की एक अलग कहानी को फ़िल्म ऊंचाई से लेकर आए हैं.जो सिर्फ इमोशन से नहीं बल्कि एडवेंचरस से भी भरी है.

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फ़िल्म – ऊंचाई

निर्माता-राजश्री फिल्म्स

निर्देशक-सूरज बड़जात्या

कलाकार-अमिताभ बच्चन,परिणीति,डैनी डेन्जोंगपा, अनुपम खेर,बोमन ईरानी,सारिका,नीना गुप्ता और अन्य

प्लेटफार्म-सिनेमाघर

रेटिंग- तीन

हिंदी सिनेमा में समय-समय पर जिंदगी की दूसरी पारी पर फिल्मे बनती रहती हैं. सारांश, बागबान, 102 नॉट आउट जैसी फिल्में इसका उदाहरण रही हैं. राजश्री बैनर जिंदगी की इस दूसरी पारी की एक अलग कहानी को फिल्म ऊंचाई से लेकर आए हैं, जो सिर्फ इमोशन से नहीं बल्कि एडवेंचरस से भी भरी है. जिसे बुजर्गों की जिंदगी मिलेगी ना दोबारा करार दिया जा सकता है. इसके लिए राजश्री बैनर की तारीफ बनती है कि उन्होंने 60 प्लस एक्टर्स को अपनी कहानी का चेहरा बनाया है. कहानी में कुछ खामियों के बावजूद दोस्ती की यह कहानी होठों पर मुस्कान बिखरेने के साथ-साथ आंखों को नम भी कर जाती है.

दोस्ती की इमोशनल कहानी

फ़िल्म की कहानी चार दोस्तों की हैं.जो ज़िन्दगी की दूसरी पारी को जी रहे हैं और साथ में अपनी दोस्ती को भी.इसी बीच एक दिन अचानक भूपेन (डैनी डेन्जोंगपा)की मौत हो जाती है. बाकी के तीन दोस्त अमित( अमिताभ बच्चन),ओम शर्मा(अनुपम खेर),जावेद सिद्दीकी(बोमन ईरानी) भूपेन की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए एवरेस्ट चढ़ने का फैसला करते हैं.वे उस जगह भूपेन की अस्थियां विसर्जित करना चाहते हैं,क्योंकि यही उसका आखिरी सपना था. एवेरेस्ट पर चढ़ना आसान नहीं है,वो भी इस उम्र में यह और भी मुश्किल है. तीनों दोस्त अलग -अलग तरह की शारीरिक परेशानियों के साथ -साथ ज़िन्दगी से जुड़े कुछ डर,अहंकार और भी कई चीजों से जूझ रहे हैं. ऐसे में किस तरह से वह भूपेन की अधूरी ख़्वाहिश को पूरा कर पाते हैं औऱ खुद को भी पाते हैं.इसी की कहानी ऊंचाई हैं.

मौजूदा दौर में राजश्री बैनर का चेहरा निर्देशक सूरज बड़जात्या ने प्रेम रतन धन पायो के साथ सात सालों बाद इस फ़िल्म से वापसी की है.आमतौर पर प्रेम कहानियां और पारिवारिक कहानियां कहने में माहिर सूरज बड़जात्या ने इस बार दोस्ती की इमोशनल और प्रेरणादायी कहानी को लेकर आए हैं. फ़िल्म को कहने का अंदाज़ सादगी से भरा है.पहले हाफ में कहानी को हल्के-फुल्के अंदाज़ में कहा गया है ,सेकेंड हाफ में कहानी इमोशनल हो गयी है. आमतौर पर परिवार को अपनी फिल्मों में महत्ता देने वाले सूरज की यह फ़िल्म इस बात पर फोकस करती है कि ज़िन्दगी की कुछ लड़ाइयां इंसान को अकेले ही लड़नी पड़ती है. उम्मीद और हौंसले की भी यह कहानी है.

यहां हो गयी चूक

फ़िल्म की लंबाई ज़्यादा हो गयी है.फ़िल्म को 25 से 30 मिनट तक आसानी से कम किया जा सकता था. कहानी के सब प्लॉट्स पर थोड़ा अधिकता दे दी गयी है खासकर अमिताभ बच्चन के किरदार का सब प्लॉट्स.उसके बिना भी कहानी और किरदार प्रभावी हो सकती है.फ़िल्म की लंबाई इसके प्रभाव को थोड़ा कम कर देती है.यह कहना गलत ना होगा. फ़िल्म के वीएफएक्स में कुछ दृश्यों में यह खामी साफतौर पर दिखती है कि उन्हें असल जगह पर शूट नहीं किया गया है.

यहां मामला जमा है खूब

यह एवेरेस्ट को फतेह करने की कहानी के साथ साथ रोड जर्नी भी है.ऐसे में फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी भी एक अहम किरदार बन जाता है .फ़िल्म में दिल्ली,आगरा,नेपाल की खूबसूरती को कहानी में दर्शाया है. फ़िल्म में रंगों का इस्तेमाल भी बखूबी हुआ है.फ़िल्म का कलर पैलेट पहले हाफ में काफी रंग-बिरंगा है जबकि सेकेंड हाफ में सफेद और हल्के ब्लू रंग पर फोकस किया गया है. फ़िल्म के गीत इरशाद कामिल और संगीत अमित त्रिवेदी का है.जो फ़िल्म की कहानी और किरदारों के साथ बखूबी न्याय करता है.

कमाल कर गए हैं कलाकार

इस फ़िल्म की स्टारकास्ट की बात करें तो अभिनय के कई दिग्गज नाम इस फ़िल्म का चेहरा है.जो परदे पर अपने अभिनय से हर बार एक छाप छोड़ जाते हैं.इस बार भी यही मामला देखने को मिला है.अमिताभ बच्चन,अनुपम खेर और बोमन ईरानी उम्दा रहे हैं.उनकी आपस की बॉन्डिंग भी पर्दे पर बेहतरीन ढंग से सामने आयी है. बोमन और नीना गुप्ता की केमिस्ट्री अच्छी बन पड़ी है.सारिका और परिणीति भी अपने किरदार में छाप छोड़ने में कामयाब रही हैं. डैनी अपनी छोटी भूमिका में याद रह जाते हैं.

देखें या ना देखें

फ़िल्म की लंबाई को अगर नज़रंदाज़ कर दें तो,दोस्ती की यह इमोशनल और प्रेरणादायी कहानी पूरे परिवार और दोस्तों के साथ देखी जानी चाहिए.

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