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Kanpur के इस मंदिर को लेकर अनोखी मान्यता, भक्त मन्नत पूरी करने के लिए देवी को चढ़ाते है ईंट और पत्थर…

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कानपुर के कल्यानपुर थाने के पास में माँ आशा देवी का मंदिर स्थापित है.यह मंदिर त्रेतायुग का है. इस मंदिर को लेकर अनोखी मान्यता है.यहां भक्त फल या भोग नहीं बल्कि ईंट पत्थर चढ़ाते हैं.

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कानपुर : कानपुर के कल्यानपुर थाने के पास में माँ आशा देवी का मंदिर स्थापित है.यह मंदिर त्रेतायुग का है. इस मंदिर को लेकर अनोखी मान्यता है.यहां भक्त फल या भोग नहीं बल्कि ईंट पत्थर चढ़ाते हैं.भक्तों का मानना है कि इससे माता खुश हो जाती हैं और उनकी मुरादें पूरी कर देती हैं.आशा दूज के दिन यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने जब माता सीता का त्याग किया था, तब वह बाल्मीकि आश्रम जाने से पहले यहांं रुककर माँ भगवती से प्रार्थना की थी. सीता माता ने यहां भगवान राम के लिए आश लगाई थी.

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खुली छत के नीचे होती है माँ की पूजा

भक्तों पर मां की महिमा अपरंपार है. मां आशा देवी मंदिर में जो भी निसंतान दंपत्ति आकर पूजा करते हैं उनकी मनोकामना साल भीतर माता रानी पूर्ण करती हैं. साथ ही जिन भक्तों का ख्वाब अपना मकान बनाने को होता है वह मां के दरबार में ईटों का मकान बनाकर मुराद मांगते हैं और साल भीतर उनकी मुराद पूरी हो जाती है.इस मंदिर की एक और महत्वपूर्ण बात लोगों को आश्चर्य चकित करती है कि मां आशा देवी खुले आसमान के नीचे बैठी हैं. इस मंदिर की छत डालने का कई बार प्रयास हुआ. लेकिन,छत नहीं ढल पाई. मुख्य मंदिर परिसर की छत पर आज भी कोई निर्माण नहीं किया गया है. मां खुले आसमान के नीचे रहकर भक्तों पर अपनी कृपा लुटाती हैं.

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नवरात्र के दिनों में मां के दर्शन को पहुंचते हैं हजारों भक्त

नवरात्र के दिनों में भक्त कच्ची आशय बनाकर यहां पर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की विनती करते हैं और मनोकामना पूर्ण हो जाने के बाद पक्की आशय मां को चढ़ाने आते हैं. कानपुर के कल्याणपुर क्षेत्र में आशा माता मंदिर को त्रेतायुग कालीन बताया जाता है. यहां नवरात्र पर हजारों भक्तों की भीड़ जुटती है. नवरात्र में भक्त मां से अपनी सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. नवरात्र के दिनों में मां आशा देवी मंदिर प्रांगण में मां आशा का विशाल मेला भी आयोजित होता है.

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