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जारी रहेगा शेयर बाजार में उछाल

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महामारी, भू-राजनीतिक संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध आदि की वजह से विकसित देशों में शेयर बाजार की हालत खस्ता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी नरमी बनी हुई है और कुछ देशों में मंदी के आसार बने हुए हैं, लेकिन इसके विपरीत भारतीय शेयर बाजार लगातार चमकीला होता जा रहा है.

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बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसइ) का सूचकांक 28 दिसंबर को अब तक के शीर्ष 72,484 पर पहुंच गया, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसइ) या निफ्टी भी उसी दिन अब तक के शीर्ष 21,801 पर चला गया. बीएसइ के 30 में से 22 कंपनियों के शेयरों में तेजी रही, जिनमें सबसे अधिक तेजी बैंकिंग और ऊर्जा क्षेत्र के शेयरों में देखी गयी. मौजूदा समय में अमेरिका सहित लगभग तमाम विकसित देशों के शेयर बाजार में बिकवाली का दौर है. महामारी, भू-राजनीतिक संकट, रूस-यूक्रेन युद्ध आदि की वजह से विकसित देशों में शेयर बाजार की हालत खस्ता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी नरमी बनी हुई है और कुछ देशों में मंदी के आसार बने हुए हैं, लेकिन इसके विपरीत भारतीय शेयर बाजार लगातार चमकीला होता जा रहा है. शेयर बाजार में उछाल का एक कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफपीआइ) द्वारा भारतीय बाजार में ज्यादा निवेश करना है. राजनीतिक स्थिरता, मजबूत होती अर्थव्यवस्था और अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल में लगातार गिरावट को देखते हुए भारतीय शेयर बाजार में सिर्फ दिसंबर में 57 हजार करोड़ रुपये से अधिक का निवेश एफपीआइ द्वारा किया गया है. पूरे साल यह निवेश 1.62 लाख करोड़ रुपये से अधिक रहा. विदेशी निवेशकों का कुल निवेश लगभग दो लाख करोड़ रुपये हो चुका है. एफपीआइ इक्विटी के अलावा डेट फंड में 60 हजार रुपये का निवेश कर चुके हैं. साल 2024 में भी राजनीतिक स्थिरता और अर्थव्यवस्था के गुलाबी बने रहने के आसार हैं, इसलिए माना जा रहा है कि एफपीआई का निवेश बरकरार रहेगा. भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, आठ दिसंबर तक विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ कर 606.85 बिलियन डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. साथ ही, विदेशी करेंसी एसेट में भी बढ़ोतरी हुई है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति खाद्य पदार्थों की कीमत में हुई इजाफे की वजह से बढ़ कर 5.55 प्रतिशत हो गयी, जो अक्तूबर में 4.87 प्रतिशत रही थी. फिर भी अभी खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक द्वारा महंगाई के लिए तय अधिकतम सहनशीलता सीमा छह प्रतिशत से कम है. भारतीय अर्थव्यवस्था में तेज रिकवरी जारी रहने के कारण सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में लगातार सुधार आ रहा है. वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में जीडीपी में 7.6 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई, जबकि पहली तिमाही में यह 7.8 प्रतिशत रही थी, जो पिछली चार तिमाहियों में सबसे अधिक थी.

उल्लेखनीय है कि दूसरी तिमाही में जीडीपी में सिर्फ 6.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान था. भारत की जीडीपी दर रूस, अमेरिका, चीन और ब्रिटेन से बहुत बेहतर है. वित्त वर्ष 2022-23 की चौथी तिमाही में वृद्धि दर में बेहतरी आने से पूरे वित्त वर्ष की वृद्धि दर में भी सुधार दर्ज किया गया था. वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी के 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान था, जो वास्तव में 7.2 प्रतिशत रही थी. वित्त मंत्रालय के अनुसार, जीडीपी में निजी खपत की हिस्सेदारी 2023-24 की दूसरी तिमाही में 61 प्रतिशत रही, जो पहली तिमाही में 59.7 प्रतिशत रही थी. जीडीपी वृद्धि दर में विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र का विशेष योगदान रहा है. धीमी वैश्विक वृद्धि के बावजूद दूसरी तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 13.9 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई, जबकि निर्माण क्षेत्र में 13.3 प्रतिशत की दर से. इसके अलावा, खनन क्षेत्र में भी उच्च दर से वृद्धि हुई है. निर्यात में भी अब पहले से तेजी देखी जा रही है और इसी वजह से विदेशी मुद्रा भंडार में भी वृद्धि हो रही है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक के आंकड़े रेखांकित करते हैं कि अक्तूबर महीने में भारत का औद्योगिकी उत्पादन 11.7 प्रतिशत रहा, जो विगत 16 महीनों में सबसे अधिक है. सितंबर महीने में यह 5.8 प्रतिशत रही थी और 2022 के सितंबर महीने में 3.3 प्रतिशत.

फिलहाल भारत की विकास दर में निरंतर इजाफा हो रहा है, क्योंकि महंगाई नियंत्रण में है, निर्यात बढ़ रहा है, विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ रहा है, एफपीआइ द्वारा लगातार भारतीय बाजार में निवेश किया जा रहा है, औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम हो रही है, सरकारी और निजी कंपनियों के बैलेंस शीट और मुनाफे में भी बेहतरी आ रही है, निजी निवेश और खर्च में भी वृद्धि हो रही है. ऐसे माहौल में शेयर बाजार का चमकना लाजिमी है. ऐसी स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए भी मुफीद है, क्योंकि शेयर की कीमत में उतार-चढ़ाव से सिर्फ निवेशकों को नुकसान नहीं होता है, बल्कि इससे देश की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. विदेशी निवेशकों द्वारा बिकवाली करने से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में कमी आती है. इसके अभाव में देश के विकास दर, रोजगार, आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. चूंकि अभी शेयर बाजार में निवेश का अनुकूल माहौल है, जिसका फायदा देशी एवं विदेशी निवेशकों को उठाना चाहिए. अधिक निवेश से भारतीय अर्थव्यवस्था में और भी तेजी आयेगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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