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बिहार : दरभंगा में महिलाएं भी नाव चलाने में दक्ष, कहा- हाथों की मजबूती व लग्गा पर भरोसा, पार कर लेंगे मझधार

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दरभंगा : बाढ़ के कहर से जिले के कई इलाकों को हर साल जूझना पड़ता है. हर वर्ष बाढ़ यहां के हजारों लोगों पर कहर ढाती है. प्रशासनिक और सरकारी पहल हमेशा नाकाफी साबित होती रही है. ऐसे में जिले के लोग स्वयं आगे बढ़ कर अपना इंतजाम करने लगे हैं.

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दरभंगा : बाढ़ के कहर से जिले के कई इलाकों को हर साल जूझना पड़ता है. हर वर्ष बाढ़ यहां के हजारों लोगों पर कहर ढाती है. प्रशासनिक और सरकारी पहल हमेशा नाकाफी साबित होती रही है. ऐसे में जिले के लोग स्वयं आगे बढ़ कर अपना इंतजाम करने लगे हैं.

दरभंगा जिले का कुशेश्वरस्थान इलाका ऐसा ही है. यहां भी बाढ़ का उपद्रव हर साल देखने को मिलता है. लेकिन, विपरीत परिस्थिति में यहां के लोग किस्मत का रोना नहीं रोते. यहां की महिलाएं भी पुरुषों के साथ-साथ कदम-कदम मिला कर आगे बढ़ रही हैं.

बाढ़ के मौसम में यहां उनका सहारा एकमात्र नाव ही होता है. यहां की अधिकतर महिलाएं नाव चलाने में दक्ष होती हैं. विपरीत परिस्थिति में वह किस्मत का रोना नहीं रोतीं. सरकार को कोसती हैं, कहती हैं- तुम्हारी नाव और नाविक तुम्हें मुबारक. हम समय के साथ दो-दो हाथ करने का सामर्थ्य रखते हैं.

बाढ़ के बाद तुम फर्जी बिल बना कर अपने मकान को एक मंजिल और ऊंचा कर लेना. लेकिन, हमें अपने हाथों की मजबूती पर विश्वास है. लग्गा (पतवार) पर भरोसा है. साल दर साल बाढ़ के समय विपरीत परिस्थिति में भी हंसते-हंसते जी लेते हैं. यह साल भी किसी तरह व्यतीत हो ही जायेगा. फिलहाल नाव खेकर ही सही मझधार पार हो लेने दो.

मालूम हो कि बरसात के मौसम में बारिश और बागमती के उफान से कई तटबंधों में रिसाव और टूटने की खबरें आती रहती हैं. ऐसे में बाढ़ का पानी गांवों में आने से चारो ओर जलजमाव हो जाते हैं. ऐसे में एकमात्र सहारा नाव ही होता है. पुरुषों के घर से प्रस्थान करने के बाद दिनचर्या के लिए नाव चलाने को लेकर महिलाएं कभी असमर्थता नहीं जताती. वे नाव लेकर स्वयं निकल पड़ती हैं. (रिपोर्ट : कमतौल से शिवेंद्र शर्मा)

Posted By : Kaushal Kishor

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