15.1 C
Ranchi
Thursday, February 13, 2025 | 07:35 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

Special Story: विवेकानंद ने तीन महीने मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूशन में की थी हेडमास्टरी

Advertisement

विद्यासागर जी ने वह आवेदन देखते ही, बिना कोई जांच-पड़ताल किये, निर्देश दे दिया -‘‘ तो फिर नरेंद्र से कहो, उसे आने की ज़रूरत नहीं हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

(स्टोरी- शंकर, विवेकानंद, जीवन के अनजाने सच से उद्धृत) : बीए पास करने के बावजूद, कलकत्ता के दफ्तर-मुहाल में, अपने लिए 15 रुपये महीने की भी नौकरी जुटाने में भविष्य के विवेकानंद असमर्थ रहे, यह बात अमेरिका में, किसी प्रसंग में, उन्होंने अपने भक्तों को बताई थी. आज के ज़माने में, जो लोग यह सोचते हैं कि उस जमाने में कलकत्ता में नौकरी-चाकरी का बाजार काफी लोभनीय था, उम्मीद है कि वे लोग, असली स्थिति समझ जायेंगे.

संबलहीन, अन्नहीन नरेंद्रनाथ दर-दर घूमते-भटकते, कथामृत के रचनाकार, श्री की स्नेह दृष्टि में पड़ गये. वे उस समय विद्यासागर द्वारा प्रतिष्ठित मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूशन में हेडमास्टर थे. उन्हीं की कोशिश से नरेंद्रनाथ ने सुकिया स्ट्रीट में स्थित मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्यूशन स्कूल की प्रधान शाखा में तीन महीने पढ़ाया. उसके बाद, सिद्धेश्वर लेन, चांपातला में मेट्रोपोलिटन की एक शाखा खोली गयी. नरेंद्रनाथ को हेडमास्टर की नौकरी मिल गयी. उस स्कूल के सेक्रेटरी थे, विद्यासागर के दामाद. अभागे नरेंद्रनाथ उनकी विषनजर में पड़ गये. बुद्धिमान लोगों ने ऐसी कल-काठी घुमाई कि नौवीं और दसवीं क्लास के छात्रों ने संयुक्त रूप से आवेदन किया कि नये हेडमास्टर को पढ़ाना नहीं आता. समस्त विश्व को शिक्षा देने के लिए जिसका आविर्भाव हुआ था, गुटबाजी के दम पर उन्हीं के छात्रों ने स्कूल अधिकारियों को लिखित आवेदन भेजा कि वे पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं.

विद्यासागर जी ने वह आवेदन देखते ही, बिना कोई जांच-पड़ताल किये, निर्देश दे दिया -‘‘ तो फिर नरेंद्र से कहो, उसे आने की ज़रूरत नहीं हैं.” नरेंद्र के लिए नतमस्तक होकर मान लेने के अलावा, और कोई राह नहीं थी. हैरत की बात यह है कि नरेंद्रनाथ के मन में, बाद में भी कोई कड़वाहट नहीं थी. हम सबने हमेशा उन्हें विद्यासागर की तारीफ करते हुए ही देखा है.

मेट्रोपोलिटन स्कूल में प्रत्यक्षदर्शियों में मौजूद थे, परवर्तीकाल में रामकृष्ण मिशन के प्रणम्य संन्यासी, स्वामी बोधानंद . उन दिनों वे छोटी क्लास में पढ़ते थे, लेकिन उन्हें अच्छी तरह याद था कि बदन पर ढीला-ढाला वस्त्र और ट्राउजर पहने, स्कूल आते थे. साथ में उनके गले में 6 फुट लंबी चादर झूलती रहती थी. एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में एंट्रेंस कलास की पाठ्य-पुस्तक.

विद्यासागर की नौकरी खोने के बाद, नरेंद्रनाथ ने सिटी स्कूल में मास्टरी की नौकरी के लिए, शिवनाथ शास्त्री जी के आगे काफी हाथ जोड़े. यह कहना फिजूल होगा कि शास्त्री जी उनका अनुरोध टाल गये. यहीं यह बता देना भी समझदारी होगी कि लगभग इसी पर्व में, रामकृष्ण भक्त श्रीम खुद भी विद्यासागर की क्रोधाग्नि में पड़ गये. बीमार रामकृष्ण के पास ज्यादा ज्यादा आते-जाते रहने की वजह से विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम आशानुरूप नहीं हुआ, यह संकेत पाते ही, अपने मान-सम्मान की रक्षा के लिए, भविष्य के बारे में बिना सोच-विचार किए, श्रीम ने हेडमास्टर पद से इस्तीफा दे दिया. “ठीक किया. ठीक किया” नौकरी-चाकरी के मामले में, ठाकुर की इतनी साफगोई से कुछ कहते हुए, दुबारा कभी, किसी ने नहीं सुना.

