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गोवा में शिवसेना प्रत्याशियों की जमानत फिर होगी जब्त या ‘मराठी मानुषों’ के दम पर बेड़ा होगा पार? पढ़िए

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भारत के निर्वाचन आयोग के आंकड़ों पर भरोसा करें तो गोवा में शिवसेना का प्रदर्शन हमेशा खराब ही रहा है. आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 1989 में शिवसेना गोवा की छह विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें से पांच पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई.

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मापुसा (गोवा) : गोवा विधानसभा चुनाव में महाराष्ट्र की धुरंधर सियासी पार्टी शिवसेना ‘धरती पुत्र’ एजेंडे के जरिए चुनावी नैया पार लगाना चाहती है. दिलचस्प बात यह भी है कि शिवसेना केवल अपने एजेंडे के बल पर गोवा में अपनी पकड़ मजबूत करने की उम्मीद लगाए बैठी है. यह बात दीगर है कि गोवा में शिवसेना 1989 से लेकर आज तक अपनी पकड़ मजबूत बनाने की जद्दोजहद कर रही है, लेकिन वह हर चुनाव में अपने किसी प्रत्याशी की जमानत राशि भी नहीं बचा पाई या यूं कहें कि गोवा में हर बार शिवसेना के प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने का इतिहास रहा है. शायद इसीलिए पार्टी की ओर से कोई भी नेता अपने प्रत्याशियों के समर्थन में चुनाव प्रचार करने नहीं जा रहा है.

न कोई प्रचार और न ही कोई पोस्टर

दिलचस्प बात यह है कि गोवा विधानसभा चुनाव के लिए शिवसेना ने अपना घोषणा पत्र जारी कर दिया है, लेकिन पार्टी की ओर से प्रत्याशियों के समर्थन में न तो प्रचार किया जा रहा है और न ही पोस्टर-बैनर आदि ही लगाए जा रहे हैं. शिवसेना सचिव आदेश बांदेकर ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि हमारा एजेंडा ‘धरती पुत्रों’ के हक की आवाज बुलंद करना होगा. हमारे पार्टी प्रमुख दिवंगत बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र में भी ऐसा ही किया था. आप देख सकते हैं कि गोवा में ‘धरती पुत्रों’ के एजेंडे को लागू नहीं किया जा रहा है.

गोवा में शिवसेना के 10 उम्मीदवार

बताते चलें कि गोवा में 40 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए आगामी 14 फरवरी को मतदान होने हैं. इस चुनाव के लिए शिवसेना ने महाराष्ट्र की दूसरा सबसे बड़ा दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ गठजोड़ करके चुनाव लड़ रही है. एनसीपी ने गोवा में अपने 13 उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि शिवसेना के 10 प्रत्याशी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं.

उत्पल के समर्थन में पणजी सीट से नामांकन वापस

हालांकि, शिवसेना ने पहले गोवा चुनाव में 11 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पणजी सीट से उसके प्रत्याशी ने दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के समर्थन में नामांकन वापस ले लिया. उत्पल पर्रिकर भाजपा की ओर से टिकट न दिए जाने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में किस्मत आजमा रहे हैं.

शिवसेना को मराठी मानुष पर भरोसा

हालांकि, शिवसेना ने कभी भी गोवा में अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर सकी, लेकिन इस बार उसे मराठी मानुष पर भरोसा है. इसका कारण यह है कि गोवा में मराठी भाषी लोगों की तादाद अधिक है और शिवसेना को यह भरोसा है कि मराठी भाषी लोग उसके पक्ष में मतदान करेंगे. बता दें कि शिवसेना का गठन 1966 में ‘धरती पुत्रों’ यानी ‘मराठी मानुषों’ के हितों की रक्षा के लिए किया गया था. पार्टी ने कर्नाटक के बेलगाम शहर में ‘मराठी मानुष’ से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र में शामिल करने की वकालत की. शिवसेना ने राज्य के अन्य हिस्सों में अपना विस्तार किया, कोंकण क्षेत्र, खासतौर पर दक्षिण कोंकण, उसका गढ़ बन गया.

गोवा में शिवसेना का खराब प्रदर्शन

भारत के निर्वाचन आयोग के आंकड़ों पर भरोसा करें तो गोवा में शिवसेना का प्रदर्शन हमेशा खराब ही रहा है. आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 1989 में शिवसेना गोवा की छह विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ी, जिनमें से पांच पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. आंकड़ों के अनुसार, पार्टी महज 6.64 फीसदी वोट हासिल कर सकी, जो राज्य में उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है. चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 1994 के चुनाव में शिवसेना ने दो विधानसभा सीटों पर किस्मत आजमाई और दोनों पर उसके प्रत्याशी अपनी जमानत राशि तक नहीं बचा पाए.

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गोवा में जमानत जब्त कराने का रहा है इतिहास

आयोग के आंकड़ों के अनुसार, 1999 में शिवसेना ने 14 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे, जिसमें पार्टी को महज 2.74 प्रतिशत वोट मिले और उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. 2002 में शिवसेना ने 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और सभी में जमानत राशि गंवा दी, जबकि 2007 में उसने सात सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी सात में जमानत राशि जब्त कर ली गई. 2012 और 2017 के चुनावों में पार्टी के तीन-तीन उम्मीदवार मैदान में उतरे और सभी की जमानत जब्त हो गई.

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