यह तो श्रीम का परम सौभाग्य था कि उन्हें अन्न की फिक्र में कभी कातर नहीं होना पड़ा, क्योंकि सर सुरेंद्रनाथ बनर्जी, अपने नव-प्रतिष्ठित, रिपन स्कूल में, बहुगुण संपन्न महेंद्रनाथ गुप्त को सादर बुला ले गये.

लेकिन, भविष्य के विवेकानंद ? सुनने में आया कि उन्होंने किसी जमींदारी कार्यालय मैं अपने लिए एक मामूली-सी नौकरी जुटा ली. हालांकि अंत में वहां उनका जाना नहीं हुआ. वजह यह भी कि पिता की मृत्यु के साल भर बाद, सन् 1885 के मार्च महीने में नरेंद्रनाथ ने घर छोड़ देने का फ़ैसला ले लिया था, ऐसा हम अंदाजा लगा सकते हैं. यही सब वृत्तांत पढ़कर, आलोचकों ने मौके का फायदा उठाते हुए एक टेढ़ा-सा सवाल जड़ दिया- ‘स्वामी जी अभाव-संन्यासी थे या ‘स्वभाव-संन्यासी’ ?

बहरहाल, मेट्रोपोलिटन स्कूल से विताड़ित होने के बाद नरेंद्रनाथ ने अन्य कोई नौकरी की या नहीं, इस बारे में कहीं कोई संकेत नहीं मिलता. इसके बावजूद उच्चतम अदालत के कागज-पत्तर में दर्ज, उनके एक वक्तव्य पर, इन दिनों हमारी नजर पड़ी. कलकत्ता हाईकोर्ट के एक कागज़ में लिखा हुआ है, ””मेट्रोपोलिटन छोड़ने के बाद, अघोरनाथ चट्टोपाध्याय के साथ और उनके अधीन, मैंने एक कॉलेज में अध्यापन किया था.”” उस समय नरेंद्रनाथ अदालत में गवाही दे रहे थे. वकील के पूछने पर उन्होंने स्वीकार किया, ‘मैं बेरोजगार हूं.’

पारिवारिक संकट के समय, विभिन्न सूत्रों से संग्रह की गई गृहस्थी में आर्थिक अभाव के कई टुकड़े-टुकड़े तस्वीर जोड़कर, हम सब खुद ही एक बड़ी-सी तस्वीर सजा सकते हैं. दक्षिणेश्वर के परमहंस की इच्छा थी कि उनका प्रिय शिष्य शरत, ‘बाद में स्वामी सारदानंद’ एक बार नरेंद्र से मिले.

‘नरेन कायेय (कायस्य) का बेटा है. बाप वकील था. घर शिमला में है. इतना भर इशारा पाकर, सन् 1885 के जेठ महीने में, शरत कॉलेज से लौटकर, नरेन के गौरमोहन मुखर्जी स्ट्रीट वाले घर में हाज़िर! ””सिर्फ़ एक अदद टूटे तख्त पर रुई- निकला हुआ एक अदद गद्दा ! दो-एक फटा तकिया और पश्चिम की तरफ दीवार की कड़ी से पंखे की झालर झूलती हुई, काले रंग की मशहरी. सीलिंग की कड़ी से मशहरी की दूसरी छोर झूलती हुई ! नरेन स्नायु-पीड़ा से अस्वस्थ थे. उन्हें कपूर सूंघना पड़ता था. उन दिनों शरत अपने गुरुभाई को ‘नरेन बाबू’कहकर बुलाते थे.

इसी पर्व में पारिवारिक मामले – मुकद्दमे भी धीरे-धीरे गहरा उठे थे. श्री परमहंस की तरफ से यह सलाह आई, ‘मुक़द्दमा पूरे दम से जारी रखो। फूत्कारते रहना, लेकिन हंसना मत’.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें